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दीपावली पर्व 2025 पुनः दो तिथियों का भ्रम?

धर्म-संस्कृति

दीपावली पर्व 2025 पुनः दो तिथियों का भ्रम?


सत्य सनातन वैदिक धर्म की जै
सभी सनातनीय पाठकों धर्मावलंबियों को सादर नमस्कारम, प्रणाम, जै माता दी।

आज फेसबुक पटल के माध्यम से आप सभी के सम्मुख एक अति संवेदनशील विषय पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति आपके सम्मुख कर रही हूं और चिंतित हूं। एक धर्म (सनातन), एक राष्ट्र में रहते हुए भी पर्वों को लेकर मतभिन्नताएं क्यों? त्यौहार का अर्थ ही है अपनी संस्कृति और परंपराओं को याद कर उल्लास की अनुभूति करना, परंतु एक ही पर्व को दो–दो दिन मनाने से पर्व में उत्सुकता और उल्लास रहता कहां है?

दो-दो दिन एक ही पर्व मनाने से आम जनमानस में उत्सुकता समाप्त होती जा रही है, और सनातन का उपहास हो रहा है जो कि हमारे समाज,संस्कृति एवं परंपराओं को बचाए रखने हेतु दुसाध्य( कष्टकारी) है जो कि अत्यंत विचारणीय विषय है।

इसी लिए सभी अत्यंत सम्मानित सनातनीय ,धर्माचार्य, धर्म-प्रतिनिधि, धर्मगुरुओं से करबद्ध निवेदन करती हूं कि सभी एक मत होकर एक मंच पर सनातन धर्म की रक्षा हेतु एक राष्ट्र एक पर्व की धारणा पर विचार करें।

अनेक वर्षों की भांति वर्ष 2025 में भी दीपावली पर्व पर अनेक पञ्चांगकारों ने अलग-अलग दिन पर्व निर्णय दिया है, देश के अधिकतर पञ्चांगकारों ने सम्पूर्ण राष्ट्र में 20 अक्टूबर 2025 को दीपावली पर्व बताया गया है, जबकि अनेक राज्यों में विशेषकर उत्तराखंड में कई पंचांगकारों ने संपूर्ण देश के पंचांगों से अलग, अगले दिन 21 अक्टूबर 2025 दीपावली पर्व मनाने पर जोर दिया है। यदि संपूर्ण देश में 20 अक्टूबर 2025 को दीपोत्सव मनाया जाएगा तो उत्तराखंड राज्य में भी उसी दिन पर्व मनाना श्रेयष्कर रहेगा ।

यहां पर बात आती है धार्मिक नियमों और परंपराओं की, तो इस पर मेरा विचार है यदि कालचक्रानुसार युग बदल सकते हैं, जलवायु परिवर्तन हो सकता है, ऋतु परिवर्तन हो सकता है,भूदृश्य: परिवर्तित हो सकता है यहां तक कि जन समाज में भी बदलाव आ सकते हैं तो सनातन धर्म की रक्षा हेतु परंपराएं क्यों नहीं बदली जा सकती?

“परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति” अर्थात परिवर्तन में ही स्थिरता है
(change is the law of nature)

जबकि इस वर्ष 2025 में सभी नियमों के अनुरूप 20 अक्टूबर 2025 को ही दीपावली पर्व मनाना शास्त्र सम्मत है।

इस विषय पर एक मंच पर संगठित होकर, अहंवाद को त्यागकर, सनातन धर्म की स्थिरता हेतु सभी विद्वान जनों को धार्मिक ग्रन्थों का गंभीर विश्लेषण एवं शास्त्रीय प्रमाण के साथ पर्व से पूर्व ही एक निर्णय कर,आम जन समुदाय में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो, उससे पूर्व ही एक तिथि, एक पर्व,एक राष्ट्र की बात कर सनातन की श्रेष्ठता और एकता तथा सनातन धर्म से ही उत्पन्न विज्ञान की रक्षा हेतु अभी से इस विषय पर अपने विचार अभिव्यक्त कर एकत्रित होना चाहिए। ( “सनातन” शब्द का अर्थ ही है शाश्वत या सदैव रहने वाला)।

आज हम 21वीं शताब्दी में है, ऐसा नहीं था कि प्राचीन काल में पर्व निर्णय को लेकर मतांतर ना हो! ऐसा पहले भी अनेकों बार हुआ है परंतु एक स्थान से दूसरे स्थान तक विचारों का आदान-प्रदान हो, उसे पूर्व ही पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाकर समाप्त हो जाते थे। परंतु आज सोशल मीडिया (सामाजिक माध्यम) का युग चल रहा है आज सामाजिक माध्यम से किसी भी बात को एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थांतरित होने में माइक्रो सेकंड लगते हैं और समाज में उसका वैसा ही प्रचार प्रसार होता है ऐसे में हमें प्रयासरत रहना चाहिए कि सनातन धर्म का सोशल मीडिया के माध्यम से सकारात्मक प्रचार प्रसार हो , ना कि आम जन समुदाय के मध्य सनातन को लेकर उदासीनता उत्पन्न हो और भ्रम पांव पसारे।
ऐसा करने से समाज में हिंदू धर्म का उपहास हो रहा है।

संपर्क 8395806256

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