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दीपावली महापर्व 1 नवंबर 2024 को।

धर्म-संस्कृति

दीपावली महापर्व 1 नवंबर 2024 को।


सभी सनातनीय पाठकों धर्मावलंबियों को सादर नमस्कार, प्रणाम जय माता दी आप सभी को अवगत करना चाहूंगी दीपोत्सव महालक्ष्मी पर्व 1 नवंबर 2024 को ही संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाएगा।
सनातन धर्म के लिए अत्यंत विडंबना का विषय है जहां पर संचार सेवाएं अत्यंत सशक्त होने के कारण इसका सदुपयोग होना चाहिए परन्तु दुरुपयोग हो रहा है सनातन धर्म में विघटन की स्थिति उत्पन्न हो गई है हिंदू धर्म के अनुयायी दो गुटों में विघटित हो रहे हैं जो कि हमारे सनातन धर्म के लिए सोचनीय विषय है और हम अन्य धर्म के लिए उपहास के पात्र बनते जा रहे हैं।


ऐसा नहीं है कि इससे पूर्व ऐसी परिस्थिति उत्पन्न नहीं हुई है। 1962, 1963 तथा 2013 में भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई थी उस स्थिति में जब दो दिन अमावस्या तिथि पर प्रदोष व्याप्त हो दूसरे दिन ही दीपोत्सव मनाया गया था।
दीपावली पर्व के संबंध में यदि इस प्रकार का कोई भी संशय हो तो धर्म शास्त्रों में उसका निर्णय कुछ इस प्रकार दिया हुआ है जिससे मै आपको अवगत करा रही हूं –
यदि दो दिन प्रदोष व्यापिनी अमावास्या होती है तो दूसरे दिन दीपावली (महालक्षमी) पर्व मनाना चाहिये-

दिनद्वये प्रदोषसत्त्वे परः।
दण्डेकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि ।
तदा विहायपूर्वेद्युः परेऽह्नि सुखरात्रिका ।।

इस वर्ष 31 अक्टूबर तथा 1 नवम्बर, 2024 को कार्तिक कृष्ण अमावास्या प्रदोषव्यापिनी है। अतः 1 नवम्बर 2024 को ही दीपावली (महालक्ष्मी) पर्व मनाना शास्त्रोक्त है।

प्रदोषव्यापिनी (सूर्यास्त के बाद त्रिमुहूर्त्त) कार्तिक अमावस्या के दिन ही दीपावली (महालक्ष्मी-पूजन) मनाने की शास्त्राज्ञा है। इसवर्ष 31 अक्तूबर 2024 के दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि का समाप्तिकाल अपराह्न 3:53 पर है। अतः चतुर्दशी समाप्ति के साथ ही कार्तिक अमावस्या प्रारंभ होकर अगले दिन 1 नवम्बर2 024 शुक्रवार सायं 06:17 तक व्याप्त है। स्पष्ट है- अगले दिन 1 नवम्बर 2024 प्रदोषकाल में अमावस तिथि की व्याप्ति कम समय के लिए है। (क्योंकि पंजाब, हिमाचल, जम्मू आदि राज्यों में सूर्यास्त लगभग 05:35 पर होगा।), जबकि 31 अक्तूबर, 2024 को अमावस्या पूर्णतया प्रदोष एवं निशीथकाल को व्याप्त कर रही है। परन्तु फिर भी शास्त्रनिर्देशानुसार ‘दीपावली पर्व महालक्ष्मी-पूजन 1 नवम्बर, शुक्रवार, 2024 को ही मनाना शास्त्रसम्मत रहेगा–

यथा शास्त्र वाक्य-

अथाश्विनामावस्यायां प्रातरभ्यंगः प्रदोषे दीपदानलक्ष्मी-पूजनादि विहितम् । तत्र सूर्योदयं व्याप्ति-अस्तोत्तरं घटिकाधिकरात्रिव्यापिनी दर्शे सति न संदेहः ।।(धर्मसिन्धु)

(अर्थात् कार्तिक अमावस्या को प्रदोष के समय लक्ष्मीपूजनादि कहा गया है। उसमें यदि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के अन्तर 1 घड़ी (24 मिनट) से अधिक
रात्रि तक (प्रदोषकाल) अमावस्या हो, तो बिना संदेह उसी दिन पर्व मनाए।
उभयदिने प्रदोषव्याप्तौ परा ग्राह्या । ‘दण्डैकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि।
तदा विहाय पूर्वेद्यु परेऽह्नि सुखरात्रिकाः ।‘ (तिथितत्त्व) अर्थात् यदि दोनों दिन प्रदोषव्यापिनी होय, तो अगले दिन करें-क्योंकि तिथितत्त्व में ज्योतिष का वाक्य है-एक घड़ी रात्रि (प्रदोष) का योग होय तो अमावस्या दूसरे दिन होती है, तब प्रथम दिन छोड़कर अगले दिन सुखरात्रि होती है।) यद्यपि-दीपावली के दिन निशीथकाल में लक्ष्मी का आगमन शास्त्रों में अवश्य वर्णित है परंतु कर्मकाल (लक्ष्मी पूजन, दीपदान-आदि का काल) तो प्रदोष ही माना जाता है। लक्ष्मीपूजन, दीपदान के लिए प्रदोषकाल ही शास्त्र प्रतिपादित है-
प्रदोषसमये लक्ष्मीं पूजयित्वा ततः क्रमात्।
दीपवृक्षाश्च दातव्याः शक्त्या देवगृहेषु च ।।

निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धु, पुरुषार्थ-चिन्तामणि, तिथि-निर्णय आदि ग्रन्थों में दिए गए शास्त्रवचनों के अनुसार दोनों दिन प्रदोषकाल में अमावस्या की व्याप्ति कम या अधिक होने पर दूसरे दिन ही अर्थात् सूर्योदय से सूर्यास्त (प्रदोषव्यापिनी) वाली अमावस्या के दिन लक्ष्मीपूजन करना शास्त्रसम्मत होगा।
इसके अतिरिक्त दिवाली पर्व पर स्वाति नक्षत्र का होना भी अति आवश्यक है क्योंकि एक नवंबर 2024 को ही पड़ रही है।

अतः सभी शास्त्र-वचनों पर विचार कर हमारे मतानुसार 1 नवम्बर, 2024 शुक्रवार को ही दीपावली पर्व तथा लक्ष्मीपूजन करना शास्त्रसम्मत होगा। सम्पूर्ण भारत में यह पर्व इसी दिन होगा। यही निर्णय भारत के अधिकतर पंचाङ्गकारों को मान्य है। परम्परा अनुसार तथा गत अनेक उदाहरण भी इसी मत को मान्यता देते हैं।
(इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत रूप से व्यावहारिक पहलू पर भी अवश्य विचार करने को कहूंगी उत्तराखंड में जितने भी पंचांग हैं उन सभी में 1 नवंबर 2024 को दीपोत्सव मनाने का निर्णय दिया गया है तो पंचांगकारों के परिश्रम को भी सम्मान देते हुए 1 नवंबर को ही दीपोत्सव मानना शास्त्र सम्मत होगा क्योंकि हर छोटे बड़े धार्मिक अनुष्ठान हेतु हम हमारे प्रदेश में बन रहे पंचांगों का ही प्रयोग करते हैं।)

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