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क्या आप जानते है हल्द्वानी में भी है रामेश्वरम।

धर्म-संस्कृति

क्या आप जानते है हल्द्वानी में भी है रामेश्वरम।

  • सरकार व पर्यटन विभाग की
    अनदेखी से आज भी गुमनामी के साये में + कठघरिया – पनियाली के रमणीक वन क्षेत्र में स्थित सीताराम बाबा स्वर्गाश्रम के नाम से है लोक प्रसिद्ध
  • महान संत योगी सीताराम बाबा सहित अनेक संतो की साधना स्थली रही है रामेश्वरम की यह भूमि + सिद्ध संत नानतिन बाबा ने इसी वन्य क्षेत्र में की थी माँ पीताम्बरा की साधना
    हल्द्वानी ( नैनीताल ) सनातन जगत में देवभूमि उत्तराखंड की धरती शिव व शक्ति की पावन लीला भूमि के रूप में जानी व मानी जाती है। श्रद्धा व विश्वास के साथ पूजित व वन्दित हिमालय के आंचल की इस पावन भूमि में पौराणिक तीर्थो एवं धर्म स्थलों की लंबी श्रृंखला देखी जाती है, जहाँ बहुत सारी अव्यवस्थाओं के बावजूद हर वर्ष अनगिनत श्रद्धालु पुण्यार्जन हेतु पहुंचते भी हैं।
  • देवभूमि में धार्मिक पर्यटन व तीर्थाटन विकास के तमाम सरकारी व विभागीय दावों के बाद भी इस भूमि में धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व के ऐसे अनगिनत तीर्थ हैं, जिन पर जिम्मेवार पक्षों की या तो नजर ही नहीं गयी या फिर इस तरफ देखने की उनके द्वारा जरूरत ही नहीं समझी गयी ।
  • सनातन जगत का ऐसा ही एक पौराणिक तीर्थ है हल्द्वानी के कठघरिया- पनियाली से लगे फतेहपुर वन रेंज में स्थित प्राचीन ” रामेश्वरम तीर्थ ” । हल्द्वानी नगर का समीपवर्ती तीर्थ होने के बाद भी सरकार व पर्यटन विभाग आज तक इस प्राचीन रामेश्वरम तीर्थ को लेकर पूर्णरूपेण अनजान हैं। यहाँ तक कि हल्द्वानी व आस-पास निवास करने वाले अधिकांश सनातनी भी पौराणिक महत्व के इस रमणीक देवस्थल से अनभिज्ञ हैं। हाँ कठघरिया – पनियाली क्षेत्र के कुछ लोग इसे सीताराम बाबा स्वर्गाश्रम के रूप में अवश्य जानते हैं, परन्तु यहाँ की धार्मिक व आध्यात्मिक महत्ता से बहुत कम लोग ही परिचित हैं।
  • हल्द्वानी के कठघरिया से पनियाली की ओर लगभग पाँच किमी दूर रमणीक व घने वन क्षेत्र में स्थित रामेश्वरम तीर्थ अथवा सीताराम स्वर्गाश्रम के लिए चार किमी कार व दो पहिया वाहनों से और पनियाली गाँव की अन्तिम आवादी क्षेत्र से तकरीबन एक किमी हल्की चढ़ाई चढ़कर आसानी से पहुंचा जा सकता है ।

आध्यात्मिक आभा का यह अलौकिक स्थल चारों ओर से घनी झाड़ियों व सघन वनों से आच्छादित है । पनियाली श्रोत कठघरिया के इस पंचवटी स्वर्गाश्रम को स्थानीय लोग सीताराम बाबा आश्रम के नाम से ही जानते हैं।

रामेश्वरम तीर्थ स्थित इस रहस्यमयी आश्रम में साधनारत संत गोपाल दास जी बताते है कि इस दिव्य स्थल के प्रति स्थानीय लोगों में बहुत ही गहरी आस्था है, दूर-दराज क्षेत्रों से भी भक्तजन यहां पहुंचकर मनौती मांगते हैं । विभावन वन में अकेले साधनारत बाबा गोपालदास जी महाराज बताते हैं कि इस दिव्य रामेश्वरम के चरणों में मॉगी गयी मनौती बहुत ही जल्दी फलदाई होती है ।

आध्यात्म के अलौकिक वातावरण में स्थित यह आश्रम बहुत ही सुंदर व मनभावन है ।घने जंगलों के मध्य कल-कल धुन में बहती एक छोटी सी नदी इस देव स्थल की शोभा को और भी आनन्दमय बना देती है ।

बताया जाता है कि सघन वनाच्छादित इसी क्षेत्र में प्रसिद्ध संत नानतिन बाबा जी ने माँ पीतांबरी की साधना करके अलौकिक सिद्धियां प्राप्त की ।
रामेश्वरम तीर्थ स्थित सीताराम बाबा आश्रम के एकमात्र सेवक व संत बाबा गोपालदास बताते हैं कि यहाँ विजली की स्थाई व्यवस्था नहीं है । सोलर लाइट के सहारे किसी तरह धार्मिक अनुष्ठान व नित्य पूजन आदि सम्पन्न किये जाते हैं। आश्रम के ऊपरी हिस्से से आने वाले गधेरे से वर्षाकाल में भूमि कटाव बहुत सामान्य बात है। एक अदद पत्थरों की कच्ची दिवार के सहारे आश्रम की सुरक्षा व्यवस्था है।

बाबा गोपालदास बताते हैं कि अस्सी के दशक के शुरुआत से महान् तपस्वी योगी श्री श्री 1008 सीताराम महाराज जी यहां निरंतर साधना में संलग्न रहते थे, उनकी उपस्थिति में यहाँ समय – समय पर अनेकों धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते थे । संत महात्माओं व दर्शनार्थियों का यहां आवागमन लगा रहता था और प्रत्येक कार्तिक पूर्णिमाँ के पावन अवसर पर विशाल मेला भी लगता था जिसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के हजारों भक्त व दर्शनार्थी प्रसाद ग्रहण करते थे ।

उन्होंने बताया कि महान योगी सीताराम बाबा अलौकिक सिद्धियों के स्वामी थे । बाबा गोपालदास के अनुसार सीताराम महाराज की आयु का कोई निश्चित अनुमान किसी को नहीं था । गुरु परम्परा से मान्यता है कि वह लगभग 350 वर्ष तक स्वस्थ जीवित रह कर अपने ईष्ट देव भगवान श्री राम तथा अपने परम आराध्य भगवान रामेश्वरम की साधना में निमग्न रहे। उनके स्वधाम गमन के कुछ वर्षो बाद उनके पौत्र शिष्य श्री108 बजरंग दास जी महाराज ने इस दिव्य स्थान को सिंचित व जागृत रखा । लगभग 2 वर्ष पूर्व उनके बैकुंठ वास के बाद वर्तमान में उनके योग्य शिष्य श्री गोपाल दास जी महाराज गुरु परम्परानुसार आश्रम की मर्यादा व नित्य भजन पूजन एवं साधना की परंपरा को संभाले हुए हैं ।

अत्यधिक सरल स्वभाव के धनी बाबा गोपालदास ने रामेश्वरम तीर्थ स्थित शिवालय में विराजित एक साथ दो शिव पिण्डियों का रहस्य बताते हुए इस रामेश्वरम तीर्थ को दक्षिण भारत में समुद्र तट पर भगवान श्री राम द्वारा स्थापित रामायणकालीन रामेश्वरम से जोड़ा और कहा कि वहीं की तरह यहाँ भी एक साथ दो दिव्य शिव पण्डियां सदियों से पूजित है, जिनके दर्शन मात्र से भगवान राम व महादेव की एक साथ कृपा प्राप्त हो जाती है।

बहरहाल प्रकृति के सुन्दर आंचल में स्थित यह प्राचीन रामेश्वरम तीर्थ और सीताराम आश्रम बड़ा ही मनोहारी है। यदि सरकारी स्तर पर इस आश्रम को विकसित करने के प्रयास किए जाएं तो यह पौराणिक दिव्य स्थल धार्मिक पर्यटन एवं तीर्थाटन का एकमात्र अद्भुत केंद्र बन सकता है । मूलभूत सुविधाओं का यहां घोर अभाव है । आने जाने का रास्ता कच्चा व उबड़ खाबड़ है, प्रकाश आदि की भी व्यवस्था नहीं है, आश्रम की छत व फर्श भी कच्चे हैं, एक अदद धर्मशाला कक्ष की कमी आगन्तुकों को परेशान करती है। घने वृक्षों की छांव में स्थित होने के कारण यहां शाम ढलने से पहले ही अंधेरा सा हो जाता है ।इस दिन स्थान के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक , पौराणिक व आध्यात्मिक महत्व पर गहन शोध की आवश्यकता महसूस की जा रही है। यदि सम्बन्धित जिम्मेवार पक्ष इस दिशा में ईमानदारी से विचार कर पायें तो सनातन का यह दिव्य स्थल देश दुनियां को प्रकाशित करेगा,

यह बात प्रसिद्ध वैष्णव संत मोहनाचार्य ने एक मुलाकात के दौरान कही। उन्होंने कहा कि वह अक्सर इस पुण्य तीर्थ के दर्शनार्थ पहुंचते रहते हैं, लेकिन कई वर्षों से यहाँ की लगातार उपेक्षा मन को विचलित करती है।/

प्रतिपक्ष संवाद टीम : विनोद जोशी/ रमाकान्त पन्त/ मदन मधुकर

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