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दुर्गा अष्टमी तिथि पर देवी दुर्गा के स्वरूप महागौरी की पूजा विधान है।

उत्तराखण्ड

दुर्गा अष्टमी तिथि पर देवी दुर्गा के स्वरूप महागौरी की पूजा विधान है।

ज्योतिषाचार्य मंजू जोशी

9 अप्रैल 2022 दिन शनिवार को दुर्गाष्टमी पर्व मनाया जाएगा। सभी जातक यदि पूर्ण श्रद्धा भाव से दुर्गा अष्टमी का उपवास रखें व पूजा अर्चना करें तो उनके जीवन में सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है। दुर्गा अष्टमी तिथि पर देवी दुर्गा के स्वरूप महागौरी की पूजा विधान है।
इस वर्ष दुर्गाष्टमी पर कुछ शुभ योग बनने जा रहे हैं प्रातः 11:25 पर सुकर्मा योग लगेगा यह योग ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अति शुभ योग माना गया है धार्मिक मान्यतानुसार इस योग में किए गए सभी कार्य सिद्ध होते है।
अष्टमी मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारंभ 8 अप्रैल 2022 रात्रि 11:06 से 9 अप्रैल 2022 रात्रि 1:25 मिनट तक रहेगी तत्पश्चात नवमी प्रारंभ।
पूजा विधि
प्रातःकाल सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त में जाग कर संपूर्ण घर एवं पूजा स्थल को स्वच्छ करें। स्नानादि करने के उपरांत व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थल पर गंगाजल का छिड़काव करें। अखंड ज्योत प्रज्वलित करें।
चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें। मां दुर्गा को पंचगव्य से स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएं, एवं वस्त्र अर्पित करें, मां दुर्गा को सोलह श्रृंगार अर्पित करें, उन्हें रोली,अक्षत,चंदन, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें। पंचामृत, पंचमेवा, पंच मीठाई, फल का भोग अर्पित करें। हलवा एवं चना भोग स्वरूप अर्पित करें। दुर्गा सप्तशती दुर्गा, चालीसा का पाठ करें।
इन मंत्रों का पाठ करें।
1- श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
2- या देवी सर्वभू‍तेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
तत्पश्चात घी के दीपक में 8 बत्तियां जला कर माता दुर्गा की आरती करें।
दुर्गाष्टमी की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सदियों पहले पृथ्वी पर असुर बहुत शक्तिशाली हो गए थे और वह स्वर्ग पर चढ़ाई करने लगे। उन्होंने कई देवताओं को मार डाला और स्वर्ग में तबाही मचा दी। इन सबमें सबसे शक्तिशाली असुर महिषासुर था। भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने शक्ति स्वरूप देवी दुर्गा को बनाया। हर देवता ने देवी दुर्गा को विशेष हथियार प्रदान किया। इसके बाद आदिशक्ति दुर्गा ने पृथ्वी पर आकर असुरों का वध किया। मां दुर्गा ने महिषासुर की सेना के साथ युद्ध किया और अंत में उसे मार दिया। उस दिन से दुर्गा अष्टमी का पर्व प्रारम्भ हुआ।
मार्कंडेय पुराण में अष्टमी पर देवी पूजा का महत्व बताते हुए कहा गया है कि इस दिन देवी पूजा से हर तरह की परेशानी दूर हो जाती है। इस दिन कन्या पूजन और भोजन का सबसे ज्यादा महत्व है। इस बार कोरोना महामारी के कारण अष्टमी पर कन्या पूजा और भोज करवाना संभव नहीं है। धर्मानुसार आपको बताती हूं कि दुर्गाष्टमी के दिन कन्या पूजन या कन्या भोजन नही करा पाएं तो भी इसका दोष नहीं लगेगा। माता के प्रसाद का कोई उचित पात्र ना मिले तो निराश न हो माता को याद करके गाय को भोग समर्पित करें। प्रसाद का कुछ हिस्सा माता का ध्यान करते हुए गाय को खिला दें। या आप शुद्ध मन से भोग का सूखा सामान किसी जरूरतमंद कन्या के घर भिजवा दे। अथवा दक्षिणा और नारियल उठा कर रख दें। बाद में किसी कन्या को दे सकते है।
कन्या पूजन का मुहूर्त
अष्टमी तिथि को कन्या पूजन करने हेतु जातकों के लिए प्रातः 11:58 से 12:48 तक का समय शुभ रहेगा।
ज्योतिषाचार्य मंजू जोशी

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