उत्तराखण्ड
उत्तराखंड के फेमस लोकगायक फौजी ललित मोहन जोशी सेना से सेवानिवृत्त।

उत्तराखंड के मशहूर लोकगायक फौजी ललित मोहन जोशी अब भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हो गए हैं। अपनी सुरीली आवाज़ और भावपूर्ण गीतों से उन्होंने न सिर्फ पहाड़ की पीड़ा को शब्दों में पिरोया, बल्कि अपने गीतों से लोगों को झूमने पर भी मजबूर किया।
ललित मोहन जोशी का सफर वर्ष 2001 के करीब कैसेट युग से शुरू हुआ था। उस दौर का उनका लोकप्रिय गीत “टक टका टक कमला” आज भी लोगों की जुबान पर है। पिछले 24 वर्षों से वे लगातार अपने गीतों से श्रोताओं का मनोरंजन करते आ रहे हैं।
उनके कई गीत आज भी लोगों के दिलों में बसते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
दूर बड़ी दूर बर्फीला डाना
ओ कफूवा तू डान्यू ओरा
हे दीपा मिजात दीपा
हिट कमु न्हे जानू
पिंगली साड़ी
ऐसे ना जाने सैकड़ो गीत है
उनकी फैन फॉलोइंग आज लाखों में है, जो न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि पूरे देश और विदेश तक फैली हुई है। उनकी गायकी ने कुमाऊँनी संस्कृति और लोकसंगीत को नई पहचान दिलाई है।
फौजी ललित मोहन जोशी का जन्म 26 जुलाई 1982 को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील के धुरातोली गाँव में हुआ ।
उनका बचपन पारंपरिक कुमाऊंनी परिवेश में बीता, जहाँ लोकगीत और संस्कृति ने उन्हें संगीत की ओर आकर्षित किया ।
उन्होंने भारतीय सेना में सेवा की, इसी कारण से उन्हें “फौजी” उपनाम मिला। साथ में संगीत को भी अपना करियर बनाया ।
उन्होंने 2001 में अपनी पहली एल्बम “तेरी भोली अन्वारा” रिलीज़ की, जिसमें “टक टक कमला बाटुली लगाए” गीत ने उन्हें लोकप्रियता दिलाई ।
“टक टक कमला बाटुली लगाए”
“ओ चंदू ड्राइवरा माठूमाठ गाड़ी चला”
“हे दीपा मिजात दीपा”
“हल्द्वानी बाजार में तेरी झुमका गिरी गो“
“जम्मू कश्मीर ड्यूटी मेरी”
अब तक उन्होंने लगभग 1500+ गीत रिकॉर्ड किए हैं, जो कि उत्तराखंड की लोकसंस्कृति को नई ऊँचाइयाँ देते हुए उभरते गायक के रूप में उनकी पहचान को मजबूत करते हैं ।
उन्होंने अपनी गायकी के माध्यम से उत्तराखंड की लोक संस्कृति और भाषा (कुमाऊंनी) को बढ़ावा दिया और उसे देश-विदेश में फैलाया ।
फ्लफ अपनी पत्नी जानवी जोशी और दो बेटों सक्षम जोशी और सार्थक जोशी के पिता हैं ।
उनका बेटा सार्थक जोशी फुटबॉल में प्रमुखता से उभरा और नॉर्थ ज़ोन अंडर-17 फुटबॉल टीम में चयनित हुआ—जो पिता की तरह ही सफलता की कहानी है ।
फौजी ललित मोहन जोशी की यह यात्रा सिर्फ एक लोकगायक की नहीं, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक और समाज‑सेवी का भी प्रतीक है। उनके गीतों में लोकभाव, प्रेम, संस्कृति, और प्रेरणा का संयोजन है।
अब सेना से सेवानिवृत्ति के बाद उम्मीद है कि ललित मोहन जोशी अपने गीत-संगीत को और अधिक समय देकर श्रोताओं को नए गीतों का तोहफ़ा देंगे।











