उत्तराखण्ड
लोकदेवता के मंदिरों में मांगलिक कार्यों, त्यौहारों पर चढ़ाया जाता है भोग।
भुवन बिष्ट,रानीखेत(अल्मोडा़)
रानीखेत (अल्मोडा़)। देवभूमि उत्तराखंड का कण कण है महान,यहाँ की परंपरा संस्कृति सभ्यता का सदैव होता है गुणगान। देवभूमि उत्तराखंड के गाँवों में हर शुभ मांगलिक कार्यों में त्यौहारों में लोकदेवता के मंदिरों में भोग चढ़ाया जाता है। दीपोत्सव हो अथवा हरेला,बसंत पंचमी सहित अन्य त्यौहार व मांगलिक कार्यो पर गांवों के लोकदेवता के मंदिरों में भोग चढ़ाया जाता है।
हर घर परिवार से लोकदेवता के मंदिरों के लिए भोग जिसमें आटा,गुड़, घी, धूप, दीप, पुष्प, भेंट,आदि साफ पत्तियों में रखकर मंदिरों में ले जाया जाता है। अधिकतर गाँवों में शुद्ध मानी जाने वाली तिमिल की पत्तियों का उपयोग किया जाता है। गाँवों में आपसी सहयोग से मंदिरों की साफ सफाई, रंग रोगन आदि कार्यों को मेलजोल के साथ पूर्ण किया जाता है। लोकदेवता के मंदिरों में भोग चढ़ाने में भी आपसी एकता देखने को मिलती है। देवभूमि उत्तराखण्ड के गांवों में लोकदेवता के प्रति सदैव ही लोगों की गहरी आस्था रहती है और जन लोक कल्याण के लिए समय समय पर इन लोकदेवता के मंदिरों में विभिन्न भक्ति कार्यक्रमों, अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता रहा है।देवभूमि उत्तराखण्ड में लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं गुरू गोरखनाथ, हरज्यू, सैम ज्यू, न्यायी देवता गोल्ज्यू महाराज,माता के मंदिर आदि अनेक देवी देवता।इनमें सभी जनमानस के सुख समृद्धि की कामना की जाती है। लोकदेवता के मंदिरों को त्यौहारो के लिए स्वच्छता करके फिर सुंदर ढंग से सजाया जाता है।
हर घर परिवार से मंदिर के लिए भोग ले जाया जाता है, फिर मंदिर में इन्हें सामूहिक रूप से एकत्रित किया जाता है। लोकदेवता के मंदिरों में एकत्रित किये हुए भोग आदि को सामूहिक कार्य के द्वारा पकाने व मंदिरों देवी देवताओं को चढ़ाने और पूजा अर्चना का कार्य संपन्न किया जाता है और गाँव समाज के खुशहाली समृद्धि की सामूहिक रूप से लोकदेवता से प्रार्थना की जाती है। मंदिरों में भोग लगाने के बाद हर घर परिवार के लिए प्रसाद भेजा जाता है। हर त्यौहार मांगलिक कार्यों में देवभूमि के गाँवों में लोकदेवता के इन मंदिरों में भोग चढ़ाने के कार्यो को संपन्न किया जाता है। चैत्र मास में लोकदेवता के मंदिरों में झोड़ा गायन भी किया जाता है जिसमें लोकदेवता से समाज की खुशहाली की कामना भी की जाती है।
हर त्यौहार कुछ न कुछ प्रेरणा अवश्य देते हैं परंपराऐं कुछ न कुछ अवश्य सिखलाती हैं इन्हें आज संरक्षित किये हुये हैं देवभूमि व भारतभूमि के गांव।परंपराऐं तभी संरक्षित होंगी जब संरक्षित होंगे गांव।