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बिना लहर-हवा, कमजोर मुद्दों का उत्तराखण्ड का विधान सभा चुनाव
राजनीतिक दलों से जनता निरास’निजि छवि होगी विजय पथ में सहाय!

उत्तराखण्ड

बिना लहर-हवा, कमजोर मुद्दों का उत्तराखण्ड का विधान सभा चुनाव
राजनीतिक दलों से जनता निरास’निजि छवि होगी विजय पथ में सहाय!

रिपोर्ट- नवीन बिष्ट


विधान सभा चुनाव 2022 में इस बार राष्ट्रीय राजनैतिक दल भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी के अतिरिक्त क्षे़त्रीय दल उत्तराखण्ड क्रान्ति दल, उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी, उत्तराखण्ड जन संघर्श वाहिनी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, आल इण्डिया मजलिसे इत्तेहादुल मुष्लिमीनके अतिरिक्त अनेक निर्दलीयों की मौजूदगी रहेगी।बावजूद इस सबके मुख्य संघर्श भाजपा व कांग्रेस के मध्य घूमता नजर आएगा। चुनाव के मुद्दों का जहां तक सवाल है सत्ता पक्ष या विपक्षीय दलों के पासकोई ऐसा मुद्दा सामने नहीं आया है जो कि आम मतदाता को अपनी ओर आकर्शित कर रहा हो। सत्तसीन भारतीय जनता पार्टी कोई ऐसा मुद्दा नहीं ला पाई है जिससे सरकार की वापसी के लिए जनता को रिझा सके। हालाकि विपक्ष के पास सरकार की विफलताएं बताने के लिए पर्याप्त स्पेस है। वहीं भाजपा के पास उपलब्धियों फेहरिष्त में गिनाने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा भेजा गया मुफ्त राषन व मुफ्त कोविड वैक्सीन के अतिरिक्त ऐसा कुछ नहीं है। प्रदेष सरकार के खाते में केवल की भारी-भरकम घोशाणाओं के अतिरिक्त ऐसा कुछ खास नहीं है कि प्रान्तीय चुनाव में सत्ता पक्ष का बेड़ा पार करने व विपक्ष को परास्त करने में अमोघ अस्त्र का काम कर सके।भाजपा व कांग्रेस में असन्तुश्टों की कमी नहीं है। दोनो पार्टियां मैनेज कर लेने की टिप्पणी के कर पल्ला झाड़ कर आगे निकलने का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं । टिकट कटने से नाराज पुरोधा भी दोनों दलों में मौजूद हैं।ऐसे में खुन्नस खाए कुछ नेता निर्दलीय के तौर पर मैदान में उतरने को बेताब हैं, तो कुछ प्रतिपक्ष के प्रत्याषी को पिछले दरवाजे से मदद करने में कोई कोर-कसर छोड़ने के पक्ष में नहीं दिखाई दे रहा है, कुछ पाला बदलने की फिराक में। इस चुनाव में सबसे खास बात यह है कि न कोई लहर है न कोई बयार। मोटे तौर पर यह चुनाव प्रत्याषी की व्यक्तिगत छवि व उपलब्धियों पर अभी की परिस्थितियों में होने जा रहा है। यह तो भारतीय मानस है न जाने कब मिजाज बदल जाए, कहा नहीं जा सकता है, कोई चमत्कार हो गया तो बयार किस की बन जाए चुनाव परिणाम आने पर पता चलेगा। मौजूदा हालात बताते हैं कि देष में महंगाई, बेरोजगारी के साथ नीचले स्तर पर भ्रश्टाचार किसी से छिपा नहीं है। केन्द्र सरकार द्वारा अमर षहीद ज्योति के विलय जैसे ऐतिहसिक धरोहरों को सवांरने जैसे निर्णयों को किस अंदाज में भाजपा सरकारें अपने पक्ष तक लेजाती है। ऐसी स्थितियों में विपक्षी दलों की सामर्थ्य बताएगी कि जनता के बीच के इन तमाम अन्तर विरोधों को कितना अपने पक्ष में कर सकती है। विपक्ष के पास भाजपा सरकार की विफलताओं की कमी नहीं है। पांच सालों में तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलना, संगठन व सरकार के बीच नाइत्तेफाकियों का दौर, कांग्रेस से भाजपा में आकर सत्ता सुख के वैभव से रीते मंत्रियों की बेबसी की छटपटाहट, भाजपा में आने के बाद पष्चाताप की अग्नि जैसे तमाम कारण, विपक्ष विषेशकर कांग्रेस के पास हैं। अब सवाल है कि इसका लाभ कितना अपने पक्ष में करने पर कांग्रेस सफल हो सकेगी या मुद्दा उछालने में माहिर भाजपा बाजी मारने में सफल हो सकेगी।
इस बार के चुनाव में न तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादूई करिष्मा चलता दीख रहा है, न कोई लहर किसी भी पक्ष में दिखाई दे रही है। एक जो सामान्य जनमानस के मनोभाव का विज्ञान देखने को मिल रहा है वह यह कि सभी राजनैतिक दलों से निराष दिखाई दे रहा है। भाजपा को डबल इंजन की सरकार के लिए प्रचण्ड बहुमत देने के बाद भी आम जनता के हाथ निराषा ही लगी है। भाजपा से मोह भंग की स्थिति देखने को मिल रही है। मजबूत विपक्ष के तौर पर लोग कांग्रेस की ओर देख रहे थे, पार्टी की धड़ेबाजी को देख कर जनता कुछ तय करने की स्थिति में नहीं दिखाई दे रही है। बावजूद इसके यदि हरीष रावत अन्दरूनी कलह को षान्त करने में सफल हो जाते हैं तो बाजी पलटने में देर नहीं लगेगी। चुनावी बिगुल के ऐन वक्त डा. हरक सिंह रावत का लाख असमंजस के बाद कांग्रेस में वापसी, फायदा करेगी या नुकसान यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे। हरक के आने से आम जन में बहुत अच्छा संदेष नहीं गया है ऐसा जानकार लोगों का मानना है। कांग्रेस का चुनावी चेहरा व कद्दावर नेता, उत्तराखण्ड में कांग्रेस के खेवनहार हरीष रावत की कितनी सहमति-असहमति से हरक सिंह की वापसी हुई या हाईकमान के दबाव ने कितना बेबस किया हरीष रावत को , यह भी कई कारणों को जन्म देने वाला साबित होगा। एक बात तो स्पश्ट है कि हरीष रावत के बिना कांग्रेस के पास उत्तराखण्ड में कोई चेहरा नहीं है जिसके बल पर चुनावी वैतणी पास करने की कांग्रेस सोचे।अबतक के चुनावी इतिहास से तस्दीक होता है कि हरक सिंह रावत को हार नहीं मिली है, कभी न हारने वाले हरक सिंह हरीष रावत के लिए कितने सौभाग्य के दरवाजे खोलने वाले साबित होती है इस बात का भी इंतजार राजनैतिक हलकों में रहेगा।पिछले चुनाओं के बनिस्पत इस चुनाव में पहली बार आम आदमी पार्टी की उपस्थिति ने भाजपा व कांग्रेस दोनों को अपनी मौजदगी का ऐससास कराने का काम किया है। ऐसा भी है कि कई निर्दलीय उम्मीदवारों की उपस्थिति ने राश्ट्रीय राजनीतिक दलों के प्रत्याषियों के पसीने छुड़वा रहे हैं।
कुल मिलाकर चुनाव में परिणामों की दिषा बदलने वालीजनसभाओंमेंकोविड महामारी की भयावह होती स्थिति के ब्रेक ने बुरी तरह प्रभावित कर दिया है। क्योंकि जनसभाओं में भीड़ सामन्य मतदाता का रूझान बदलने का काम करती रही है।चुनाव आयोग के कड़े निर्देषों के कारण खास तौर पर स्टार प्रचारकों की गैर मौजूदगी ने प्रत्यषियों की चिन्ता बढ़ा दी हैं, वह सत्ताधारी हो या विपक्ष दोनों बेचैन नजर आ रहे हैं। चुनावी समीकरणों को प्रभावित करने का माद्दा रखने वाले स्टार प्रचारकों की कमी परिणामों को प्रभावित तो करेगी, यह तय है। इन तमाम कारणों की क्षतिपूर्ति वर्चअल सभाएं नहीं कर सकती हैं। इस बार पार्टल मीडिया की चलेगी। इधर दैनिक अखबारों व इलैक्ट्रानिक मीडिया के प्रबधकों ने साफ कह दिया है कि चुनाव की खबरें उसी प्रत्याषी की लगाई जाएगी जिसका विज्ञापन मिलेगा। बहरहाल परिणाम जो भी हो लेकिन यह चुनाव अपने आप में मजेदार जरूर होने जा रहा है।

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