देहरादून
समान नागरिक संहिता (यूसीसी) समय की मुख्य मांगो में से एक: मुफ्ती शमून क़ासमी
देहरादून: जहां एक और उत्तराखण्ड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू किया गया है तो वहीं दूसरी ओर कई लोगों द्वारा इसके फायदे और नुकसानों पर चर्चाएं जोड़ों पर है कुछ लोगों का मानना है कि यह कानून लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लाने के पीछे चुनावी एजेंडा है तो वहीं दूसरी ओर कई लोग इसके समर्थन में भी नजर आ रहे हैं इसी कड़ी में मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमून कासमी मानते हैं कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) समय की मुख्य मांग है। एक विशेष बातचीत के दौरान मुफ्ती शमून कासमी ने बताया कि उत्तराखंड सरकार द्वारा लाया गया समान नागरिक संहिता कानून यूसीसी इस्लाम के विरुद्ध नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि धार्मिक कुरीतियों पर प्रहार कर उनको और प्रभावी बनाने के लिए यह कानून लाया गया है। उन्होंने कहा कि हलाला और तीन तलाक जैसी कुरीतियां कभी भी इस्लाम पंथ का हिस्सा नहीं रही हैं। इसी तरह बहुविवाह प्रथा भी इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। मुफ्ती शमून ने कहा कि हम सबको यह सोचना चाहिए कि भारत ही एक ऐसा राष्ट्र है जहां मुस्लिम समाज को बराबरी के दर्जे से भी ऊपर रखा गया था। उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया था और अल्पसंख्यकों की दृष्टि से उन्हें हर सुविधाएं दी जा रही हैं। अब जब हमें समान नागरिक संहिता यूसीसी के बारे में जानकारी दी जा रही है तो उस पर अनावश्यक रूप से टीका-टिप्पणी करना और उन्हें तूल देना उचित नहीं है। यह हमारा सौभाग्य है कि विदेशों की तर्ज पर भारत में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध कोई कठोर कार्रवाई नहीं होती। फिलहाल मेरा सभी मुस्लिम समाज के लोगों से आग्रह है कि यूसीसी के नाम पर भड़काने वालों से बचें और अपने मन में भ्रांति और धारणा न बनाए कि यूसीसी से उनका कुछ नुकसान होना है। यह हमें समान नागरिक बनने का अवसर प्रदान करने वाली व्यवस्था है। इसका हमें आगे बढ़कर स्वागत करना चाहिए।