Connect with us

तीर्थों को कभी भी पर्यटन से नहीं जोड़ा जा सकता-उप्रेती सिस्टर

धर्म-संस्कृति

तीर्थों को कभी भी पर्यटन से नहीं जोड़ा जा सकता-उप्रेती सिस्टर

तीर्थ यात्रा- जो सदैव आध्यात्मिक होती है, जिसमें ईश्वर से मिलन की पराकाष्ठा होती है, जहाँ का पंथ दुर्गम और कठिनाइयों से भरा होता है। तीर्थ यात्रा के लिये सबसे ज़्यादा ज़रूरी है स्वयं का पवित्र होना। मन, कर्म, वचन और व्यवहार से स्वयं को पवित्र रखना। सच्चा, सरल, निष्कपट और राग- द्वेष से मुक्त होकर परमात्मा की शरण में जाना, दैवीय वातावरण में उस सकारात्मक ऊर्जा को स्वयं में समाहित करना,स्वयं को पहचानना और अपने अंदर विराजित उस परम अंश का दर्शन करना, यही तीर्थ का माहात्म्य है और यही तीर्थ यात्री की पूँजी।

तीर्थों को कभी भी पर्यटन से नहीं जोड़ा जा सकता है, तीर्थाटन कभी भी पर्यटन नहीं बन सकता है। उसकी अपनी आध्यात्मिक गरिमायें होती हैं। जहाँ ईश्वर का पवित्र वास हो, जिन तीर्थों की श्रद्धालुओं के मन में अपार आस्था हो उनको कभी भी मनोरंजन का, पैसा कमाने का और अपनी दंभ शक्ति का अड्डा नहीं बनाया जा सकता।जिस शक्ति ने हमें बनाया है आज हमने उसी शक्ति का बाज़ारीकरण कर दिया है। अपने ऐशो आराम और मनोरंजन के लिए इस कलियुग में हमने अपने पावन तीर्थ धामों को घेर रखा है।

आदि काल में जिस प्रकार दैत्य शक्तियाँ सदैव देव लोक और स्वर्ग लोक पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिये आक्रमण करते थे उसी प्रकार आज हम मनुष्य के रूप में जन्में कलयुगी दानवों ने ईश्वर के पावन तीर्थ धामों को अपनी नकारात्मक ऊर्जा का अड्डा समझ लिया है। घूमने, फिरने और पिकनिक मनाने के लिये हम सपरिवार छोटे छोटे बच्चों को लेकर पावन धामों में पहुँच रहे हैं। इस यात्रा में आस्था नाममात्र की है।
जो यात्री सच्चे भाव के साथ पावन धामों की यात्रा कर रहा है उसको भी धाम में जाकर दर्शन करने मुश्किल हो गये हैं, आतंकी और शोरगुल वाली भीड़ ने चारों ओर बस शोर ही शोर फैला रखा है।

विकास के नाम पर पवित्र धामों की आध्यात्मिकता को धीरे धीरे पर्यटन में बदलना ही सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। हिमालय जितने कठोर और मज़बूत हैं उससे कहीं अधिक संवेदनशील हैं, आज हम अपने स्वार्थ और लालच के लिये इस हिमालय को नष्ट करने पर तुले हैं इसकी आभा को छिन्न भिन्न कर रहे हैं। अति संवेदनशील स्थान पर कंक्रीट के जंगल बन रहे हैं, प्राकृतिक संपदा को नष्ट किया जा रहा है। आज हम इस प्रकृति का अंत करने पर तुले हैं पता नहीं जब हम मानवों का अंत होगा तो वो कितना भयावह होगा।

आज हिमालय के उच्च शिखरों में भी हिमपात कम हो रहा है लगातार उनकी आभा में कलयुगी मानव की गिद्ध दृष्टि जमी हुई है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं, इन उच्च क्षृंखलाओं में हर दिन अनगिनत हॉलीकॉप्टर की कानफोड़ू ध्वनि गूँजती रहती है, जिसका कुप्रभाव हिमालय को भुगतान पड़ रहा है।
हमें ये सोचना समझना होगा कि हिमालय केवल पर्वतों की क्षृंखला नहीं है। हिमालय प्रतीक है उच्चता का। हिमालय उच्च है, श्रेष्ठ है, कठोर है लेकिन सौम्यता की मूर्ति भी है, अडिग है, अटल है, धैर्य और अखंडता का प्रतीक है। पावन हिमालय में देवों का वास है, हिमालय में विराजित धाम युगों युगों से मानव जाती की रक्षा कर रहे हैं। लेकिन हमने तो शायद उन्हें समाप्त करने का निर्णय ही ले रखा है तभी तो इस तरह उस देवभूमि के साथ नित अत्याचार ही हो रहा है, उसका शोषण ही हो रहा है, उसका दोहन ही हो रहा है।
कहाँ जाकर रुकेंगे हम?
कहाँ जाकर समाप्त होगी हमारी ये लोभी प्रवृत्ति?

तीर्थों को हमने बस अपना अड्डा बना लिया है। कोई लूट खसोट कर रहा है, कोई भीड़ में खड़ा होकर राक्षसी अट्टहास कर रहा है, कोई नवजात बच्चों के साथ पावन धामों में पिकनिक मना रहा है, कोई वीआईपी बनकर अपनी झूठी शान दिखा रहा है, कोई रिकॉर्ड बनाना चाहता है, कोई अनावश्यक ध्वनि प्रदूषण करने के लिए भारी भारी वाद्य यंत्रों को पीट पीट कर हो हल्ला मचा रहा है, तो कोई प्रकृति को तबाह करना चाहता है। हर कोई इन पावन धामों की आभा को समाप्त करने पर तुला हुआ है।
समझ नहीं आता कि इस अति संवेदनशील स्थान पर कौन इतने बड़े बड़े वाद्य बजाने की अनुमति दे रहा है, ना कोई इनको रोक रहा है ना कोई बहिष्कार। मंदिरों के मुख्य प्रांगण में एकत्रित होकर ये ईश्वर को तो प्रसन्न करें या ना करें लेकिन भयंकर ज़ोर शोर के साथ बस हिमालय के उच्च शिखरों को विचलित ही कर रहे हैं, जिसकी ध्वनि से ना जाने क्या क्या तबाही हो सकती है।

ये हमें और हमारे आला अफ़सरों, नौकरशाहों को सोचना पड़ेगा कि स्थान स्थान और भौगोलिक परस्तिथियों के अनुसार हम एक ही नियम सब जगह लागू नहीं कर सकते हैं। ईश्वर के पावन धामों से अत्यधिक भीड़ का बोझ स्वयं प्रकृति के किसी भयावह तबाही को निमंत्रण देना है।

ये रुकना चाहिए, हिसाब से व सख़्त नियमों के साथ यात्रा संपन्न होनी चाहिए। जिससे की वो श्रद्धालु भी बस एक बार आराम से दर्शन कर सकें जो सरल और निष्कपट मन से पूजा अर्चना करना चाहते हैं, अपनी यात्रा के हर पग को ईश्वर को समर्पित करते हैं लेकिन इन दानवी भीड़ के बीच में वो भी कहीं ना कहीं असहाय से प्रतीत होते हैं जब उन्हें ईश्वर के पावन धामों में दर्शन के लिए रात दिन एक करना पड़ता है।

कहते हैं किसी भी चीज की अति हमेशा भयावह ही होती है। आज हम तुच्छ मानव स्वयं को सर्वोपरि समझकर ईश्वर को टक्कर देने पर तुले हैं, हम दंभी उस परमात्मा की शक्ति को ललकार रहे हैं लेकिन जिस दिन वो हमें मसलेगा हमारा शायद अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। अगर हम नहीं सुधरे तो वो दिन दूर नहीं जब चहूँ ओर बस त्रहिमाम होगा, क्योंकि हमारी बिसात ही क्या है उस परमशक्ति के आगे.

लेख- Upreti Sisters

Neerja Upreti

Jyoti Upreti

Ad Ad

प्रतिपक्ष संवाद उत्तराखंड तथा देश-विदेश की ताज़ा ख़बरों का एक डिजिटल माध्यम है। अपने क्षेत्र की ख़बरों को प्रसारित करने हेतु हमसे संपर्क करें  – [email protected]

More in धर्म-संस्कृति

Trending News

धर्म-संस्कृति

राशिफल अक्टूबर 2024

About

प्रतिपक्ष संवाद उत्तराखंड तथा देश-विदेश की ताज़ा ख़बरों का एक डिजिटल माध्यम है। अपने क्षेत्र की ख़बरों को प्रसारित करने हेतु हमसे संपर्क करें  – [email protected]

Editor

Editor: Vinod Joshi
Mobile: +91 86306 17236
Email: [email protected]

You cannot copy content of this page