उत्तराखण्ड
हल्द्वानी में “बेवजह” कार्यक्रम।
उत्तराखंड के लोग अब अपनी संस्कृति अपनी जड़ों की ओर वापस आने लगे है और अपनों को एक साथ देखना चाह रहे है। अब हम उत्तराखंडी छू को साकार करने में लगे है छोटे बड़े आयोजन कर एक दूसरे से कनेक्ट होने के जुगाड़ देख रहे है इसी क्रम में पिछले वर्ष से हल्द्वानी के चेतनाशील व्यक्तियों ने एक अलग किस्म का कार्यक्रम ढूंढ़ लिया है “बेवजह” “बेवजह 2.0”. हल्द्वानी एवं आसपास के सभी चेतनशील लोगों एवं उनके परिवारों के लिए बिना किसी वजह मिलने का यह कार्यक्रम है।
जिसके पंडित है प्रभात उप्रेती जी हां यहीं है नामकरण करने वाले पंडित 2 वर्ष पहले उनके दिमाग में एक खुरापात ने जन्म लिया और जुबान से बोला गया “बेवजह करते हैं..”
और पिछले साल इन चेतनसील लोगों का मजेदार मिलन हुआ बेवजह…जिसमें लोग आए, नाचे-गाए, खाए भी और चल दिए भरपूर खुशी से सरोबार होकर… तो उप्रेती जी के जबान पर एक शब्द आया क्या है ये सब “बेवजह” तो शब्द में वेट आ गया और बन गया कार्यक्रम …….
फिर इस बार बेवजह.. नाचना, गाना, हँसना, बोलना और वो सब जो मंच पे होता है…गीत,संगीत, कविता, भाषण या संवाद की कोई विधा हो लेकिन बस बेवजह बिना मंच- बिना मतलब..
संस्कृति, सृजन, साहित्य, नाट्य, पर्यावरण और जीवन के किसी भी आयाम से जुड़ा कोई भी प्राणी जो बेवजह खुश हो सकता है,नाच-गा या हँस सकता है, और वही हुआ कल
रात्रि भोज हुआ और वह सब हुआ जो ऊपर से पढ़ते आ रहे है।