उत्तराखण्ड
श्री कैची धाम’ में 15 जून को, मनाया जाएगा स्थापना दिवस
कैची धाम, भवाली (नैनीताल)। प्रतिवर्ष 15 जून को, उत्तराखंड नैनीताल जनपद स्थित, समुद्र तट से चौदह सौ मीटर की ऊंचाई पर प्रवाहमान, शिप्रा नदी के तट पर, किस्मत बदलने वाले, आस्था व चमत्कार के विश्व विख्यात तीर्थ स्थल, ‘श्री कैची धाम’ का स्थापना दिवस समारोह मनाया जाता रहा है। विगत दो वर्षो में, कोरोना विषाणु संक्रमण की वैश्विक दहशत के कारण, स्थापना दिवस नहीं मनाया जा सका था। विगत अनेक दशकों से मनाया जाने वाला यह स्थापना दिवस, देश-विदेश के बढ़ते लाखों भक्तों की उपस्थिति के कारण, एक विशाल भव्य मेले का रूप धारण कर चुका है।
प्राप्त सूचनानुसार, कैची धाम ट्रस्ट द्वारा पहली बार, सम्पूर्ण सिस्टम को कमप्यूटराइज्ड कर दिया गया है। इस वर्ष 15 जून को, स्थापना दिवस मनाने के लिए, महाराज के अनुयाई बडी सिद्धत से, तैयारी मे जुटे हुए हैं। स्थापना दिवस के सु-अवसर पर, महाराज के देशी-विदेशी अनुयाईयों का, ‘श्री कैची धाम’ पहुचने का क्रम आरंभ हो गया है। ताज्जुब, स्थानीय प्रशासन, राज्य की सरकार व केन्द्र सरकार, आयोजित इस प्रतिष्ठित आयोजन मे, जो उसका विभिन्न बाहरी साख-सुविधाओ हेतु, दायित्व बनता है, उससे विमुख नजर आ रही है। श्री कैची धाम से होकर गुजरने वाला, राष्ट्रीय राजमार्ग, अनेको जगह पर खस्ताहाल है, जिस कारण, उक्त सड़क मार्ग पर अक्सर, लम्बे जाम व अव्यवस्था का आलम देखा जाता रहा है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है।
मान्यता है, कोई भी भक्त, कैची पावन धाम मे पहुंच कर, खाली हाथ नहीं लौटता है। सच्चे मन से सोची उसकी जटिल से जटिल मुराद भी पूरी हो जाती है। विश्व की जानी-मानी हस्तियां, इस सु-विख्यात पावन धाम मे पहुंच, आशीर्वाद लेकर धन्य होती रही हैं। पावन धाम की महिमा श्रद्धालुओ के लिए, अत्यंत श्रद्धेय और अनुकरणीय रही है।
1961 मे पहली बार, श्रीहनुमान जी के अनन्य भक्त, परम पूज्य बाबा श्री नीब करौरी महाराज ने नैनीताल जनपद के इस रमणीक व शांतिप्रिय स्थल की प्राकृतिक छटा को निहारा था। उक्त स्थान पर एक आश्रम बनाने का विचार किया था। अपने एक स्थानीय सहयोगी की मदद से, 15 जून, 1964 को महाराज द्वारा, श्रीहनुमान जी का भव्य मंदिर निर्माण करवा कर, कैची पावन धाम की स्थापना की गई थी। स्थापित धाम में, सुबह और सांय प्रार्थना का आयोजन, नवरात्रियों मे विशेष पूजन व दिव्य चमत्कारी संत, महापुरुष परम पूज्य बाबा श्री नीब करौरी महाराज के चमत्कारो की बदौलत, कैची धाम की महत्ता, देश-विदेश के भक्तो के मध्य बढ़ते चली गई। उक्त धाम, श्रद्धालुओ की आस्था का प्रतीक बन कर, ख्याति के चरम पर उभरता चला गया है।
अकबर पुर, जिला फिरोजाबाद, (उ. प्र.) के किरहीन गांव के नजदीक, निवासरत दुर्गा प्रसाद शर्मा के सम्पन्न ब्राह्मण कुल मे सन् 1900 के आसपास, नीब करौरी महाराज का जन्म हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा किरहीन गांव के स्कूल मे हुई थी। बीसवीं शताब्दी के इस सु-प्रसिद्ध महान संत के बचपन का नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था। ग्यारह वर्ष की छोटी उम्र में ही, विवाह के बाद, संसारिक वस्तुओ से मोह छूट जाने से, जल्द ही उन्होंने घर छोड़ दिया था। पिता द्वारा सात-आठ वर्ष की निरंतर खोज के बाद, सीधे-सादे स्वभाव के पुत्र को गुजरात के बवानिया मोरबी नामक गांव के एक आश्रम मे साधना करते हुए, ढूंढ लिया गया था, जहा महाराज तलैया वाले बाबा के नाम से मशहूर थे। पिता द्वारा पुत्र को गृहस्त जीवन के पालन की हिदायत दिए जाने के बाद, महाराज द्वारा गृहस्त, धार्मिक व सामाजिक जीवन को एक साथ, तन-मन से जीने का काम निभाने की जुगत भिड़ाई गई। गृहस्त जीवन में दो बेटे व एक बेटी हुई।
पुनः कुछ समय बाद, गृहस्त जीवन से महाराज को विरक्ति हो गई थी। 1958 के इर्दगिर्द महाराज ने घर त्याग दिया था। उत्तर भारत मे, साधुओ की तरह वे, अलग-अलग जगहों पर, विचरण करने लगे थे। उन्हे भ्रमण के दौरान, विभिन्न स्थानों मे अलग-अलग नामों, लक्ष्मण दास, हांडी वाला बाबा, तिकोनिया वाला बाबा, चमत्कारी बाबा इत्यादि नामों से जाना जाने लगा। नीब करौरी नामक गांव जिला फरुखाबाद (उ.प्र.) के रेलवे स्टेशन पर महाराज द्वारा दिखाए गए चमत्कार के बाद, महाराज को नीब करौरी नाम से जाना गया। यही नाम बाद के दिनों में नीम करौली नाम से भी पुकारा जाने लगा। इस नाम से भी महाराज को बहुतायत मे, वैश्विक फलक पर जाना जाता है।
जन ज्ञान के मतानुसार, 17 वर्ष की उम्र में महाराज को ज्ञान प्राप्त हो गया था। बचपन से ही संत बन चुके, नीब करौरी महाराज जहां भी गए, भक्तों से यज्ञ भगवान को प्रसन्न करने और भंडारा, लोगों को खिलाने व प्रसन्न रखने के लिए करवाते रहते थे। देश के विभिन्न स्थानों में, श्रीहनुमान जी के मंदिर निर्मित करवाने मे तत्पर रहा करते थे।
9 सितंबर 1973 को अंतिम बार महाराज जी ने कैची पावन धाम से, आगरा को प्रस्थान किया था। 11 सितंबर 1973 को महाराज ने वृंदावन मे शरीर त्याग दिया था। महाराज की समाधि वृंदावन मे निर्मित की गई। साथ ही, कैची धाम, भवाली (नैनीताल), वीरा पुरम (चैन्नई) तथा लखनऊ (उ.प्र) में भी महाराज के अस्थि कलशो को भू-समाधि दी गई थी। भक्तों की महाराज के प्रति आस्था ही है, कि वे लाखों की संख्या में, आज भी उनकी समाधि की तरफ खिचे चले आते हैं, बाबा के अदृश्य आशीर्वाद ग्रहण करने के लिए।
आम आदमी की तरह जिंदगी जीने व आडंबरो से दूर रहने वाले, परम पूज्य बाबा श्री नीब करौरी महाराज, माथे पर तिलक व गले में कंठी माला डालने से परहेज किया करते थे। किसी को अपने पैर नही छूने देते थे। कहते थे, श्रीहनुमान जी के पैर छुओ। हनुमान के उपासक, जप मे केवल राम-राम का नाम, अनवरत जपने वाले, बीसवीं शताब्दी के दिव्य संतो व प्रचंड क्षमताओ वाले भारतीय महापुरुषों मे, नीब करौरी महाराज की चमत्कारिक सिद्धियां व महिमाऐ, अत्यंत श्रद्धेय व अनुकरणीय रही हैं। सिद्ध आत्मा के साथ-साथ, कई प्रकार की सिद्धियों के वे स्वामी रहे हैं। बिना शिक्षा के बोझ मुक्त, दिव्यदर्शी होने से, भक्तों द्वारा समस्या व्यक्त करने से पूर्व उनकी समस्याओं का निदान करने की वे अलौकिक सिद्धि प्राप्त संत थे। अपनी देवीय ऊर्जा से, अचानक कही भी, भक्तो के मध्य, प्रकट हो जाते थे, उसी प्रकार लुप्त भी।
महाराज जी का मुख्य उद्देश्य, मानव जाति का कल्याण था। उनके कल्याणकारी, चमत्कारी कार्यो के अनगिनत किस्सो ने उन्हे, देश-विदेश में ख्याति अर्जित करवाई थी। महाराज के प्रति आस्था ही मुख्य कारण रहा है, प्रतिवर्ष उनके, आम आदमी से लेकर, अरबपति तक, लाखों भक्त कैची पावन धाम में दर्शन करने के लिए आते हैं। देश-विदेश की बडी-बडी हस्तियां, खुद को यहां आने से, नहीं रोक पाती हैं, महाराज की प्रेरणा पाने हेतु।
हिंदू आध्यात्मिक गुरु के रूप में पूजे जाने वाले और श्रीराम का नाम जपने वाले, परम पूज्य श्री नीब करौरी महाराज को, हनुमान का अवतार माना जाता रहा है। महाराज जी को श्रीहनुमान जी की उपासना से, अनेक चमत्कारिक सिद्धिया प्राप्त थी। महाराज द्वारा स्थापित धाम, श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। महाराज के लाखों भक्त हैं, जिनकी मुराद कैची पावन धाम में आकर पूरी होती है।
कैची पावन धाम में महाराज का समाधि स्थल, भव्य मूर्ति के साथ-साथ, अन्य कई देवी-देवताओ के मंदिर भी हैं। देश-विदेश में 108 मंदिर व आश्रम स्थापित हैं। इन सब मे, सबसे बड़ा ‘ श्री कैची धाम’ भवाली (नैनीताल) व अमेरिका के न्यू मैक्सिको सिटी स्थित, ‘टाउस आश्रम’ है। कैची पावन धाम में कनाडा, यूएस, जर्मनी, फ्रांस समेत अनेकों देशों से भक्त आते रहते हैं। विदेशी भक्तों मे सबसे अधिक संख्या अमेरिकन की होती है।
महाराज के श्रद्धालु भक्तों मे अमेरिकन, एप्पल सीईओ स्टीव जाब्स, सबसे बडी सोशल साइड फैसबुक संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, सु- विख्यात लेखक, रिचर्ड अल्बर्ट, हालिवुड अभिनेत्री जूलिया राबर्टस इत्यादि का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। रिचर्ड अल्बर्ट ने महाराज जी के चमत्कारी कार्यो व विचारों से प्रभावित होकर, महाराज के सानिध्य मे, 1967 के आसपास, कुछ वक्त गुजार, अपने जीवन की दशा व दिशा में अप्रत्याशित बदलाव कर, महाराज के व्यक्तित्व व कृतित्व पर ‘मिरेकल आफ लव’ नामक शीर्षक से पुस्तक की रचना की थी, जिसमे महाराज के चमत्कारो का विस्तार से वर्णन किया गया है। महाराज द्वारा ही रिचर्ड अल्बर्ट को ‘रामदास’ नाम दिया गया था, जिस नाम से वैश्विक फलक पर इस लेखक को अपार ख्याति अर्जित हुई थी।
पश्चिमी दुनिया में बाबा रामदास और बाबा भगवान दास द्वारा, नीब करौरी महाराज के विचारों, कार्यो व चमत्कारों को अपने वक्तव्यो तथा प्रभावशाली लेखनी से इतना प्रचारित, प्रसारित किया कि, महाराज की महिमा को वैश्विक फलक पर बडी संख्या मे जाना पहचाना गया। महाराज के भक्तो की संख्या में, अपार वृद्धि होती चली गई। महाराज के अनुयायी उनके द्वारा बताऐ सिद्धांतों से आज भी मार्ग दर्शन प्राप्त कर प्रगति के पथ पर अग्रसर होते नजर आते हैं।
असाधारण काबिलियत, अनमोल विचारों के धनी, एक अद्भुत गुरु, अलौकिक रूप से अपने भक्तो के साथ सदैव विराजमान रहने वाले, परम पूज्य बाबा श्री नीब करौरी महाराज द्वारा स्थापित, श्री कैची धाम मंदिर मे, भक्तों द्वारा, केवल कंबल चढ़ाने की परम्परा का निर्वाह किया जाता है। धाम की रसोई मे शाकाहारी भोजन भक्तों के लिए बनाया जाता है। वर्षभर भक्तों का कैची पावन धाम के दर्शन करने का सिलसिला चलायमान रहता है।