उत्तराखण्ड
आजादी की लड़ाई देश के लिये लड़ीअपने स्वार्थ के लिये नहीं।
बागेश्वर के पठक्यूड़ा (देवतोली) में स्वर्गीय प्रेम बल्लभ पाठक के घर जन्मे स्व•हरिदत्त पाठक बचपन से ही देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्षशील रहे। अल्पायु मे ही शिक्षाध्ययन छोड़ कर नैनीताल आ कर खादी ग्रामोद्योग विभाग मे काम करने लगे।उन्ही दिनों गांधी जी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर सक्रिय रूप से स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े और खादी ग्रामोद्योग विभाग से त्यागपत्र दे दिया।नैनीताल गवर्नर हाउस पर तिरंगा लहराने के दौरान अंग्रेज अधिकारियों से झड़प हो गई जिसमे कुछ अंग्रेज अधिकारी चोटिल भी हुए। अंग्रेजी हुकूमत ने इन्हें पकड़ने का फरमान जारी किया तो आप स्व• श्री देवकी नन्दन पांण्डे सहित अपने गांव देवतोली के जंगलो मे कई महीनों तक छिप कर रहे।कई पुलिस,पटवारी और तहसीलदार पकड़ने मे असफल रहे । तब तक नेता जी सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिन्द फौज से प्रभावित हो कर उसमें शामिल हो गए।
आजादी के बाद अपने गांव देवतोली आ कर ग्राम सभा के सरपंच के रूप मे बनों के संरक्षण,कमेड़ीदेवी मे मोटर मार्ग, प्राथमिक विद्यालय से ले कर माध्यमिक विद्यालयों के लिए भूमि दिलाने मे आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा। श्री नारायण स्वामी जी से आग्रह कर कमेड़ीदेवी में एक संस्कृत /कृषि विश्वविद्यालय के स्थापना की कार्ययोजना
बनाई और कार्य आरंभ भी हुआ परन्तु कुछ स्थानीय कारणों से कार्य एक संस्कृत विद्यालय तक ही सीमित रह गया।
आजाद भारत सरकार ने सन् ४७ में आजादी के बाद स्वतंत्रता सेनानी स्व•
हरिदत्त पाठक से भी तराई भाबर में जमीन और पुरानी ग्रामोद्योग की नौकरी बहाली का प्रस्ताव भेजा लेकिन आपने प्रस्ताव यह कह कर ठुकरा दिया कि हमने आजादी की लड़ाई भारत की आजादी के लिए लड़ी और हासिल की न कि अपने तुच्छ स्वार्थ और लोभ के लिए।
स्व• हरिदत्त पाठक आजीवन पुरुषार्थ, स्वाभिमान,देशभक्ति और कर्मठता की अटूट भावनाओ से ओतप्रोत अनुकरणीय जीवन जीने के उपरांत सन् १९६५ मे स्वर्ग सिधार गये।