उत्तराखण्ड
जयानन्द भारतीय ने समाज को नई दिशा दी।
हल्द्वानी — स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक जयानंद भारतीय ने समाज में फैले जातिवादी भेदभाव के खिलाफ डोला पालकी आंदोलन का नेतृत्व किया। आजादी से पहले सन् 1923 में सामाजिक समानता के लिए चलाए गए आंदोलन में जयानंद भारतीय ने शिल्पकार परिवारों की बारात को डोला पालकी का अधिकार अपने आंदोलन के माध्यम से दिलाया। उन दिनों शिल्पकार परिवारों की बारात में डोला पालकी का प्रयोग सामाजिक तौर पर प्रतिबंधित था। जयानंद भारतीय ने इस सामाजिक भेदभाव के खिलाफ बड़े स्तर पर आंदोलन किया। जिसके लिए उन्हें सामाजिक तौर पर प्रताड़ित भी होना पड़ा। पर उन्होंने प्रताड़ना सहने के बाद भी अपने आंदोलन से पैर पीछे नहीं खींचे और समाज में एक नई लकीर खींची।
यह बात “भारत जोड़ो अभियान” के तहत काठगोदाम में हुई एक बैठक के दौरान जयानंद भारतीय की 143वीं जयन्ती के अवसर पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन रौतेला ने कहा कि इस अधिकार के लिए भारतीय को अपने ही समाज के बीच एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी और उन्होंने हार नहीं मानी। पर्यटन विशेषज्ञ उमेश तिवारी विश्वास ने कहा की जयानंद भारतीय का आंदोलन कोई छोटा आंदोलन नहीं था। जब समाज में जातिवाद की जकड़न बहुत गहरी थी, तब इस तरह की लड़ाई लड़ना कोई विरले व्यक्तित्व का आदमी ही लड़ सकता था। यह जयानंद भारतीय ने कर दिखाया। उन्होंने इस प्रथा के खिलाफ न केवल सड़क में लड़ाई लड़ी, बल्कि न्यायालय तक में भी इस भेदभाव के खिलाफ वे लड़े। उत्तराखण्ड सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष इस्लाम हुसैन ने कहा कि एक ओर जयानंद भारतीय सामाजिक भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे तो दूसरी ओर हुए अंग्रेजों की दासता से मुक्ति के स्वतंत्रता आंदोलन में भी बेहद सक्रिय रहे। उन्हें इसके लिए कई बार जेल भी जाना पड़ा पर। उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी। पर्यावरण कार्यकर्ता बच्ची सिंह बिष्ट ने कहा कि आज के दौर में जयानंद भारतीय को याद किया जाना और भी आवश्यक है, क्योंकि एक बार फिर से हमारे समाज में जातिवाद का विभेद बढ़ने का खतरा दिखाई देने लगा है। ऐसे में जयानंद भारतीय द्वारा आजादी से पहले किया गया आंदोलन ही इस समाज को एक नई चेतना दे सकता है।
बैठक में यतीश पंत, वरिष्ठ कवि नरेंद्र बंगारी, राजेन्द्र प्रसाद जोशी, प्रदीप कोठारी, निलेश आर्य, बसन्त लाल, संतोष कुमार, मोहन सिंह बिष्ट आदि लोग उपस्थित रहे।