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हिंदी के आभामंडल को बनाने में उस युग के गौण लेखकों का बड़ा महत्व होता है : प्रो. बटरोही

उत्तराखण्ड

हिंदी के आभामंडल को बनाने में उस युग के गौण लेखकों का बड़ा महत्व होता है : प्रो. बटरोही

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाएं विभाग द्वारा हिंदी दिवस समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह का शुरुआत हिंदी भाषा संवर्धन प्रतियोगिता से हुआ। हिंदी दिवस समारोह का दूसरा प्रकल्प हिंदी में हस्ताक्षर का था, जिसका उद्घाटन उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. पीड़ी पंत एवं वित्त नियंत्रक आभा गार्खाल ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सभी कार्मिक मौजूद रहे। हिंदी दिवस समारोह का मुख्य प्रकल्प हिंदी समाज में पढ़ने की संस्कृति का प्रश्न विषय पर व्याख्यान का था। इस अवसर पर युवा कवि – कथाकार अविनाश मिश्र ने कहा कि हिंदी समाज पढ़ रहा है। हिंदी समाज लगातार अपने दायरे को विस्तृत कर रहा है। इन दिनों अस्मिताई विमर्श ने जैसे अपने को अभिव्यक्त किया है, वह अधिक प्रमाणिक है। यह भी हिंदी समाज के पढ़ने की संस्कृति की वजह से विकसित हुई है। पारधीय स्वरों के अपने प्राथमिक अनुभवों को दर्ज करने की वजह से पढ़ने का दायरा बढ़ेगा। हिंदी समाज के पास पाठक हैं पर ऑडियंस नहीं है। कहीं न कहीं हिंदी जनता से दूर हुई है। हिंदी में पाठक नहीं यूजर बढ़े हैं। सरोकारी लोग कम होंगे तो पाठक काम होंगे। पाठकों को यूजर्स ने रिप्लेस कर दिया है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ कथाकार प्रो. लक्ष्मण सिंह बिष्ट बटरोही ने कहा कि अक्सर लोग हिंदी साहित्य हिंदी संस्कृति के अंतर्विरोध से जोड़ कर देखते हैं। किंतु यह हिंदी समाज की अभिव्यक्ति का माध्यम है, पूरा समाज नहीं है। हिंदी का प्रसार निश्चय ही हिंदी के पाठकीय संस्कृति को बढ़ावा दे रहा है। इधर हिंदी समाज की व्यापकता में वृद्धि हुई है। हिंदी समाज का आम पाठक गंभीर साहित्य से दूर हुआ है।
कुलसचिव प्रो. पीड़ी पंत ने हिंदी दिवस की बधाई देते हुए विश्वविद्यालय में राजभाषा हिंदी में कामकाज पर बल दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता मानविकी विद्याशखा के निदेशक प्रो. रेनु प्रकाश ने हिंदी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए हिंदी के उज्ज्वल भविष्य की मंगलकामना दी। बाजारवाद की संस्कृति ने हमारे समाज में पढ़ने की जगह को कम की है। आज एआई के समय में पढ़ने की चुनौती बढ़ी है। अंग्रेजी भाषा जन भाषा बनती गई है किंतु वहां भी पढ़ने की नहीं बल्कि सफल होने की जद्दोजहद अधिक मौजूद है।
कार्यक्रम का स्वागत अनिल कार्की ने, हिंदी दिवस का परिचय पुष्पा बुधलाकोटि, विषय प्रवेश डॉ. राजेंद्र कैड़ा ने धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग के समन्वयक डॉ. शशांक शुक्ल ने और संचालन कुमार मंगलम ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के वित्त नियंत्रक, समस्त संकाय के निदेशक, शिक्षक एवं कार्मिक मौजूद रहे।

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाएं विभाग द्वारा हिंदी दिवस समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह का शुरुआत हिंदी भाषा संवर्धन प्रतियोगिता से हुआ। हिंदी दिवस समारोह का दूसरा प्रकल्प हिंदी में हस्ताक्षर का था, जिसका उद्घाटन उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. पीड़ी पंत एवं वित्त नियंत्रक आभा गार्खाल ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सभी कार्मिक मौजूद रहे। हिंदी दिवस समारोह का मुख्य प्रकल्प हिंदी समाज में पढ़ने की संस्कृति का प्रश्न विषय पर व्याख्यान का था। इस अवसर पर युवा कवि – कथाकार अविनाश मिश्र ने कहा कि हिंदी समाज पढ़ रहा है। हिंदी समाज लगातार अपने दायरे को विस्तृत कर रहा है। इन दिनों अस्मिताई विमर्श ने जैसे अपने को अभिव्यक्त किया है, वह अधिक प्रमाणिक है। यह भी हिंदी समाज के पढ़ने की संस्कृति की वजह से विकसित हुई है। पारधीय स्वरों के अपने प्राथमिक अनुभवों को दर्ज करने की वजह से पढ़ने का दायरा बढ़ेगा। हिंदी समाज के पास पाठक हैं पर ऑडियंस नहीं है। कहीं न कहीं हिंदी जनता से दूर हुई है। हिंदी में पाठक नहीं यूजर बढ़े हैं। सरोकारी लोग कम होंगे तो पाठक काम होंगे। पाठकों को यूजर्स ने रिप्लेस कर दिया है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ कथाकार प्रो. लक्ष्मण सिंह बिष्ट बटरोही ने कहा कि अक्सर लोग हिंदी साहित्य हिंदी संस्कृति के अंतर्विरोध से जोड़ कर देखते हैं। किंतु यह हिंदी समाज की अभिव्यक्ति का माध्यम है, पूरा समाज नहीं है। हिंदी का प्रसार निश्चय ही हिंदी के पाठकीय संस्कृति को बढ़ावा दे रहा है। इधर हिंदी समाज की व्यापकता में वृद्धि हुई है। हिंदी समाज का आम पाठक गंभीर साहित्य से दूर हुआ है।
कुलसचिव प्रो. पीड़ी पंत ने हिंदी दिवस की बधाई देते हुए विश्वविद्यालय में राजभाषा हिंदी में कामकाज पर बल दिया।
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