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कृपांक के टैग-दाग भद्दे हैं।

उत्तराखण्ड

कृपांक के टैग-दाग भद्दे हैं।

चंद्रशेखर जोशी वरिष्ठ पत्रकार।

कोई वाहन पर प्रेस लिखवाए या किसी विभाग का नाम, कोई अपनी जात लिखा ले या पार्टी का पद और नाम। ये कृपा-पात्र याचक व्यक्ति हैं या फिर कोई शातिर।
…कक्षा पास करने की दहलीज पर पहुंचे छात्र पर गर मास्टर की कृपा बरस जाए तो नैय्या पार लग जाती। मास्टर के अधिकार क्षेत्र में अधिकतम 8 अंकों की कृपा रहती। गुजरे जमाने में जिस बच्चे पर यह कृपा गिर जाए, उसका सालभर जीना दूभर हो जाए। पहले उसकी मार्कशीट पर लाल कलम से कृपा-पात्र लिख दिया जाता, घर जाए तो ताने खाता, कक्षा में उसका सिर न उठता। कृपा बरसाने वाला मास्टर दिख जाए तो बालक हर पल नतमस्तक रहता, तंज सहता, बात-बात पर फटकार खाता, घर तक उसका बोझ ढोता, परिवार को भी ऋणी बना देता। हाल के समय में कृपा की यह चाल भी शातिर हो गई। मास्टर जिस बच्चे से चिढ़ जाए, वह परीक्षा कापी में फेल होता, रिजल्ट हाथ में आए तो कृपांक का एहसान रहता। आठ अंकों की इस कृपा की खातिर शैतान बच्चे मास्टर की परिक्रमा करते, कुछ आंख दिखा कर भी कृपा पा लेते।
… किसान के पास अच्छी नस्ल के मवेशी खरीदने को कभी धन पूरा न होता। इस आफत को भांप बैंकों ने भारी ब्याज पर लोन देना शुरू किया। जानवर की कमाई के अधिकतर रुपए बैंकों की तिजोरी में चले जाते। अगले जानवर खरीदने को फिर बैंकों के चक्कर लगते। कुछ किसानों ने जानवर मरा दिखाकर एक पर ही दो-तीन बार लोन ले लिया। बैंक इस चालबाजी को ताड़ गए। बैंकों ने लोन पर लिए जानवरों के जिस्म पर गर्म मुहर गोदना शुरू किया। बाद में ऋण लिए मवेशी के कान पर फुल्ली ठोकने का नियम बना। कुछ समय जानवर का कान काटकर दिखाने की चालाकियां भी चलीं पर यह सफल न हो पाई।
…बाइक का शौक हर युवा के सिर चढ़ा रहता। सरकारी नौकरी वाले तुरत बाइक खरीद लेते, प्राइवेट वाले तकते रहते। मीडिया संस्थानों से जुड़े कर्मियों को लोन भी न मिलता। जो रिपोर्टर होते उन पर या तो कोई नेता की कृपा बरस जाती या फिर कोई अपनी गारंटी पर लोन दिला देता। तब नाज उसे अपनी पत्रकारिता पर होता। वह शोरूम से निकल कर झट वाहन पर प्रेस लिखवाता, फिर रौब-दाब सड़क पर दिखाता। बाद मीडिया संस्थानों के हर व्यक्ति वाहन पर प्रेस लिखने लगे।
…फौज की नौकरी बड़ी कठिन जनाब। इन्हें समाज के दर्शन कम ही होते। लंबी उम्र इनका कोई ठिकाना न बनता। रिटायर होने के बाद फौजी अपनी शौक पूरी करने निकलते। पहले कोई वाहन खरीदते, उसके शीशे पर आर्मी लिखवाते। फिर किक मारते, फर्राटा भरते और बार-बार खुद को निहारते। कभी अकड़ने की कोशिश करते, अगल-बगल चलने वालों को आंखें फाड़ कर घूरते रहते।
…सड़क पर वकीलों का काले कोट से भी भरोसा डिग सा जाता। ये वाहन पर एडवोकेट लिखना कभी न भूलते। यूं चलते कि सड़क पर इनका राज होता, मानो कानून की पोथी ये खुद ही लिखते। खुद साइड मारकर निकल भागते, कोई उलझ गया तो यातायात नियमों का पाठ पढ़ाते। समझ से यह भी परे है कि पुलिस वाले को अपने वाहन पर पुलिस का लोगो छापने की क्या जरूरत है।
…सवर्ण लड़के अलमस्त होते। नाक इनकी जात ही होती। गर बाप भी गाड़ी खरीद कर लाए, तो लोंडा मौका पाकर उस पर ठाकुर लिखा कर लाता। फिर इसकी जो चाल बदलती, वाहन इसका ढाल बन जाता। कभी लहराता टक्कर खाता, कभी पटकता, जल्द पुलिस से पिट भी जाता।
…जो राजनीतिक पार्टी सत्ता झटक ले, उसके पद और झंडे टंगे वाहनों की सड़कों पर रेलमपेल मचती। इनके हार्न बहुत तीखे बजते, ब्रेक पर पांव कम ही पड़ते। सबसे जल्दी इनको रहती, भीड़ से निकलने को आतुर चालक हनुमान गियर की चाहत रखते। ये धूल उड़ाते, कीचड़ उछालते, रैंगते वाहनों को कीड़े-मकौड़े समझते।
…इन बेशर्मो को कौन समझाए, दौड़ते वाहन पर लिखा कोई नहीं पढ़ते। ना ही लिखावट से इज्जत बढ़ती, पुलिस भी इनपर आंखें तरेरती। जाम से इन्हें कोई राहत न मिलती, नियम तोड़ने पर बराबर का दंड पड़ता।
…वैसे, निजी वाहनों में सिर्फ आपात कालीन सेवा पर ही एंबुलेंस लिखने का नियम है। इसके अलावा किसी भी वाहन पर कुछ भी लिखना जुर्म है। अमूमन भ्रष्ट लोग अपने वाहनों पर विशेष श्रेणी लिखा करते हैं। या फिर पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर ऐसे वाहनों से अवैध काम करते हैं।

..कहीं सम्मान पा न सके जो, वो ऐसी हरकतें करते हैं..

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