उत्तराखण्ड
किताबों का यह ढेर गधेरे में मिला।
चंद्रशेखर जोशी (वरिष्ठ पत्रकार)
मामला उत्तराखंड के चंपावत जिले का है। असल में ये किताबें कक्षा छह से आठ तक के बच्चों के लिए स्कूलों को भेजी गई थीं। शिक्षा विभाग के कर्मचारी इस बोझ से थक गए और जंगल के बीच फेंक कर चलते बने।
…वैसे तो ये गधेरे पहाड़ के दूरस्थ इलाकों में बहुतेरे हैं। इनमें ही यहां के लोगों का जीवन निर्भर है। यह गधेरे जब बरसात में उफान पर आते हैं तो कई जिंदगियां लील लेते हैं। इनके जद में आए खेत-खलिहान बर्बाद हो जाते हैं। फिलहाल बच्चों के जीवन की बर्बादी का जिम्मा शिक्षा विभाग ने उठाया है।
…बताया जा रहा है कि पाटी विकासखंड के पोखरी क्षेत्र में उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा विभाग से भेजी गई सैकड़ों किताबें जंगल के बीच एक गधेरे में मिली हैं। पोखरी गांव के मदन सिंह बोहरा ने बताया कि गधेरे में किताबों का बंडल दिखने पर इसकी सूचना विभाग को दी गई। गांव के लोगों ने किताबों के ये बंडल रास्ते तक पहुंचाए, इसके बाद शिक्षा विभाग के कर्मचारी इन्हें न जाने अपने साथ कहां ले गए।
…जनप्रतिधियों के माध्यम से कहा जा रहा है कि अब इसकी जांच होगी। खैर समग्र जांच इस पहाड़ के जीवन की करनी है, जो कभी नहीं हुई। यहां जो नौकरी पा जा जाते हैं वह मालामाल, जो यहां से एक बार चुनाव जीत जाए उनकी कई पीढ़ियां धन-धान्य से परिपूर्ण और इन पहाड़ों का जो एक-दो बार दर्शन कर जाए उसका जीवन धन्य हो जाता है। लेकिन ये सभी यहां के वासिंदों का जीवन नरक करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
… वैसे जांच ऐसी है कि. लाखों किताबें छापने का ठेका जिस प्रकाशन को दिया गया उसके खाते में सरकारी कोष से करोड़ों रुपए भेज दिए गए फिर मंत्री- संतरियों को लाखों का कमीशन पहु़ंचा उसके कुछ छींटे शिक्षा विभाग के अफसरों तक पहुंचे फिर किताबें नदी-गधेरे और अलमारियों तक पहुंची…