उत्तराखण्ड
पीड़ा उनकी समझें जहां शून्य रहा मतदान।
उत्तराखंड में मतदान के लिए शहरों में करीब एक महीने मारा-मारी रही। गांवों में इसका खास फर्क नहीं पड़ा। मतदान के दिन भी ग्रामीण अपने कामों में लगे रहे। समय मिला तो वोट दिया, नहीं तो अपने काम निपटाए।
…धारचूला के 586 मतदाताओं वाले कनार बूथ में एक भी मत नहीं पड़ा। अधिकारियों ने ग्रामीणों को काफी समझाने का प्रयास किया, लेकिन लोग वोट डालने नहीं गए। बेरीनाग के हीपा गांव में 456 मतदाता हैं, जिनमें से सिर्फ 12 लोगों ने वोट दिए। इसके लिए भी दिनभर अधिकारी और प्रत्याशियों के सिपेसालार लोगों को समझाते रहे। इसके अलावा और भी कई जगह यही हाल रहे। वोट देकर एक दिन की सोहरत पाने के खयाल से बहुतेरे दूर रहे।
…पहाड़ों की हालत खराब है। न रोजगार है न ही बीमार पडऩे पर इलाज संभव है। शिक्षा का भी यहां बुरा हाल है। नेता पहाड़ियों को अपमानित कर रहे हैं, इसके खिलाफ भी कोई बोलने वाला नहीं है।
…सत्ताधारी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने राजधानी देहरादून में कहा कि पहाड़ से पलायन करने वाले महानगरों में स्लम बस्तियों में रहते हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने रुद्रपुर रैली में कह दिया कि उनके पास दूर पहाड़ से एक बुजुर्ग महिला का मैसेज आया था। महिला ने कहा कि उनके बेटे महानगरों में हैं, कोई उन्हें नहीं पूछता, मोदी जी ने ही कोरोना के समय उन जैसे बुजुर्गों को भोजन दिया। हालांकि प्रधानमंत्री जी, उनकी समझ में नहीं आता कि पहाड़ की बुजुर्ग महिला उन्हें मैसेज कर ही नहीं सकती, ।
…प्रधानमंत्री की इन बातों पर खूब तालियां बजीं। पर यह पहाड़वासियों का घोर अपमान था। यहां के बेटे ऐसे नहीं होते कि वह मां-बाप का ध्यान न रखते हों। पहाड़ से जाने वालों के पास रोजगार की मजबूरी है। राजनीतिक पार्टियों ने पहाड़ों को खोखला और खाली कर दिया है। अब उनका अपमान भी किया जा रहा है। हालांकि लोग मुखर नहीं हैं, लेकिन समय आने पर अपनी नारजगी भी दिखाते हैं।
..गांव वालों का कहना है, हमें रोजगार चाहिए, सम्मान जनक पगार चाहिए.. लेखक: चंद्रशेखर जोशी वरिष्ठ पत्रकार…..