उत्तर प्रदेश
आचार्य श्री सन्मतिसागर जी महाराज ने जगाई थी शिक्षा की अलख : त्रिलोक चंद जैन
ऋषभ ढाका बागपत
बागपत- त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ा गांव के प्रबंधक एवं प्रमुख समाजसेवी त्रिलोक चंद जैन ने कहा कि भारतीय संस्कृति में अनेक महापुरूषों ने जन्म लेकर अपने क्रिया-कलापों से स्व-पर कल्याण की भावना से समाज को उन्नत बनाने का कार्य किया है।
ऐसे अनेक महापुरूष हुए, जिन्होंने एवं शिक्षा एवं सेवा के क्षेत्र में नये-नये आयाम स्थापित किये हैं। भारतवर्ष के मध्य प्रान्त के चम्बल सम्भाग को सामाजिक विसंगति के लिए डाकूओं की शरण स्थली माना जाता है, लेकिन भूमि पर जिला मुरैना के अन्तर्गत ग्राम बरबाई में एक महान सन्त आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मतिसागर जी महाराज का जन्म 10 नवम्बर 1949 को सुरेश के रूप में कृषक परिवार में बाबूलाल जी एवं सरोज देवी के गृह आंगन हुआ। आप बचपन से ही कुसाग्र बुद्धि एवं अद्भुत प्रतिभा से ओत-प्रेत होते हुए आपका झुकाव अध्यात्म की ओर रहा। आपका बाल्य अवस्था से ही साधु-संतो के साथ लगाव रहा और आपने युवा अवस्था प्रारम्भ होते ही सांसारिक मार्ग त्यागने का निर्णय लिया और 17 फरवरी 1972 में जैन सन्त प्ररम्परा में दीक्षित होकर संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंस आदि अनेक प्राच्य भाषाओं में निष्णान्ता प्राप्त कर समाज सेवा के कार्य के साथ-साथ दूर-दराज के क्षेत्रों में शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करायी। आपने प्रारम्भ में मध्य भारत के सागर, जबलपुर, लखनादौन, सिवनी, सोनागिर, दतिया, मुरैना, भोपाल, ललितपुर आदि अनेक स्थानों पर विद्यालय स्थापित कर शिक्षा को जन-जन के लिए सुलभ बनाया। आपने सदैव जाति सम्प्रदाय से रहित मानव समाज की एकता पर बल दिया एवं मानवीय मूल्यों को जीवन में स्थापित कर समाज को सशक्त बनाने का कार्य किया। आप जीवन पर्यन्त पद यात्रा कर जगह-जगह समाज कल्याण के लिए कार्य करते हुए सन् 1997 में उत्तर भारत में शिक्षा के लिए लोगों को प्रेरित किया और समाज के सहयोग से बुढ़ाना जिला मुज्जफरनगर में जैन कन्या विद्यालय की स्थापना कराई तथा बागपत जिले के अन्तर्गत अतियश क्षेत्र बड़ागाँव में विश्व की अनुपम कृति त्रिलोकतीर्थ का निर्माण कर पूरे देश में जनपद बागपत का नाम रोशन कर समाज को अहिंसा, करूणा का सदेश देते हुए स्याद्वाद जैन विद्यालय एवं गुरुकुल स्थापित कराया तथा सेवा कार्य के लिए वृद्धाश्रम व गऊशाला आदि संचालित कराये। आचार्य श्री के बारे जितना लिखा जाये उतना कम है, क्योंकि आपका पूरा जीवन समाज के विकास एवं धर्म के उत्थान में तथा दीन-दुखियों, गरीबों, असहाय एवं जरूरतमंदो के हित में व्यतीत हुआ। 14 मार्च वर्ष 2013 को आप अपनी जीवन यात्रा पूर्ण कर समाधि को प्राप्त हुए।