उत्तराखण्ड
लीसा ठेकेदार की मनमानी से ग्रामीणों में रोष, पर्यावरण को हो रहे नुकसान की भरपाई की माँग।
रिपोर्टःमदन मधुकर
गरमपानी ( बेतालघाट ), विकासखण्ड के खैरनी, रहेली, थापली व हल्सों ग्राम सभाओं से लगे वन्य क्षेत्रों चल रहे लीसा दोहन कार्यों में लीसा ठेकेदार व सम्बन्धित वन कर्मियों की लगातार बढ़ती मनमानी पर और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाये जाने को लेकर उपरोक्त गाँवों के लोगों में भारी रोष व्याप्त है। ग्रामीणों द्वारा इस बाबत वन विभाग के अधिकारियों एवं स्थानीय जनप्रतिनिधियों को लिखित में और मौखिक रूप से भी कई बार शिकायत कर मनमानी पर अंकुश लगाने की माग की गयी, परन्तु किसी भी स्तर से कोई कार्यवाही करने की जरूरत अब तक नहीं समझी गयी । शिकायतों की लगातार अनदेखी पर आक्रोशित ग्रामीण अब आन्दोलन की राह पकड़ने का मन बना रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि विकासखण्ड बेतालघाट अन्तर्गत ग्राम सभा खैरनी, थापली, हल्सों की सीमाओं से लगे वन्य क्षेत्रों में इन दिनों चीड़ के पेड़ों से लीसा दोहन व निकासी कार्य चल रहा है। हर बार की तरह इस बार भी ठेकेदार व वन कर्मियों की मिलीभगत के चलते निर्धारित संख्या में स्वीकृत चीड़ के वृक्षों की तुलना में कई गुना अधिक वृक्षों पर बड़े-बड़े घाव करके उन पर कैरुए यानी टिन के त्रिकोण डिब्बे जड़ दिये गये । इतना ही नहीं चीड़ के छोटे पेड़ों को भी नहीं बक्शा गया । इस तरह अनाप-शनाप लीसा दोहन से जहाँ एक ओर क्षेत्र की वन सम्पदा से खिलवाड़ किया जा रहा है, वहीं पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
वन आरक्षी से लेकर वन दारोगा व रेंजर को ग्रामीणों द्वारा कई बार सूचना दिये जाने पर भी ठेकेदार की मनमानी लगातार जारी है। सम्बन्धित ग्राम प्रधानों की उदासीनता पर भी ग्रामीणों में गुस्सा है। क्षेत्र के एक सामाजिक कार्यकर्ता कृपाल सिंह ने बताया कि लीसा दोहन में नियम-कायदों की अनदेखी कोई नई बात नहीं है। जब भी वन विभाग द्वारा इस बाबत ठेका दिया जाता है, उसमें बहुत कम पेड़ चिन्हित कर दर्शाए जाते हैं, जबकि बाद में मिलीभगत कर कई गुना अधिक पेड़ों से लीसा निकाला जाता है। कृपाल सिंह ने कहा कि यदि यही सब चलता रहा तो धरना-प्रदर्शन व आन्दोलन के अलावा ग्रामीणों के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है।