उत्तराखण्ड
राज्यपालों की कार्य शैली पर टिप्पणी,,,,
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि राज्यपाल के पास राज्य विधानमंडल से पारित विधेयकों को रोकने के लिए पूर्ण या आंशिक (पॉकेट वीटो) किसी तरह का वीटो पावर नहीं है। विधेयकों को लटकाए रखना अवैध है। राज्यपाल को निर्वाचित सरकार की सलाह से ही काम करना होगा। संविधान के अनुच्छेद-200 के तहत उनके पास अपना कोई विवेकाधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा, जनता की पसंद में बाधा बनना राज्यपाल की सांविधानिक शपथ का उल्लंघन होगा और उन्हें राजनीतिक विचारों से संचालित नहीं होना चाहिए।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने बड़ा कदम उठाते हुए राज्यपालों को विधानमंडल से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समयसीमा भी तय कर दी, क्योंकि संविधान के प्रावधानों में अभी तक इसके लिए समयसीमा तय नहीं थी।











