देहरादून
संस्कृति विभाग का गजब कारनामा, पदमश्री बसंती बिष्ट का भुगतान नहीं किया
गुणानंद जखमोला (वरिष्ठ पत्रकार)
- न केदारनाथ का भुगतान किया, न निनाद का पैसा दिया
- पहले मिलते थे 25 हजार, अब घटा कर कर दिये 7500, वो भी नहीं दिये
70 वर्षीय जागर गायिका बसंती बिष्ट की कला को पूरे देश ने सम्मान दिया। उन्हें भारत सरकार ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान पदमश्री दिया। लेकिन हमारा अपना संस्कृति विभाग न उन्हें सम्मान दे रहा है और न ही उनका भुगतान कर रहा है। उम्र के इस पड़ाव में जबकि विभाग को उन्हें घर बैठकर मानदेय देना चाहिए था, उनका ही भुगतान नहीं किया। लंबित भुगतान के लिए विभाग के चक्कर काट-काट कर पदमश्री घर बैठ गयी हैं लेकिन मजाल क्या है कि संस्कृति विभाग की निदेशक वीना भट्ट के सिर पर जूं रेंगी हो।
पदमश्री बसंती बिष्ट के अनुसार अगस्त माह मे निनाद में वीना भट्ट ने हाथ जोड़े कि दीदी आपको आना है। उनके मुताबिक संस्कृति विभाग ने उनका मेहनताना 7500 रुपये तय किया है। जबकि 2007-08 में उन्हें 25 हजार मिलते थे।
दूरदर्शन और आकाशवाणी में वह ग्रेड ए की कलाकार हैं तो वहां भी उन्हें 30 हजार मिलते हैं। लेकिन संस्कृति विभाग ये 7500 रुपये भी नहीं देता। पदमश्री की पीड़ा है कि लोक कलाकारों के लिए विभाग कभी पसीजता ही नहीं। उनको शोषण हो रहा है। निनाद में उन्हें 50 हजार देने की बात हुई। बिल दिये हैं लेकिन भुगतान नहीं हुआ।
पदमश्री बिष्ट के अनुसार पिछले कई वर्षों से विभाग ने भुगतान ही नहीं किया। 2019 के बिल भी लंबित हैं। गत वर्ष मई में केदारनाथ में दो दिन कार्यक्रम किया। 12 लोगों की टीम घोड़ों पर बैठकर गयी। सामान ढोया। संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने इसके लिए 2 लाख रुपये की मंजूरी दी थी। आज तक चवन्नी नहीं मिली। वह पूछती हैं कि ऐसे में लोक कलाकार कहां जाएं?
आपको बता दूं कि संस्कृति विभाग कितना झूठा है, इसके प्रमाण मेरे द्वारा आरटीआई में ली गयी जानकारी है। विभाग ने अगस्त में चार दिवसीय निनाद कार्यक्रम में लोक कलाकारों को दिये गये भुगतान के बारे में मुझे जानकारी दी कि उनके बिल नहीं मिले हैं, इसलिए भुगतान नहीं किया। जबकि पवनदीप राजन को 19 लाख का भुगतान किया गया। उसे तो बकायदा चार लाख रुपये एडवांस दिये गये। कुछ दिन पहले मुझे आरजे काव्या मिला। उसने निनाद में एंकरिंग की। उसे भी चवन्नी नहीं मिली है। है कोई इस प्रदेश में लोक कलाकारों की सुध लेने वाला।