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विस्थापन का दर्द

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विस्थापन का दर्द

बड़े शहरों का आकर्षण विचित्र है वह लोगों को उसी तरह अपनी तरफ खींचते हैं जैसे आलपिन को कोई बड़ा चुंबक। उसकी परिधि और प्रभाव में आने वाले तमाम गांव कस्बे, लोग उसमें धीरे-धीरे समा जाते हैं। आसपास एक आवर्त सा बनता है जिससे शहर अपनी परछाइयों से, अपने वैभव से और अंत में शेष स्थान को अपने कूड़े से भरता जाता है।


विस्थापन की यह एक अबाध, अनवरत प्रक्रिया है। इसे रोकना कठिन है क्योंकि यही अब हमारे देश में विकास की अवधारणा का मॉडल बन गया है। कभी कभी खुद से ही पूछता हूं कि क्या मनुष्य जीवन कुछ महानगरों में या फिर छोटे-बड़े मझौले कुछ हजार शहरों में ही सीमित हो कर रह गया है। बाकी जगहों पर जीवन के सिर्फ अवशेष रहेंगे, मकानों के उठते-गिरते, बसते-उजडते खण्हर, आसमान की तरफ देखते, अभिशप्त जीवन के उदाहरण भर रह जाएंगे। या वे जिजीविषा से भर उठेंगे और अपने होने को फिर साबित करेंगे?


जो भी हो लेकिन अपना गांव कस्बा छोड़ देना, उसे अपने लिए एक स्थायी इतिहास बना देना सदैव ही सबसे मुश्किल काम है। आप शहर में रहकर गांव के उन जलप्रपातों, गुफा-कंदराओं, पेड़-पौधों, नदी-नालों आदि को कैसे भूल सकते हैं। भावनाओं से भरे क्षणों में जहां सदैव आप एकदम किलकारी भर सकते हैं या सुबक सकते हैं। और इस सब का कोई बहुत बड़ा व्यवहारिक बुद्धि से लबरेज लाभ हानि वाला कारण बताना लगभग नामुमकिन है, दरअसल गांव या आपका कस्बा दोनों साथ-साथ विकसित होते हैं पल्लवित होते हैं एक साथ होते हैं बढ़ते हैं, कभी फूल खिलते हैं नए पत्ते आते हैं तो आपके भीतर भी वह सब दर्ज हो जाता है।


आप समझ रहे होंगे कि यह रूमानियत या भावुकता से भरी बातें हैं। यथार्थ का धरातल तो रोजी-रोटी से है। गांवों,कस्बों और छोटे शहरों का अनियोजित विकास, टूटी सड़कें, तंग गलियां, धूल, गंदगी, बेरोजगारी, जाहिली- काहिली हमारे सामने वास्तविकता के बढ़े जाहिली- काहिली हमारे सामने ओ को आहत करना चाहता हूं। उनके गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ जाकर अपनी गुम हो चुकी पृथ्वी पर लौट आना चाहता हूं, लेकिन यह जटिल खोज है, जटिल लड़ाई है, इसके अनेक मोर्चे हैं, अनगिनत पहलू हैं।

मैं कभी दुबक जाता हूं तो कभी मैदान में आकर लड़ता हूं। लगता है कि एक दिन अपनी गांव रूपी काया को वापस पा लूंगा। कभी लगता है यह तो अलभ्य है, असंभव है।
लेकिन फिर भी यह जीवन जैसे अपने शरीर रूपी गांव को वापस पा लेने की, पुनर्वास की आकांक्षा की, एक अशांत और आशावान दिनचर्या से भरा रहता है।

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