राष्ट्रीय
सपने वे नहीं होते जो नींद में देखे जाते हैं। सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते।
विनोद जोशी (संपादक)
नहरें बनाने वाले यह नहीं समझ पाते कि नदियां अपना रास्ता खुद बना लेती हैं। नदियां अपने उद्गम से निकलकर समुद्र तक का जो रास्ता बनाती हैं, उसमें विस्तार पाने दृष्टि होती है। लंबी यात्रा करने का धैर्य उन्हें मंजिल तक पहुंचाता है। बहुत सारी चीजों को आत्मसात कर उनमें से अच्छी चीजें चुन सकने का विवेक उसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाता है। कई तरह के भूगोल, समाज और इतिहास का छूती वह अपना एक मुकाम बनाती है। नदियां इसीलिये हर समय-काल में हमारी चेतना का आधार होती हैं, हमारी सफलता की यात्रा को न केवल रास्ता देती हैं, बल्कि उसकी सारथी भी बनती हैं। वह जीवन का एक पथ नहीं चुनती, बल्कि उन सभी अपने रास्तों को खोले रखती है, जहां उसका प्रवाह अबाध गति से चले। बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जो नदी के इस दर्शन से ही आगे बढ़ते हैं। उनके लिये समुद्र की अथाह जलराशि का हिस्सा बन जाने के लिये किसी विशेष परिस्थिति की जरूरत नहीं होती, बल्कि वे विषम परिस्थितियों में अपना रास्ता खोज लेती हैं। ऐसी ही एक प्रतिभा हैं- मेजर प्रशांत भट्ट, जिन्होंने अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये किसी भी परिस्थिति को बाधा नहीं माना। उन्होंने परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लिया। समय को अपनी ओर मोड़ दिया। उनकी इसी जिजीविषा ने उन्हें देश की सेना में न केवल अधिकारी बनाया, बल्कि अब देश की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने उन्हें वीरता के लिए प्रतिष्ठित ‘सेना मेडल’ से सम्मानित करने की घोषणा की है। यह सम्मान सेना में कुशल नेतृत्व, कर्तव्यपरायणता, साहस और संवेदनशील मुद्दों को सरलता से हल करने के लिए दिया जाता है।
उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद के कौसानी के रहने वाले मेजर प्रशांत भट्ट की सेना अधिकारी बनने और सेना के प्रतिष्ठित ‘सेना मेडल’ सम्मान पाने तक की कहानी लगन, प्रतिबद्धता, समर्पण, ईमानदारी और लक्ष्य को प्राप्त करने की घोर परिश्रम की इबारत है। वह बचपन से ही कुशाग्र रहे हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर कौसानी में हुई। प्रत्येक व्यक्ति का सपना होता है कि उसके बच्चे घोड़ाखाल जैसे प्रतिष्ठित सैनिक स्कूल में पढ़ें। इस सपने को प्रशांत ने पांचवी के बाद घोड़ाखाल सैनिक स्कूल की परीक्षा पास कर साकार कर दिया था। प्रशांत ने उसी साल नवोदय विद्यालय की परीक्षा भी पास कर ली थी। उनका चयन ताड़ीखेत स्थित नवोदय विद्यालय के लिये हुआ। ताड़ीखेत पढ़ते हुये भी प्रशांत ने घोड़ाखाल सैनिक स्कूल में भर्ती होने की अपनी लालसा को छोड़ा नहीं। उन्होंने नवीं कक्षा के लिये फिर प्रयास किया। जहां चाह, वहां राह को चरितार्थ करते हुये उनका चयन नौंवी कक्षा के लिये घोड़ाखाल में हो गया। यहीं से प्रशांत के लिये नई राह खुली, जीवन का मकसद भी मिलने लगा। कक्षा नवीं से बारहवीं तक की शिक्षा उन्होंने घोड़ाखाल सैनिक स्कूल से की। प्रशांत ने घोड़ाखाल सैनिक स्कूल में भी अपनी प्रतिभा से सबको प्रभावित किया। इस दौरान उन्होंने अपनी शैक्षिक प्रगति के साथ विद्यालय की अन्य रचनात्मक गतिविधियों में प्रमुखता से हिस्सेदारी की। उनमें हर चीज को गहरे तक समझने की नैसर्गिक प्रतिभा थी। इसे उन्होंने अमली जामा भी पहनाया। सैनिक स्कूल में कप्तान का पद बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह असल में नेतृत्व के गुणों को निखारने का पद है। प्रशांत घोड़ाखाल सैनिक स्कूल के कप्तान रहे। प्रशांत ने पढ़ाई के साथ अपनी रचनात्मक गतिविधियों को जारी रखा। उन्हें बारहवीं कक्षा में ‘वेस्ट केडिट’ के साथ ‘गवर्नर्स ट्राफी’ से नवाजा गया। प्रशांत के अंदर आगे बढ़ने की ललक और कुछ करने की जिजीविषा हमेशा बनी रही। जिस लक्ष्य को लेकर वह चल रहे थे, उसमें किसी भी प्रकार की कोताही नहीं बरती। बहुत लगन और मेहनत के साथ वह अपनी पढ़ाई के साथ सेना में अधिकारी बनने के सपने को मूर्त रूप देने में लग गये। इसका ही प्रतिफल था कि उन्होंने 2010 में एनडीए की परीक्षा भी ऑल इंडिया रैंकिंग में 42 वां स्थान प्राप्त कर पास की।
प्रशांत ने तीन साल राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए), खड़कवासला में प्रशिक्षण और डिग्री लेने के बाद एक साल भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए), देहरादून में प्रशिक्षण के साथ रक्षा विज्ञान में स्नात्तकोतर की परीक्षा पास की। देहरादून में प्रशिक्षण के दौरान भी उन्होंने अपनी रचनात्मक गतिविधियों को जारी रखा। इस दौरान उन्हें ‘जैंटलमैन कैडेट’ रहते हुये सिल्वर मेडल से नवाजा गया। इतना ही नहीं प्रशांत ने एक अच्छे एथलीट और धावक के रूप में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उन्हें ‘मिल्खा सिंह ऑफ आईएमए’ खिताब से नवाजा गया। इसके बाद 2014 में उन्हें भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा लेफ्टिनेंट पद पर कमीशन मिला। कमीशन लेने के बाद प्रशांत को सेना में चार महीने का कठोर कमांडो प्रशिक्षण प्राप्त कर भारतीय सेना के स्पेशल फोर्स में तैनाती मिली। दो साल लेफ्टिनेंट रहने के बाद उन्हें कैप्टन पद पर प्रोन्नति मिली। अभी प्रशांत मेजर के पद पर तैनात हैं।
प्रशांत के पिता भुवन मोहन भट्ट उत्तर प्रदेश राज्य वस्त्र निगम में सहायक अभियंता थे। सरकार की नीतियों के कारण यह निगम बंद हो गया। उन्होंने बहुत मेहनत और लगन के साथ प्राइवेट सेक्टर में नौकरी कर अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी। बच्चों को कई बार इस तरह के संस्कार अपने परिवार से भी मिलते हैं। प्रशांत के दादा स्व. हरिदत्त भट्ट प्रधानाचार्य थे। प्रशांत का बचपन उनके सान्निध्य में बीता। अपने दादा से उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली। वे उन्हें सेना के जवानों की बहादुरी के किस्से सुनाया करते थे। इसका प्रभाव भी प्रशांत के जीवन पर पड़ा। प्रशांत को आगे बढ़ाने का श्रेय उनके पिता के समर्पण और मेहनत को जाता है। प्रशांत की माता किरण भट्ट भी उन्हें हमेशा प्रोत्साहित करती रही। प्रशांत के नाना स्व. लक्ष्मीदत्त जोशी भी सेना में कैप्टन थे। प्रशांत जब से सेना में सेवा देनी शुरू की तब से वह कौसानी में प्रतिभाशाली छात्रों को पुरस्कृत करते हैं। देश की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने जब उन्हें ‘सेना मेडल’ से सम्मानित करने की घोषणा की तो यह उनका ही नहीं, बल्कि उन तमाम युवाओं के लिये एक नजीर है जो अभावों या परिस्थियों को प्रगति के लिये जिम्मेदार मान लेते हैं। प्रशांत ने कई मुहावरों के अर्थ बदले हैं तो कई प्रतीकों को भी नये तरह से परिभाषित कर दिया है। बकौल पूर्व राष्ट्रपति और अंतरिक्ष वैज्ञानिक डाॅ. एपीजे अब्दुल कलाम-‘सपने वे नहीं होते जो नींद में देखे जाते हैं। सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते।’ इसी को हकीकत में बदला है प्रशांत ने।