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150 साल पुरानी घड़ी का इतिहास : जो आज भी चलती है ?

उत्तराखण्ड

150 साल पुरानी घड़ी का इतिहास : जो आज भी चलती है ?

देहरादून-अगर आप किसी भी मुख्य शहर में जाते हैं तो अपने शहर के मुख्य स्थान में बने घंटाघर (क्लॉक टावर) को अवश्य ही देखा होगा.. क्लॉक टावर ही वह जगह है जहां से उस क्षेत्र के अनेक स्थानों की दूरी मापी जाती रही है चाहे आप देहरादून,हरिद्वार,दिल्ली या देश के किसी भी जाओ क्लॉक टावर देखने को अवश्य मिलेंगे लेकिन देश में सबसे पुरानी घड़ी देहरादून में लगी थी जिसे अब 150 साल हो गए हैं इस घड़ी को यहां 1874 में लंदन से लाकर लगाया गया था यह घड़ी बहुत ही खास होती थी इस घड़ी में दिन में हर 15 मिनट में घंटी बजती है और सप्ताह में 2 दिन इसमें चाबी भरी जाती थी इसकी टिक टिक अभी भी बंद नहीं हुई है .. तब लोग इसी घड़ी की आवाज सुनकर अपने सारे कामों को करते थे इसी घड़ी से दिन का अनुमान भी लगाया जाता था घंटाघर एक ऐसा टावर है जिसमें एक या अधिक घंटियाँ होती हैं , साल 1874 में गुरुत्वाकर्षण वैज्ञानिक जेम्स पलाडियो बसेवी की याद में स्थापित घड़ी का रख रखाव भारतीय सर्वेक्षण विभाग के कर्मचारियों द्वारा किया जाता है आपको बता दें कि 19वीं शताब्दी तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अफसर को समझ नहीं आ रहा था कि उनका सर्वे पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल से प्रभावित हो रहा है इस प्रेक्षण कार्य की जिम्मेदारी जेम्स पलाडियो बसेवी को सौंपी गई..
उनका जन्म 23 मार्च 1832 को इंग्लैंड में हुआ था 1856 में उनकी नियुक्ति ग्रेड ट्रिगोनोमेट्रिकल सर्वे में हुई 1861 में जब यह भवन ग्रेट ट्रिग्नोमेट्रीकल सर्वे का दफ्तर बना दो बसेवी वहा आए..उन्होंने 1863- 64 में पेंडुलम के माध्यम से गुरुत्वाकर्षण प्रारंभ किया प्रेषण प्रारंभ किया .1871 में उन्हें कश्मीर भेजा गया लेकिन जुलाई 1871 को प्रेक्षण लेते समय उनका निधन हो गया . तब ₹2000 इकट्ठे करके इस घड़ी को खरीदा गया

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