बेरोजगारी
राज्य के हजारों युवाओं के साथ अन्याय, ITI करने वाले छात्रों -छात्राओं के साथ बड़ा धोखा , तो क्या इस तरह बर्बाद हो जाएंगे हजारों युवा ?
(प्रस्तावना )
आखिर हमारा राज्य और देश किस दिशा में जा रहा है, पूंजीवादी व्यवस्था ने देश को नष्ट करने का काम किया है,यहां के युवाओं की जिंदगी , यहां के युवाओं का भविष्य , किस अंधकार की ओर अग्रसर किया जा रहा है आज इसी पर बात करने वाले हैं ।
युवाओं के साथ इस माध्यम से भी हो रहा धोखा
हमने उत्तराखंड के स्कूलों के हाल तो देखे हैं लेकिन जब स्कूल पूरा करने के बाद छात्र अपनी जिंदगी में कुछ करना चाहते हैं तब भी उनके साथ खेला जाता है और यह खेल सरकारों द्वारा खेला जाता है, सरकारों ने राज्यों के युवाओं को कुशल बनने के लिए एक बहुत बड़ी योजना चलाई थी,खूब प्रचार भी हुआ था लेकिन यह योजना खुद बारिश के पानी की तरह ही पहाड़ों की उपजाऊ मिट्टी लेकर नदियों में पहुंची और नदियों से पहुंचते पहुंचते पहुंच गई प्लेन के सिटकुल में।।
पूंजीपतियों को अमीर बना रही हैं सरकारें
आप जब समाजवाद की भावना से हटकर पूंजीवाद की भावना से काम करने लग जाते हैं तब इस तरह की परेशानी देखने को हमेशा से ही मिलती रही है समाजवाद और उदारवाद की भावना को नष्ट करने का काम वर्तमान की सरकारों ने किया है , हमारे देश में कुछ पूंजीतियों को ही अमीर बनने के लिए योजनाएं बनती हैं इस तरह सतत् विकास का मजाक बनाया जा रहा है और यही कारण है कि देश में सभी जगह सभी कंपनियां ठेकेदारों के अधिपत्य से संचालित हो रही हैं सीधे-सीधे शब्दों में बात करूं तो देश में आर्थिक रूप से समानता लाने की बात ही बकवास है।।
सरकार के फेल होते दावे
चीन और नेपाल से लगे सीमांत इलाकों में, विकास योजनाओं को बढ़ावा देने के साथ कौसल विकास की मदद से युवाओं को प्रशिक्षित करने के दावे किए गए जो फैल हो गए हैं , यहां तक कि आईटीआई के माध्यम से दिए जा रहे कौशल में शक्ति नजर नहीं आती, मुझे पर्वतीय क्षेत्रों में ITI से कोई कौशल नहीं दिखता ना ही सरकार के द्वारा तकनीकी शिक्षा सही रूप में पटरी में उतर पाई है।नहीं तो क्या कारण है 2 साल इलेक्ट्रिशियन की पढ़ाई करने के बाद भी एक छात्र कुशल इलेक्ट्रीशियन नहीं बन पा रहा है बल्कि उसे कुशल इलेक्ट्रीशियन बनने के लिए मात्र दो महीने का वक्त ही लगता है कुछ लोग अब यहां पर कहेंगे कि आजकल के छात्र ही मेहनत नहीं करते लेकिन मैं इस बात से वास्ता नहीं रखता हूं बल्कि मुझे लगता है हमारे देश का हर युवा सामर्थ्यवान है बस उसे सामर्थ्यवान बनाने की जरूरत है ।
पूरा मामला यह है जिससे युवाओं में गुस्सा
पहाड़ के इलाकों में खुले पिथौरागढ़ में आठ, चंपावत में पांच, चमोली में तीन और उत्तरकाशी में दो राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान यानी (आईटीआई) का संचालन करने में सरकारी तंत्र फेल साबित हो गया है। आलम ये है कि प्रदेश के पूर्व में संचालित 38 आईटीआई में मूलभूत सुविधाओं के अभाव में ताले लटक गए है जबकि आठ आईटीआई कागजों से धरातल पर नहीं उतर पाई हैं।प्रदेश में NCVT से मान्यता प्राप्त 91 आईटीआई में से उखीमठ, देथाल और अंजनीसैड़ आईटीआई बंद हो चुके है जबकि SCVT से मान्यता प्राप्त 54 आईटीआई में से 35 में ताले लटके हैं। प्रदेश में संचालित कुल 107 आईटीआई ऐसे हैं जो सुविधाओं के अभाव में दूसरे आईटीआई में चल रहे हैं।
आखिर इस तरह कैसे बनेंगे कुशल
खुद सोचो ना ही वहां छात्रों के लिए सुविधाएं हैं और ना ही अनुदेशक तो बच्चे कैसे कुशल तैयार होंगे और जब कुशलता नहीं आएगी तो वह मजदूर ही बनेंगे इसलिए हमने शुरुआत में कहा था की कुशलता के नाम पर मजदूर तैयार किए जा रहे हैं , आंकड़े कहते हैं प्रदेश के आईटीआई में प्रशिक्षकों के 1386 पद स्वीकृत हैं। इनमें से 471 नियमित अनुदेशक हैं जबकि 176 उपनल के माध्यम से रखे गए हैं। और रिक्त पड़े पदों की संख्या 739 है। इसके साथ ही एनसीवीटी से मान्यता प्राप्त 91 आईटीआई में संबद्ध 681 ट्रेड यूनिट में 14565 छात्र छात्राओं के पढ़ने की क्षमता थी लेकिन वर्तमान में 570 ट्रेड यूनिट ही संचालित हो रही हैं। इनमें 12244 छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर सकते हैं लेकिन फिर भी मात्र 9291 छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं। अप्रैल 2024 तक के आंकड़े के अनुसार यहां प्रथम वर्ष में 5,907 और दूसरे वर्ष में 3,384 छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर रहे हैं इससे साफ है कि जब आईटीआई करने के बाद भी युवाओं को सही नौकरी नहीं मिल पा रही है तो उनकी आईटीआई के प्रति रुचि घट रही है और जो सरकार युवाओं को कुशल बनाने का दावा करती है वह कुशल नहीं और मजदूर बन रहे हैं ।
बिना शिक्षा से क्रांति आना संभव नहीं है
अगर यह योजनाएं सही से जमीनी स्तर में उतरती तो उत्तराखंड से बेरोजगारी बहुत बड़े स्तर से कम हो सकती थी लेकिन बिना शिक्षा से क्रांति आना संभव नहीं है पहले स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती है और उसके बाद छात्र- छात्राएं आईटीआई जैसा कुछ कोर्स भी करते हैं तो वह कुशल नहीं बन पाते हैं जिसके कारण उनको 10000 रुपए में अपनी जवानी शहरों में जाकर खपानी पड़ती है और इसे ही हमने पहाड़ की उपजाऊ मिट्टी को शहर के कीचड़ में आना कहा है ।। इस बारे में कौशल विकास एवं सेवायोजन मंत्री सौरभ बहुगुणा जी क्या सोचते हैं मुझे नहीं पता लेकिन उत्तराखंड का युवा अच्छी पढ़ाई चाहता है अच्छा कौशल चाहता है ।।