हल्द्वानी
करोड़ों लुटाए पटाखों में।
कुमाऊं के द्वार हल्द्वानी में जनता ने पटाखों में लगभग 2.50 करोड़ धुंआ कर दिये।दीपावली का पर्व लोगों ने बड़े उत्साह से मनाया। घरों और प्रतिष्ठानों में शुभ मुहूर्त में पूजा-अर्चना की। इसके बाद जमकर आतिशबाजी के साथ दीपावली का जश्न मनाया।
एमबी इंटर कॉलेज मैदान रामलीला मैदान समेत शहर के आसपास के क्षेत्रों में करीब 150 से अधिक लाइसेंस वाली पटाखों की दुकानें लगी थीं। एमबी में करीब 60 लाइसेंसी दुकानें थीं। जिनमें जमकर पटाखों की बिक्री हुई। दीपावली की रात तक लोग पटाखों की खरीदारी करते नजर आए। जिससे देर रात तक आसमान में पटाखों की चमक और शोर सुनाई देता रहा।
पटाखा कारोबारीयों ने बताया कि इस बार लगभग 2 करोड़ 50 लाख के कारोबार का अनुमान है। पिछली बार भी इतना ही कारोबार हुआ था। बताया कि बच्चों और युवाओं को तेज आवाज वाले पटाखों का क्रेज था। इको फ्रेंडली पटाखों की भी काफी बिक्री हुई। स्काई शॉट, सुपर स्टार रॉकेट, परंपरागत फुलझड़ी, चकरी, अनार और रॉकेट भी लोगों ने खरीदे। कुल मिलाकर हल्द्वानी वालों ने दिल खोल कर धुंआ उड़ाया जो कि काफी नुकसान दायक है।
पटाखों से निकलने वाले रसायन और विषाक्त पदार्थ, जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर, वायु की गुणवत्ता और मानव स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डाल सकते हैं. ये प्रदूषक श्वसन संबंधी समस्याओं को बढ़ा सकते हैं, विशेषकर बच्चों और बुजुर्गों में. इसके अतिरिक्त, वे धुंध के निर्माण, विजिबिलिटी को कम करने और वायु गुणवत्ता को और खराब करने में योगदान करते हैं.
आतिशबाजी बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले पाउडर में पोटेशियम परक्लोरेट, बेरियम नाइट्रेट, पर्लाइट पाउडर, मैग्नीशियम-एल्यूमीनियम मिश्रण, एल्यूमीनियम पाउडर, टाइटेनियम पाउडर, ब्रिमस्टोन, कैल्शियम क्लोराइड, सोडियम नाइट्रेट, बेरियम क्लोराइड, कॉपर क्लोराइड और बहुत कुछ शामिल हैं. आतिशबाजी में जो हरा रंग आप देखते हैं, वह बेरियम की उपस्थिति के कारण होता है, जबकि नीला रंग तांबे का परिणाम होता है, और नारंगी रंग कैल्शियम की मदद से बनता है. यह सभी हवा को प्रदूषित करने का काम करते हैं।