राष्ट्रीय
कदीम जमाने की इंजीनियरिंग का चमत्कार है
चंद्रशेखर जोशी (वरिष्ठ पत्रकार)-
इसकी उत्पत्ति के लिए जाति-धर्म पर न जाना। यह पतलून करीब तीन हजार साल पुरानी है। यह प्राचीन महान बुनकरों का शिल्प है। पैंट का यह शुरुआती डिजाइन लाजवाब है।
…ऐसा बताते हैं कि करीब 1000-1200 ईसा पूर्व पश्चिमी चीन में एक दफनाए गए व्यक्ति को यह पतलून पहनाई गई थी। उसने ऊन से बुनी इस पतलून के साथ पोंचों पहना था, जिसे कमर पर बेल्ट से बांधा था, टखने तक ऊंचे जूते थे, उसके सिर पर सीपियों और कांसे की चकतियों का शिरस्त्राण (हेलमेट) सजा था। उस व्यक्ति को अब टर्फन मैन नाम दिया गया है।
…हाल ही में पुरातत्वविदों ने दुनिया की इस सबसे पुरानी पतलून के रहस्य खोजे। बुनकरों ने इसे बनाने में कई तकनीकों का इस्तेमाल किया था। पतलून इस तरह डिजाइन की गई थी कि यह कुछ जगहों पर लचीली थी और कुछ जगहों पर चुस्त, लेकिन मजबूत।
…कब्र से मिली अन्य वस्तुओं से लगता है कि वह घुड़सवार योद्धा रहा होगा। यह बेहद लचीली लेकिन घुटनों पर अतिरिक्त मजबूत बनी है। विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि चीन के बुनकर तब पूरे कपड़े को एक ही तरह के ऊन/धागे से बुनते हुए विभिन्न बुनाई तकनीकों का उपयोग किया करते थे।
…जर्मन आर्कियोलॉजिकल इंस्टीट्यूट की पुरातत्वविद मेयके वैगनर और उनके साथियों ने इस प्राचीन ऊनी पतलून का बारीकी से अध्ययन किया। अध्ययन में पता चला कि अधिकांश पतलून को ट्विल तकनीक से बुना गया है, यही तकनीक आजकल की जींस में अपनाई जाती है। खिंचाव से कपड़ा फटने की गुंजाइश को और कम करने के लिए पतलून के कमर वाले हिस्से को बीच में थोड़ा चौड़ा बनाया गया था।
…लेकिन तब मनुष्य को सिर्फ लचीलापन ही नहीं चाहिए था। लिहाजा घुटनों वाले हिस्से में मजबूती देने के लिए एक अलग बुनाई पद्धति (टेपेस्ट्री) का उपयोग किया गया था। इस तकनीक से कपड़ा कम लचीला लेकिन मोटा और मजबूत बन जाता है। कमरबंद के लिए तीसरे तरह की बुनाई तकनीक उपयोग की गई थी, ताकि घुड़सवारी के दौरान कोई वार्डरोब समस्या पैदा न हो।
…सबसे बड़ी बात तो यह है कि पतलून के ये सभी हिस्से एक साथ ही बुने गए थे, कपड़े में इनके बीच सिलाई या जोड़ का कोई निशान नहीं मिला।
…यह टर्फन पतलून बेहद कामकाजी होने के साथ खूबसूरत भी बनाई गई थी। जांघ वाले हिस्से की बुनाई में बुनकरों ने सफेद रंग पर भूरे रंग की धारियां बनाने के लिए अलग-अलग रंगों के धागों का बारी-बारी उपयोग किया था। टखनों और पिंडलियों वाले हिस्सों को जिगजैग धारियों से सजाया था।
…इस पतलून को देखकर शोधकर्ताओं का अनुमान है कि टर्फनमैन संस्कृति का मेसोपोटामिया के लोगों के साथ कुछ वास्ता रहा होगा। पतलून के अन्य पहलू आधुनिक कजाकस्तान से लेकर पूर्वी एशिया तक के लोगों से संपर्क के संकेत देते हैं। घुटनों पर टेढ़े में बनीं इंटरलॉकिंग टी-आकृतियों का पैटर्न चीन में 3300 साल पुराने एक स्थल से मिले कांसे के पात्रों पर बने डिजाइन और पश्चिमी साइबेरिया में 3800 से 3000 साल पुराने स्थल से मिले मिट्टी के बर्तनों पर बनी डिजाइन से मेल खाते हैं। पतलून और ये पात्र लगभग एक ही समय के हैं, लेकिन ये एक जगह पर नहीं बल्कि एक-दूसरे से लगभग 3,000 किलोमीटर की दूरी पर स्थित थे। पतलून के घुटनों को मजबूती देने वाली टेपेस्ट्री बुनाई सबसे पहले दक्षिण-पश्चिमी एशिया में विकसित की गई थी। ट्विल तकनीक संभवत: उत्तर-पश्चिमी एशिया में विकसित हुई थी। पतलून का यह आविष्कार खानाबदोश जीवन में हजारों किलोमीटर दूर स्थित संस्कृतियों की विभिन्न बुनाई तकनीकों का मेल है।
..लिहाजा मानव समाज के विकास की हर-एक चीज विविध संस्कृतियों का अद्भुत योग है। किसी एक मजहब, नस्ल या जाति को महान बताना भारी मूर्खता है..