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राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) श्रीनगर में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

उत्तराखण्ड

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) श्रीनगर में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

श्रीनगर गढ़वाल – राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) श्रीनगर में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया “कृषि योग्य भूमि की बात हो या महासागरों के जलीय जीवन की, पीने के पानी की बात हो या हम जिस हवा में सांस लेते हैं, इन सभी को दूषित करने में प्लास्टिक कचरे का प्रभाव सर्वव्यापी है। आज प्लास्टिक प्रदूषण सबसे महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है, जिसका सामना समूचा विश्व कर रहा है।” यह बात राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) , उत्तराखंड के माननीय निदेशक प्रोफेसर ललित कुमार अवस्थी ने विश्व पर्यावरण दिवस पर आयोजित कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह के दौरान कही।


एनआईटी, उत्तराखंड में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्लास्टिक कचरे के पर्यावरणीय एवं जैविक दुष्प्रभावों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए एक विशेषज्ञ व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में निदेशक प्रोफेसर ललित कुमार अवस्थी बतौर मुख्य अतिथि और डॉ सुनील कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद थे।
समारोह में श्रोताओ को सम्बोधित करते हुए प्रोफेसर अवस्थी ने कहा कि यद्यपि प्लास्टिक कचरे पर नियंत्रण पाने के लिए किये जा रहे वैश्विक अभियान, पर्यावरण संरक्षण के अब तक के सबसे तेज अभियानों में से एक है। परन्तु बढ़ते प्लास्टिक उत्पादन के कारण यह अभियान समुद्र में बहने वाले प्लास्टिक की वार्षिक मात्रा में कमी लाने में नाकाम रहा है। उन्होंने कहा कि एक अनुमान के मुताबिक अगले 20 वर्षों में प्लास्टिक उत्पादन दोगुना होने की उम्मीद है। यदि समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की गई तो 2060 तक प्लास्टिक प्रदूषण तीन गुना हो जाएगा।
उन्होंने आगे कहा कि प्लास्टिक के बारे में ध्यान देने वाली एक महत्वपूर्ण बात यह है की ये पूरी तरह से ख़राब नहीं होते हैं, और फोटो-डिग्रेडेशन के माध्यम से माइक्रोप्लास्टिक में परिवर्तित हो जाते जो कि विषाक्त होते है। मछलिया एवं अन्य जानवर इनके संपर्क में आकर इन्हें निगल लेते हैं। इन माइक्रोप्लास्टिक से दूषित जानवरों के मांस के सेवन से यह विषाक्त पदार्थ मनुष्यो के शरीर में भी प्रवेश कर जाता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ कि एक रिपोर्ट को उद्धृत करते हुए प्रोफेसर अवस्थी ने कहा कि प्लास्टिक पर मानव की निर्भरता इस हद तक बढ़ चुकी कि प्रत्येक व्यक्ति प्रतिवर्ष औसतन पचास हजार से ज्यादा प्लास्टिक कणो का उपभोग करता है।
प्रोफेसर अवस्थी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए हमे व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर भी प्रयास करने होंगे। अंत में उन्होंने श्रोताओ से आग्रह किया कि प्लास्टिक की थैलियों स्थान पर कपास की थैलियों का प्रयोग करें, अपने बैग में पानी के लिए पुन: प्रयोज्य बोतल रखें, बचे हुए खाने या भोजन की पैकिंग के लिए रेस्तरां में अपने स्वयं के खाद्य-भंडारण कंटेनर लेकर जाए
डॉ सुनील कुमार “वेस्ट मैनेजमेंट एंड प्लास्टिक पोलुशन” शीर्षक पर अपने व्याख्यान में प्लास्टिक अपशिष्ट और उसके स्रोत, प्लास्टिक अपशिष्ट के निराकरण कि विधियों एवं चुनौतियों, प्लास्टिक अपशिष्ट का पर्यावरणीय प्रभाव और प्लास्टिक अपशिष्ट एवं मानव स्वास्थ्य संबंधी समस्याओ आदि पर चर्चा किया। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक दैनिक उपयोग की लगभग सभी वस्तुओं जैसे-कपडा, आवास, निर्माण, फर्नीचर, ऑटोमोबिल, घरेलू सामान, कृषि, बागवानी, सिंचाई, पैकेजिंग, चिकित्सा उपकरण, विद्युत और संचार सामग्री सभी में होता है जिसके कारण पूरे विश्व में ठोस अपशिष्ट में सबसे बड़ी भूमिका प्लास्टिक की है।
इसके बाद निदेशक महोदय ने पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए श्रोताओं को अपनी जीवन शैली में पर्यावरण के अनुकूल बदलाव लाने की शपथ दिलाई और अंत में वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के दौरान डॉ धर्मेंद्र त्रिपाठी, प्रभारी कुलसचिव और अधिष्ठाता छात्र कल्याण, डॉ लालता प्रसाद (डीन अकादमिक ), डॉ रेनू बडोला डंगवाल, डॉ राकेश मिश्रा, समस्त विभागाध्यक्ष एवं अन्य संकाय छात्र और कर्मचारी गण उपस्थित थे।

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