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केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना नमामि गंगे की शुरुआत से अभी तक कुल 482.59 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च की जा चुकी है ये खुलासा हल्द्वानी के आरटीआई एक्टिविस्ट हेमंत गुनिया ने किया है।

उत्तराखण्ड

केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना नमामि गंगे की शुरुआत से अभी तक कुल 482.59 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च की जा चुकी है ये खुलासा हल्द्वानी के आरटीआई एक्टिविस्ट हेमंत गुनिया ने किया है।

एक तरफ जहां पूरे देश में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री द्वारा गंगा सफाई को लेकर बहुत सी योजना पर काम किया जा रहा है,लोगों में जागरूकता फैलाई जा रही है वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड के नदी नाले,गधेरे,आज भी कूड़ा करकट से भरे हुए है जो नमामि गंगे परियोजना की जमकर धज्जियां उड़ाते दिखाई दे रहे है।केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना नमामि गंगे की शुरुआत से अभी तक कुल 482.59 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च की जा चुकी है ये खुलासा हल्द्वानी के आरटीआई एक्टिविस्ट हेमंत गुनिया ने किया। उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत नमामि गंगे परियोजना से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां मांगी थी,जिसमें खुलासा हुआ कि नमामि गंगे परियोजना की शुरुआत साल 2016 में हुई थी इस योजना के तहत उत्तराखंड को अभी तक 528.42 करोड़ रुपए की धनराशि जारी की गई,इसमें से नवंबर 2021 तक कुल 482.59 करोड़ रुपए खर्च किये जा चुके है जबकि राज्य परियोजना प्रबंधन के पास अभी 35.83 करोड़ रुपए की धनराशि बची हुई है।

यहां सवाल ये उठता है कि 482.59 करोड़ रुपए खर्च तो हुए लेकिन आज भी उत्तराखंड की तमाम नदिया,नाले,गधेरे स्वच्छता से कोसो दूर है। और नमामि गंगे परियोजना के तहत उत्तराखंड के उत्तरकाशी, हरिद्वार, चमोली,रुद्रप्रयाग ,पौड़ी जिलों में कई योजनाएं संचालित हुई जिसके तहत गंगा,अन्य नदियों की साफ सफाई के साथ साथ सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण ,गंगा घाट स्नान,मोक्ष घाट के अलावा कई अन्य कार्य भी दर्शाए है। जहां तक गंगा और मोक्ष घाट की बात है तो ये किसी से छुपा नही है कि इन घाटों में कितनी गंदगी फैली रहती है। लोग यहां भगवान पर चढ़ाये गए फूल तक बहा देते है। अंतिम संस्कार के बाद घाटों में कितनी साफ सफाई की जा रही है ये आप स्वयं देख सकते है। इसके अलावा जिन नदियों के पास बड़े बड़े होटल है उनसे भी नदिया दूषित हो रही है।

नदियों पर अतिक्रमण की कई खबरे सामने आई है ऐसे में नमामि गंगे परियोजना के तहत खर्च हुए रुपये कहाँ लगाए गए ये सवाल आरटीआई एक्टिविस्ट ने उठाया है क्योंकि परियोजना के तहत काम तो दर्शाया गया लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और है।कहीं घाट के सौंदर्यीकरण के काम में पूरी तरह से लापरवाही बरती गई, सीढ़ियों को अधूरा छोड़ा गया,तो कहीं एनजीटी के गंगा में किसी तरह के शव या फूल इत्यादि प्रवाहित करने पर सख्त रोक के बावजूद गंगा में खुलआम शवों को विसर्जित किया जा रहा है।कहीं नगर पालिका की गाड़ियां धड़ल्ले से नदियों में कूड़ा उड़ेल रही हैं।

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