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किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जिकल ऑनकोलॉजी विभाग नेविश्व स्टोमा दिवस पर दिये टिप्स।

उत्तर प्रदेश

किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जिकल ऑनकोलॉजी विभाग नेविश्व स्टोमा दिवस पर दिये टिप्स।

लखनऊ-भारतवर्ष में 1 वर्ष में लगभग 70000 नए रोही बड़ी आंत एवं मलाशय के कैंसर से पीड़ित हो जाते हैं।

इनमें से लगभग 40% रोगियों को स्टोमा की आवश्यकता पड़ती है स्टोमा चिकित्सा प्राप्त रोगियों में लगभग आधे रोगियों को स्थाई स्टोमा बनाना पड़ता है।

स्टोमा एक diversion शल्य चिकित्सा है। इसमें बड़ी आंत के हिस्से को रोगी के शरीर पर बाहर स्थापित कर दिया जाता है। शरीर से अपशिष्ट मल स्टोमा द्वारा बाहर निकाला जाता है।

रोग की प्रकृति के अनुसार स्टोमा को अस्थाई अथवा स्थाई रूप से बनाया जाता है।

स्टोमा से जुड़ी भ्रांतियां

  1. यह एक स्थाई प्रबंधन है।
  2. इससे मृत्यु हो सकती है।
  3. इसे साफ रखना बेहद कठिन है।
  4. इसे प्रत्येक व्यक्ति देख सकता है।
  5. यह नियमित दिनचर्या को प्रभावित कर सक्रियता खत्म कर देता है।
  6. व्यक्ति इच्छानुसार और सामान्य कपड़े नहीं पहन सकता है।
    वस्तुत: यें सब तथ्य सच्चाई से परे हैं।

मल को स्वत: निकलने से रोकने के लिए गुदा नलिका में स्फिंक्टर होता है। कैंसर में यह स्फिंक्टर नष्ट हो जाता है। इससे मल स्वत: बाहर आ जाता है। इस असहज स्थिति में स्टोमा एक बेहतर विकल्प है।

किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जिकल ऑनकोलॉजी विभाग में रोगियों की शल्य चिकित्सा (रोग के अनुरूप) बिना स्फिंकटर को प्रभावित किए हुए की जाती है। इससे रोगी स्थाई स्टोमा से बच सकते हैं।

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