उत्तराखण्ड
रहस्यमय है भगवान विष्णु का ये पौराणिक मंदिर।
राजेंद्र पंत रमाकांत
उत्तराखण्ड में कुमाऊँ क्षेत्र के जनपद अल्मोड़ा के अन्तर्गत डोल क्षेंत्र में स्थित भगवान विष्णु का पौराणिक मन्दिर रहस्य, रोमांच,आस्था व भक्ति का साक्षी माना जाता है,घने देवदार के जंगलों के मध्य स्थित इस देव दरबार के दर्शनों के लिए दूर-दराज क्षेत्रों से लोग यहाँ दर्शन के लिए पधारते है भक्तजन इस मंदिर को श्री हरि विष्णु देव नागराज मन्दिर के नाम से भी पुकारते है यह भूमि भगवान विष्णु के साथ- साथ नागों की भी पूजनीय स्थली है उत्तराखण्ड में स्थित भगवान विष्णु के गिने-चुनें प्रसिद्ध मंदिरों में एक है आध्यात्मिक सांस्कृतिक व सुन्दरता की दृष्टि से यह भूभाग जितना पावन है उतना ही मनोरम भी यहाँ के हरे- भरे देवदार के वृक्ष सदियों के रहस्यमयी इतिहास को अपने आप में समेटे हुए है मंदिर की भांति ही वृक्षों के प्रति भी लोगों में गहरी आस्था है कहते है कि इन वृक्षों को नुकसान पहुंचाने का साहस कोई नही करता है यहाँ के जंगल की लकड़ी भी कोई अपनें घर नही ले जाता है कहा जाता है यदि यहाँ की लकड़ी कोई अपने घर ले जाता है तो वहाँ साँप व नागों का आवागमन होने लगता है यहीं कारण है यहाँ के वृक्ष भी पूजनीय है मंदिर परिसर में भगवान श्री हरि विष्णु के साथ- साथ शिवजी की भी पूजा होती है यहाँ स्थित शिवालय भी भक्तों के लिए परम आस्था का केन्द्र है।
अनेक देवी- देवताओं की भी मूर्तियां व छोटे- छोटे देवी- देवताओं के थान यहाँ स्थापित है इनके प्रति भी लोगों में अगाध श्रद्वा है मुख्य शक्ति स्थल के पास पानी का एक नौला भी स्थित है इसी नौले का जल श्री हरि विष्णु देव को सर्मपित होता है पुजारी जन ही नौलें में प्रवेश करके जल भरते है यहाँ पूजा में सुद्वता का पूरा ध्यान रक्खा जाता है यह क्षेत्र पावन नदी पनार का उद्गम क्षेत्र भी माना जाता है यह नदी भी अपनी महिनां के लिए प्रसिद्ध है पास में ही नदी में एक कुण्ड भी है जिसे सूर्य कुण्ड के नाम से पुकारा जाता है खासतौर से मंदिर परिसर में यज्ञोपवीत करने परिवार इसमें स्नान करने की परम्परा है।
श्री हरि विष्णु देव नाग मंदिर परिसर में एक छोटी सी गुफा भी है जिसके अन्दर देवी माँ की मूर्ति विराजमान है लोग इस गुफा के दर्शन करके स्वयं को धन्य महसूस करते है साधना की दृष्टि से भीग यह गुफा काफी महत्वपूर्ण है
दंत कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि पूर्व समय में भगवान विष्णु का अभिषेक यहाँ एक देवदार के वृक्ष से निकलने वाले दूध से किया जाता था जिस पेड से पहले दूध निकलता था वह पेड आज भी यहाँ मौजूद है किसी जमाने में यहाँ एक फूलों की छोटी सी बगिया भी थी यही फूल भगवान विष्णु को अर्पित होते थे लेकिन अब बगिया नहीं है इस चमत्कारिक मंदिर की एक और महिनां यह है कि जब कभी क्षेत्र में सूखा पड़ता है तो नौले से जल भरकर विष्णु मंदिर को कई बार अर्पित किया जाता है तो क्षेत्र में वर्षा होती है खुशहाली छा जाती है मंदिर में बनें हवन कुण्ड में हवन भी होता रहता है विशेष पर्वों पर समय- समय पर यहाँ मेले आयोजित होते रहते है।
स्कंद पुराण के मानस खण्ड में भगवान विष्णु के इस पवित्र धाम क्षेत्र का वर्णन महर्षि वेद व्यास जी ने विराट आध्यात्मिक शब्दों मे किया यहाँ से उत्पन पनार नदी का जिक्र भी पर्णपत्रा नामक नदी के नाम से मानस खण्ड में आया है दंत कथाओं के अनुसार पनार नदी के उद्गम स्थल पर से एक रत्ती सोना उत्पन होकर बहनें की बात भी भक्त जन बताते है हालाकि इसका कोई ठोस प्रमाण नही है इसके अलावा प्रसिद्ध रामेश्वर तीर्थ की महिमां के क्रम में भी यहाँ से निकली पनार नदी का जिक्र भी वर्णित है भगवान विष्णु श्री हरि पद्मनाभ के श्री चरणों से निकली यह पावन नदी आगे चलकर अनेक नदियों से मिलती है जिनमें सरयू के साथ रामेश्वर के प्रवेश द्वार में पनार नदी का मिलन होता है और इस मिलन क्षेत्र में पत्रेश महादेव का पूजन पितरों के उद्वार के लिए परम फलदायी कहा गया है
जनपद अल्मोडा के डोल क्षेत्र में स्थित जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु जी के इस धाम की महिमा को शब्दों में नही समेटा जा सकता है यहाँ यह भी बताते चलें डोल नाम भी श्री विष्णु जी को बेहद प्रिय है हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जो व्रत किया जाता है उसे डोल ग्यारस भी कहा जाता है महायज्ञ के समान फलदायी इस व्रत को रखने से जीवन से समस्त संकटों, कष्टों का नाश हो जाता है डोल के विष्णु धाम में डोल ग्यारस को श्री हरि का स्मरण , पूजन कीर्ति को बढ़ाने वाला कहा गया है कहा जाता है डोल एकादशी के दिन भगवान विष्णु के इस मंदिर में दीपदान करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है तथा धन सम्पदा व वैभव की प्राप्ति होती है
नाग पंचमी के अवसर पर यहां भगवान विष्णु की की गई पूजा का फल अतुलनीय कहा गया है