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नीम करौली महाराज जी की यह शिष्या थी आस्था भक्ति व अलौकिक सिद्धियों का संगम।

उत्तराखण्ड

नीम करौली महाराज जी की यह शिष्या थी आस्था भक्ति व अलौकिक सिद्धियों का संगम।

राजेंद्र पंत रमाकांत ✍️

नौकुचियाताल /
आध्यात्मिक जगत की महान् विराट विभूति ,लोक मंगलकारी कर्मो का सृजन करके निष्काम कर्म की प्रेरणा देकर जीवन पथ को निर्मल आभा से सवांरकर करूणा की दिव्य छाया बरसाने वाली कर्म ही जिनका महान् आर्दश था दया ही जिनका परम धाम था ,मौन साधना ही जिनकी विलक्षण साधना थी अलौकिक सत्ता के प्रति हर पल* *जिनका रूझान था जो मानवीय रूप में साक्षात् करूणा की मूर्ति थी ,आत्मा की अमरता व शरीर की नश्वरता को जो भलि भांति जानती थी, देवभूमि व यहां के तीर्थ स्थलों के प्रति जिनके हदय में अपार श्रद्वा थी जिनकी आभा सदैव देवकार्यो में झलकती थी ,वो सरल हृदय ममता व करूणा की साक्षात् मूर्ति भक्ति माई के नाम से जगत में प्रसिद्ध मौनी माई के प्रति उनके भक्तों में अगाध श्रद्धा है

हांलाकि उन्हें देह त्यागे वर्षो बीत गये है लेकिन उनकी कृपा पानें के लिए गुरु पूर्णिमां पर भक्तजन काफी संख्या में नौकुचियाताल के भक्ति धाम में पधारते है यहां के जनमानस में उनके प्रति गहरी श्रद्वा है भक्ति माई जी का आत्मिक रूप से मिलना जुलना उनके विशाल हृदय की विराटता को झलकाता था सरल से भी सरल ममतामयी माई जी ने अपनी जीवन साधना को निष्काम कर्मयोगी की तरह जिया वे सच्चे अर्थो में दरियादिली की जीती जागती मिशाल थी, देवभूमि के देवालयों की वे कायल थी ईश्वर से उनका अमिट लगाव था ।उनकी सादगी ,विनम्रता स्नेहशीलता आदरणीय थी।
उनका जीवन सफर धार्मिक व सामाजिक कार्यो में बीता उनकी जहां गुरुजी के प्रति गहरी आस्था थी, वही लोक कल्याण के क्षेत्र में भी वह सदैव समर्पित थी। देवभूमि से सदा ही उनका अमिट लगाव रहा था, बताते है कि उनका जीवन अथक सघंर्षों की गाथा रही है।जो आज के समाज के लिए महान् आर्दश है। यहां के धार्मिक स्थलो व शक्तिपीठों के प्रति उनकी अटूट आस्था थी। गरीबों के दुख दर्द में सदा ही सहायक रहने वाली ममता की यह मूर्ति सदा ही स्मरणीय है

बताते है कि मात्र 27 वर्ष की आयु से गुरु आदेश को शिरोधार्य मानकर मौन साधना का व्रत लेकर आजीवन उन्होनें इस धर्म का पालन किया हिमालय की गोद में बसे प्रकृति की अमूल्य धरोहर जनपद अल्मोड़ा के सुन्दर गाँव पोखरखाली में जन्मी भक्ति माँ ने लगभग साढे छह दशक तक जीवन पर्यन्त मौन साधना की इसी कारण लोग इन्हें मौनी माई के नाम से पुकारते थे और इनसे मिलकर अपने भाग्य की सराहना करते थे भक्तों की जिज्ञासाओं का समाधान वे सदैव स्लेट में लिखकर करती थीं। इनके देश व विदेशों में अनेकों भक्त है जो आज भी उनकी मधुर आध्यात्मिक स्मृतियां अपने हृदय में संजोये हुए है इनके द्वारा नौकुचियाताल में स्थापित हनुमान मंदिर देश विदेश के भक्तों की आस्था का केन्द्र है अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध इस मन्दिर की महिमां भी बडी अपरम्पार है

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