उत्तराखण्ड
पहाड़ का एक ऐसा स्नेक्स “उमी” जिसका इतिहास है वर्षों पुराना : स्वास्थ्य के लिए भी होता है लाभदायक ।। जानें कैसे बनाते हैं उमी ?
मिनटों में तैयार होने वाला पहाड़ी स्नैक्स
शहर के मोमो- चाऊमीन जैसे फास्ट फ़ूड से कहीं दूर पहाड़ में भी एक प्राकृतिक स्नैक्स होता है लेकिन यह फूड आपके शरीर में बिल्कुल भी कुप्रभाव में नहीं डालता ।। बल्कि आपको ताज़गी से भर देता है ।।
जी हां अप्रैल मई के माह में पहाड़ों में रवि की फसल तैयार होती है। रवि की फसल में मुख्य खाद्यान गेहूं होता है। पहाड़ों में गेहूं की फसल के काम के दौरान अधकच्चे गेहूं से एक विशेष स्नेक्स बनाते हैं, जो बहुत जल्दी तैयार हो जाते हैं जिसे पहाड़ी भाषा उमी कहते हैं।
कैसे बनाया जाता है उमी
पहाड़ो में गेहूं की फसल तैयार हो जाने पर फसल की कटाई के समय उसकी हरी बालियों को आग में भून कर और ठंडा करके भुने हुए दानों को उमी कहा जाता है। ये दाने चबाये जाने पर विशेष स्वादिष्ट लगते हैं। बाद में इसके खाजा या चबेने के रूप प्रयोग किया जाता है ।
पहाड़ के बच्चों के सपने
पहाड़ों के बच्चे इसको खाने में बहुत ज्यादा रुचि दिखाते हैं क्योंकि पहाड़ बच्चे आज भी अपने शांत स्वभाव में ही जी रहा हैं ,उनकी नहीं है ज्यादा फरमाइश अपने माता पिता से और ना ही उनकी चाहत है आसमान से चांद लाने की, वह तो अभी भी केवल मेहनत पर विश्वास करते हैं ।।
प्राचीन साहित्य में भी उमी का जिक्र
उमी बारे में प्राचीन साहित्य में बताया गया है कि ,वसंतोत्सव के अवसर पर लोग ,गेहूं ,जौं आदि रवि फसल के खाद्यानो और चना मटर की बालियों और फलियों को भूनकर खाते थे। जिन्हें उमा ,उमी ,होलक या होला कहते थे। पहले नगरीय क्षेत्र के लोग गेहूं या अन्य खाद्यान को आग में भूनकर बनाये गए इस स्वादिष्ट व्यंजन का स्वाद लेने के लिए धूमधाम के साथ नगरों से गावों में जाया करते थे।
जैसे आजकल गर्मियों के सीजन में लोग ठंडा पानी पीने पहाड़ों को जाते हैं ।।
पहाड़ इस लिए है खास
पहाड़ों में गेहूं की ऊमि चनों के “होले” बनाने की परम्परा अभी भी जीवित है। हिमालय के भोटान्तिक जनजातीय क्षेत्रों में छूमा और नपल धान्यो को भूनकर उसमे गुड़ मिलकर लड्डू बनाये जाते हैं। और उन्हें यात्रा भोजन के रूप में ले जाया जाता है। बच्चे साल भर इस बसंत ऋतु का इंतजार क्या करते थे ताकि हम उमी बनाकर उसका आनंद ले सकें ।।