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समृद्ध लोक परंपराओं की एक विरासत है बग्वाई कौतिक।

अल्मोड़ा

समृद्ध लोक परंपराओं की एक विरासत है बग्वाई कौतिक।

नवीन बिष्ट, (अल्मोड़ा)

बग्वालीपोखर में सदियों से होने वाले बग्वाई कौतिक निश्चित ही समृद्ध लोक परंपराओं की एक विरासत है। यह कौतिक अपना ऐतिहासिक महत्व रखने के साथ ही अपने गौरव व वैभवशाली अतीत की पुष्टि भी करता है। यहाँ की झोड़ा, छपेली, चाँचरी की ख्याति पूरे उत्तराखंड में है।

कुल मिलाकर इतिहास, परंपरा, शौर्य व विविध लोक विधाओं के चटख रंगों को संजोए इस क्षेत्र के लोगों में रंगीला व बांकापन आज भी उसी अंदाज में बरकरार है। इसी रंगीलेपन में लोक विधाओं के विविध रंगों से कौतिक को रंगने का सुघड़ प्रयास क्षेत्र के युवाओं द्वारा किया जा रहा है, जो निश्चित ही हराती-बिलाती लोक परंपराओं को संरक्षित करने की दिशा में भगीरथ प्रयास कहा जा सकता है।

कुछ उत्साही युवाओं द्वारा पिछले कुछ सालों से इस परंपरागत कौतिक के मौलिक स्वरूप को बरकार रखते हुए स्थानीय लोक विधाओं को परिष्कृत रूप में सम्मिलित करने की यह पहल सराहनीय है।

बग्वाइ को बग्वाइ रहने देने के लिए आज की युवा पीढ़ी पुराने लोगों के साथ मिल कर जो प्रयास कर रही है, इसको निरंतरता देना आवश्यक है। क्योंकि कोई संस्कृति, परंपरा या समाज तभी तक जीवित रहता है, जब तक उसकी अपनी बोली, भाषा, गीत-संगीत अपने स्वरूप, अपनी ठसक में बरकार रहेगा।

जिसमें हमारी विरासत, संस्कृति व बुजुर्गों की अन्वार दिखेगी। अन्यथा हमारी आने वाली पीढ़ी को यह पता ही नहीं चलेगा कि हम कौन हैं, हम किस विरासत के वारिश हैं? तब कितना कठिन होगा अपने आप को पहचानना? जिस प्रकार हमारे तीज-त्योहार, गीत-बैर अपना मौलिक ताना-बाना खो रहे हैं, इन सबके चलते उसे बचाने की मुहिम में शामिल सबको होना पड़ेगा।

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