उत्तराखण्ड
अद्भुत छू कुमाऊंक रामलीलाक ‘तालीम’
- चारु तिवारी
कुमाऊं क्षेत्र में रामलीला क विशेष महत्व छू। पिछाल डेढ सौ साल बै अधिक टैम बटिक रामलीला हमर सांस्कृतिक चेतना और पैल रंगमंच क रूप में जाणीं-पछ्यांणी जां। रामलीला हमर भाईचारा, सौहार्द और सहकारिता क विकास म लै भौत योगदान छू। कुमाऊं म जो रामलीला क मंचन हों उ एक किस्मक गीत-नाट्य शैली छू। रामलीला क सबंूहै ठुल विशेषता यह छू कि इमै गीत-संगीताक लै कतुक विधा विद्यमान छिं। चैपाई, दोहा, सोरठा, जैजैवंती, देश, सिंदूरा, खमाच, भैरवी, विहाग, माण बै ल्हिबैर गजल तक रामलीला क फलक व्यापक छू। कतुक भाषाओं, कतुक लोकोंक, कतुक विधाओं समावेश रामलीला म छू। सबू हैं ठुलि बात य छू कि रामलीला हमर लोक नाट्य विधाक अभिव्यक्ति छू। हालांकि कुमाउनी रामलीलाक पुर आधार तुलसीदासक रामचरितमानस छू, लेकिन मूल रूपैल श्रुति रूपक हौंणक वील कुमाउनी लोक स्वर, भाव और बिंब रामलीला कं विशिष्ट बणौंनी।
कुमाऊं में दस दिन तक चलणीं रामलीला क तो अपणि विशेषता छू, लेकिन वी पिछाड़ि जो ताकत काम करीं वू छू ‘तालीम’। य शब्द आपूं-आप में कुमाऊंक रामलीलाक सरोकारों कं लै व्यक्त कर द्यूं। ‘तालीम’ रामलीला है बै पैलि द्वि मैहण चलणी एक किस्मैकि कार्यशाला छू। रामलीला क तैयारीक लिजी आजकल पुर पहाड़ म जागि-जागि ‘तालीम’ चल रै। रामलीला है बे पैलि ‘तालीम’ म जो उत्साह लोगन म देखंण म मिलूं उ अद्भुत छू। पुरांण लोग जांणनि कि तालीम बै लिबैर रामलीला तक पूर गौं-गाड़ाक लोगोंक बीच म कस प्रकाराक स्वस्थ संवाद बणछी। सबूकं यस लागों कि यह हमर सबूंक घरक काम छू। य सुखद छू कि य परंपरा आई तक चलि रै। समयक साथ य कभैं कम कभैं ज्यादा है सकीं। ‘तालीम’ म हमार क्षेत्राक गुसाई दत्त ज्यू ‘मास्टर’ भाय। मंदिर म जब रामलीलाक ‘तालीम’ शुरू होंछी तो सब इलाकाक नानतिन और बुड-बाड़ि इकट्ठ है जांछी। जो दिन बै ‘तालीम’ शुरू होंछी लोगों कं सात्विक रौंण जरूरी भै। आज जै हैं ‘आॅडिशन’ कौनी, ‘तालीम’ हमर क्षेत्रक नानतिनाक और कलाकारोंक लिजी रंगमंचक पैल परीक्षा भै। गुसांई दत्त ज्यू हारमानियम पर भै बैर आपण चश्मक मलि बै देखनै भाय। इलाकक भौते लोग अलग-अलग पात्रोंक लिजी आपण प्रस्तुति दिनैर भै। जो इमै पास होय उनूंक पै पुर डेढ-द्वि मैहंण ‘तालीम’ देई जनैर भै। गुसांई दत्त ज्यूक सान्निध्य म सखी, कृष्ण, द्वारपाल बै ल्हिबैर राम, लक्ष्मण, सीता तक सबै हर विधा क सिखनैर भय। तालीम मास्टर पात्रों कं संवाद, अभिनय, गायन और नृत्य सबै सिखोनैर भै।
संचाराक यतुक साधन हौणक बाद लै लोग हर साल रामलीला म उत्साहैल भाग लिनी। य लै हमर लिजी भल संकेत छू कि नई छांणक नानतिनाल सोशल मीडिया क माध्यमैल ‘तालीम’ क लाइव दिखे बैर यैक और विस्तार कर हालौ। ‘तालीम’ कं दैखणिंयाक लै एक भौते ठुल वर्ग छू। गौंपन आजकल खेति-बाड़िक लै भौत काम हौंछ। पहाड़ म कौनि कि- ‘तैहणीं लै रौछ असोज’। दिनभर काम करणंक बाद सब लोगनकं जां आरामैक जरूरत रैं, वां गौंपना लोग ब्याव कै जल्दी आपण खाणं-पिंणैक व्यवस्था कर ‘तालीम’ द्यख हैं तैयार मिलनी। उनर लिजी ‘तालीम’ म जांण लै एक ठुल काम भै। य भौत सुखद छू कि ‘तालीम’ क प्रति लोगोंक अनुराग आई लै कम नि हौय। पैली बै रामलीला क घोषणा क बाद तालीमाक लिजी लै रामलीला कमेटीक सयांण दिन सुजानैर भाय। पूर इलाक म बताई जनैर भय कि फलांण दिन बै ‘तालीम’ शुरू हैलि। य घोषणा क बाद सब लोग सक्रिय है जनैर भाय। सब लोगनक आपण काम मालूम भाय। रामलीला चूंकि एक सामूहिक काम मानी जनैर भय, यैक लिजी सब लोग ‘तालीम’ क टैम बटि आपूं कं हर कामक लिजी तैयार लै करनैर भाय। हारमोनियम मास्टर, तबला, मंचक संचालन करणी, प्रमोटर, सबै आपसाक लोग हौंनि यैक लिजी सबूंक काम तालीमक समय म काम बांटी जांछ। यां तक कि को आदीम गैस जलाल वीक लै काम पैलि तय है जांछी। समयाक साथ भले ही अब कुछ चीजों म बदलाव यै गो, लेकिन कुमाऊं क रामलीलाक तालीमक आकर्षण बरकरार छू।