नागपुर
RSS और BJP का विवाद देश के लिए खतरनाक ,आरएसएस की नाराज़गी से देश में आ सकता है यह बड़ा संकट ।।
अखण्ड भारत की एक सोच RSS हो गई बीजेपी से ख़फ़ा
आज बात होने वाली है उस RSS की जिसकी वजह से भाजपा हमेशा चुनाव जीती , जिसके इशारे पर केंद्र में मंत्री तक बैठाये जाते थे, यहां तक भी कहा जाता था कि देश की राजनीति नागपुर से संचालित होती है , जी हां उस संघ की बात करेंगे जिसने देश में सबसे बड़ा संगठन बना दिया, जिसने सनातन को मजबूत करने के लिए अनेक प्रयास किए, लेकिन क्या अब भाजपा और RSS के कोई बड़ा विवाद चल रहा है क्योंकि ऐसा लगता है दोनों के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। संघ प्रमुख मोहन भागवत के हाल के बयान से दोनों के बीच गहराई बन गई है।
मोहन भागवत क्यों हुए बीजेपी से नाराज़
मोहन भागवत ने तो संकेत में भाजपा को नसीहत भी दे डाली । साथ ही सरकार के कामकाज और संगठन को लेकर ख़ूब नाराजगी भी दिखाई है। लेकिन खुलकर किसी के द्वारा कुछ भी नहीं कहा गया है, इसलिए दोनों ही पक्ष इस मुद्दे पर ज्यादा बोलने को तैयार नहीं हैं । लेकिन हम आपके अंदर की बात बताने वाले हैं , लोकसभा चुनाव में नतीजे भाजपा की उम्मीद के विपरीत आए। अब भाजपा और संघ के बीच मतभेद उभरते दिख रहे हैं। आमतौर पर चुनावी प्रक्रिया के दौरान भाजपा और RSS के बीच जिस तरह का प्रेम भाव होता था, वह इस बार दिखाई नहीं दिया। भाजपा और RSS के बीच होने वाली उच्च स्तरीय बैठकें भी काफी समय से नहीं हुई हैं।
नड्डा के एक बयान से नाराज़ RSS या कोई है दूसरी वजह
इन सबके बीच RSS को लेकर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का बयान भी काफी चर्चित रहा। जिसमें कहा गया था कि भाजपा को पहले आरएसएस की मदद की जरुरत थी लेकिन अब वह आत्मनिर्भर है।इससे भी संघ के भीतर नाराजगी दिखाई दी है। अब संघ प्रमुख मोहन भागवत के हाल में एक बयान को लेकर दोनों के बीच के रिश्तों को लेकर कई तरह के अर्थ लगाए जा रहे हैं , भागवत ने नागपुर में संघ के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा- जो मर्यादा का पालन करते हुए कार्य करता है, गर्व करता है, किन्तु लिप्त नहीं होता, अहंकार नहीं करता, वही सही अर्थों मे सेवक कहलाने का अधिकारी है। इसका सीधा इशारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर समझा गया क्योंकि वह ख़ुद को सेवक कहते हैं,
लोकसभा सीटों में कमी का कारण आरएसएस भी है क्या ?
आखिर के तीन चरणों में संघ ने उतना मन लगाकर काम नहीं किया, जितना कि वह पहले कर रहा था। इसका असर मतदान पर भी पड़ा है। हालांकि, संघ ने इस तरह की अटकलों को पूरी तरह से गलत बताया है और भाजपा भी इससे सहमत नहीं है। भागवत के बयान के बाद भले ही दोनों पक्ष ज्यादा कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन अंदरूनी तौर पर विवाद दिखता है इसलिए लगता है दोनों के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। विवाद का बड़ा कारण उम्मीदवारों को लेकर संघ की सलाह को नजरंदाज करना है ।। भागवत ने मणिपुर की हिंसा पर चिंता जताते हुए कहा था कि वहां पर एक साल से अशांति है। राज्य में पिछले 10 साल की शांति भंग हुई है। भागवत ने नेताओं को अहंकार न पालने और काम करने की नसीहत भी दी थी।
उन्होंने परोक्ष रूप से विपक्ष के रवैये पर भी सवाल खड़े किए थे, लेकिन कुछ प्रमुख बयानों को भाजपा से जोड़कर देखा गया। आपको बता दें भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की चुनाव के दौरान संघ को लेकर की गई टिप्पणी से भी दोनों पक्षों के रिश्तों में कड़वाहट आई है। जिसका असर मतदान पर भी पड़ा,संघ की ओर से भाजपा को आईना दिखाने का काम बड़े सुनियोजित तरीके से हुआ है। संघ की पत्रिका ‘द ऑर्गेनाइजर’ में एक पुराने विचारक रतन शारदा का लेख छपा है, जिसमें उन्होंने कहा कि संघ भाजपा का ‘फील्ड फोर्स’ नहीं है। अब तक यही माना जाता था कि चुनाव में जमीनी स्तर पर भाजपा को संघ के स्वंयसेवकों की मदद मिलती है।
बंगाल की लड़ाई नागपुर तक आई ।
लेकिन ऐसा लग रहा है कि इस लेख के जरिए भाजपा ने नड्डा की बात का जवाब दिया है। संघ और भाजपा का एक और विवाद पश्चिम बंगाल में देखने को मिल रहा है, जहां संघ से जुड़े शांतनु सिन्हा ने भाजपा की आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय पर महिलाओं के यौन शोषण का आरोप लगाया है। मालवीय ने उनको 10 करोड़ रुपए की मानहानि का नोटिस भी भेजा है। तो इन्हीं कारणों से लगता है कि भाजपा और आरएसएस के संबंधों में अब मिठास के बजाय कड़वाहट आ गई है ।