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फल मक्खी ( Fruit fly) कीट से अमरूद फसल कैसे बचायें।

उत्तराखण्ड

फल मक्खी ( Fruit fly) कीट से अमरूद फसल कैसे बचायें।

श्रीनगर गढ़वाल – आज आपको डा० राजेंद्र कुकसाल उद्यान विशेषज्ञ फल मक्खी कीट से अमरूद की फसल को कैसे बचाएं की विषय पर विस्तार पूर्वक से अवगत करा रहे हैं।
बर्षा काल में अमरूद के अधिकतर पके फलों में कीड़े दिखाई देते हैं साथ ही पेड़ से पके फल स्वत: गिरने लगते हैं। यह सब फल मक्खी कीट के कारण होता है। अमरूद के फलों में फल मक्खी का प्रकोप अन्य फलों की अपेक्षा अधिक होता है।
किसी भी कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक है कि हम उस कीट की प्रकृति, स्वभाव, पहिचान, जीवन चक्र के बारे में जानकारी रखें, तभी कीट का प्रभावकारी नियंत्रण किया जा सकता है।
वयस्क फल मक्खी लाल भूरे रंग की पंख पारदर्शक एवं चमकदार जिन पर पीले भूरे सुनहले रंग की धारियां होती हैं । फल मक्खी का आकार घरेलू मक्खी से कुछ बड़ा होता है।
मादा फल मक्खी जैसे ही फल पकने लगता है मुलायम फलों की त्वचा में छेद कर अन्दर गूद्दे में अंडे देती है तथा छेद को मटमैले पदार्थ निकाल कर बन्द कर देती है। जिससे फल की त्वचा पर छोटे-छोटे बदरंग धब्बे पड़ जाते हैं। तीन से पांच दिनों बाद अण्डों से सूण्डियां/ मैगेट निकल कर फलों के गूदे को खाना शुरू कर देती हैं। सूंडियों फल के गूदे को खाकर उसमें सड़न उत्पन्न कर देते हैं जिससे फल खाने योग्य नहीं रहते।
बीस से पच्चीस दिनों बाद ये सून्डियां फलों के डंठल के पास से छेद कर सुशुप्तावस्था में जाने के लिए ज़मीन पर गिरने लगती हैं जमीन में गिरते ही ये जमीन के अन्दर प्यूपा में रूपांतरित हो जाती है।
डंठल के पास सूंडियों के छेद करने से डंठल का यह भाग कमजोर हो जाता है जिस कारण हल्की हवा चलने व हल्का सा पेड़ हिलते ही फल जमीन पर गिरने लगते हैं।
प्यूपा एक सप्ताह बाद जमीन के अन्दर से वयस्क फल मक्खी बनकर वाहर निकलते हैं तथा अन्य स्वस्थ फलों पर आक्रमण करतें हैं।


फल मक्खी से फसल बचाव के उपाय-
अमरूद में उच्च गुणवत्ता युक्त ज्यादा फलन लेने हेतु समय पर करें बहार (Flowering) नियंत्रण।
अमरूद/ में साल में तीन बार फूल एवं फल आते है जिनको बहार कहते हैं। इस तरह अमरूद में तीन बहार आती है मृग बहार, अम्बे बहार एवं हस्त बहार।
अम्बे बहार – इसमें फरवरी-मार्च माह में फूल आते हैं एवं बारिश के मौसम में फल लगते हैं। बारिश के कारण इस मौसम की फसल के फल कम मीठे होते है एवं इनकी गुणवत्ता भी अच्छी नहीं होती है, कीड़े बीमारियों का प्रकोप ज्यादा होने से किसानों को आर्थिक रूप से कम लाभ होता है।
हस्त बहार – इस बहार में अक्टूबर – नवम्बर माह में फूल आते है एवं फरवरी-अप्रैल में फल आते है, इस मौसम के फलो की गुणवत्ता अच्छी होती है लेकिन उपज कम आती है।
मृग बहार – इस बहार में जून – जुलाई माह में फूल आते है एवं नवम्बर-जनवरी में फल आते हैं। मृग बहार के फलों की गुणवत्ता, स्वाद एवं उपज अच्छी होती है।
यदि अमरूद के पेड़ पर तीनों बार फल लिए जाए तो उत्पादन कम होता है एवं फलों की गुणवत्ता भी कम होती है। अतः अमरुद के फलों में ज्यादा उत्पादन एवं अच्छी गुणवत्ता के फलों के उत्पादन के लिए साल में सिर्फ एक बार उत्पादन लिया जाता है। अमरूद में फल नई शाखाओं में ही लगते हैं, पुरानी पर नहीं अतः अमरूद में गुणवत्ता युक्त एवं ज्यादा उत्पादन प्राप्त करने के लिए नई शाखाओं का बड़ी संख्या में निकलना आवश्यक है।
मृग बहार या ठंड की फसल में फूल अधिक लगते है, बड़े आकार के फलों का उत्पादन होता है, फल स्वाद में अधिक मीठे होते है एवं फलों का उत्पादन ज्यादा आता है इसलिए मृग बहार की उपज ही अधिक ली जाती है।
मृग बहार ठंड की फसल में अच्छी गुणवत्ता एवं फलों का अधिक उत्पादन लेने के लिए, वर्षा ऋतु वाली फसल यानि अम्बे बहार के फूलों को लगने से रोका जाता है जिसे बहार नियंत्रण कहते है।
अप्रैल के अंत व मई माह के शुरूआत में आने वाले सभी फूलों एवं छोटे फलों को तोड़ दिया जाता है, इससे पौधे की ताकत बची रहने से मृग बहार में अच्छा फलन आता है।
बहार नियंत्रण के लिए निम्न प्रकार से किया जा सकता है।

  1. फूलों को हाथ से झाड़कर – जहाँ पौधों की संख्या कम हो वहाँ फूलों को हाथ से झाड़ा जा सकता है पर बड़े बगीचे में यह सम्भव नहीं होता।
  2. सिंचाई रोककर – मृग बहार या ठंड की फलन लेने के लिए फरवरी से 15 मई तक पानी देना बंद कर देते हैं जिससे पत्तियाँ गिर जाती है एवं पेड़ सुसुप्तावस्था में चले जाते है। इसके बाद मध्य मई में पेडों की गुडाई करके उर्वरक डालकर सिंचाई करते हैं जिससे मृग बहार में फूल ज्यादा आते हैं व फल भी ज्यादा लगते हैं।
  3. जड़ों की खुदाई– इस विधि में सिंचाई बंद कर जड़ों के आसपास की मिट्टी को अप्रैल-मई में 20-30 सेमी गहराई में खोदकर बाहर निकाल दिया जाता है, जिससे जड़ों को प्रकाश/धूप लगती है, परिणामस्वरुप मृदा में नमी की कमी होने से पत्तियाँ गिरने लगती है और पेड़ सुसुप्तावस्था में चले जाते है। फिर 20-25 दिन के बाद जड़ों को मिट्टी से दुबारा ढक दिया जाता है एवं खाद-उर्वरक डालकर, सिंचाई की जाती है। परन्तु यदि सावधानी पूर्वक कार्य न किया जाए तो कई बार जड़ों को क्षति पहुँचने से पेड़ सूख भी जाते हैं।
  4. वृद्धि नियंत्रकों का प्रयोग (ग्रोथ रेगुलेटर )- बड़े-बड़े बगीचों में बहार नियंत्रण हेतु यह व्यवहारिक विधि है। इसमें 50% पुष्पन की अवस्था में नेफ्थलीन एसिटिक एसिड NAA (व्यवसायिक रूप से प्लानोफिक्स के नाम से मिलता है) 80-100 ppm (प्लानोफिक्स 2-3 मिली/लीटर) या यूरिया 100-150 ग्राम/लीटर का छिड़काव किया जाता है जिससे बहार नियंत्रण में सहायता मिलती है।
  5. शाखाओं को झुकाकर- जिस पेड़ की शाखायें सीधी रहती है उनमें नई शाखाएँ कम निकलने से फलों का उत्पादन कम होता है। सामान्य दूरी पर लगे बगीचों में बहार नियंत्रण हेतु यह परम्परागत एवं कम खर्चीली तकनीक है, इसमें पेड़ की ऐसी सीधी शाखाओ को अप्रैल-जून माह में झुकाकर जमीन में खूंटा आदि गाड़कर रस्सी से बांध दिया जाता है एवं शाखाओं की शीर्ष की उपरी 10-12 जोड़ी पत्तियों को छोड़कर अन्य छोटी छोटी शाखाओं, पत्तियों, फूलों व फलों को तोड़कर हटा दिया जाता है. इससे नई शाखाएँ ज्यादा निकलने से इन शाखाओं में फल ज्यादा लगते हैं।
    इस तरह बहार नियन्त्रण करने से अमरूद में फल ज्यादा लगते है एवं फलन गुणवत्ता युक्त होते हैं।
    फल मक्खी का प्रकोप वैसे तो बर्ष भर रहता है किन्तु बर्षा काल में वंश वृद्धि के लिए अधिक संख्या में निकलती है जिस कारण बरसात की फसल में फल मक्खी का प्रकोप अधिक होता है। बर्षा काल के फल निम्न गुणवत्ता वाले होते हैं जबकि जाड़े की फसल के फल उत्तम गुण वाले होते हैं तथा फलों में विटामिन – सी की मात्रा बरसात वाली फसल सेअधिक पाई जाती है जिस कारण जाड़ों की फसल को बाज़ार में अच्छा मूल्य मिलता है। अत: फल मक्खी से बचने व अधिक आय के लिए अमरूद की जाड़ों की फसल लेनी चाहिए।
    फल मक्खी की रोक थाम
    1.इस कीट के प्रकोप के प्रभाव को कम करने के लिए समस्त गिरे हुए तथा मक्खी के प्रकोप से ग्रसित फलौं को इकट्ठा कर गड्ढे में दबा कर नष्ट कर देना चाहिए।
  6. पौधों के आस पास घास इत्यादि है तो उसे अच्छी तरह से साफ करे। इसके बाद पौधों के चारों और उसकी परिधि की गोलाई में गहरी गुड़ाई करे। इससे यदि फल मक्खी या अन्य कीड़े के अंडे और प्यूपा होगें तो वे गहरे गुड़ाई में मर जाएंगे।
  7. फ्रुट फ्लाई ट्रेप –
    इस ट्रेप में ल्यूर ( गंदपास ) लगता है जिससे मक्खियां विशेष रूप से नर कीट इसकी ओर आकर्षित हो कर इसमें फंस जाते हैं नर कीटों की संख्या कम होने से इनकी वंश वृद्धि नहीं हो पाती।
    कास्ट निर्मित योन गंध ट्रैप ( मिथाइल यूजिनाल ट्रेप )भी फल मक्खी कीट को नियंत्रण करने का एक प्रभावशाली तरीका है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एवं राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना के द्वारा विकसित इस ट्रेप के लिए प्लाइवुड के 5x5x1 सेमी. आकार के गुटके को 48 घंटे तक 6:4:1के अनुपात में अल्कोहल, मिथाइल यूजिनाल, मैलाथियान के धोल में भिगो कर लगाते हैं । योन गंध ट्रेप की ओर फल मक्खी के नर कीट आकृषित होते है तथा कीटनाशक के सम्पर्क में आने से मर जाती है। कास्ट निर्मित योन गंध ट्रैप का निर्माण पानी की खाली बोतल ले कर भी स्वयंम कर सकते हैं।
    ट्रैपों में दो माह के अंतराल पर ल्यूर (गंध पास ) को बदल देना चाहिए। दस पोधौ पर 2 ट्रेप का प्रयोग करें।
    फल मक्खी ट्रेप /कास्ट निर्मित योन गंध ट्रैप , सम्बन्धित विभागों बीज दवा की दुकानों या AMAZON से भी औन लाइन प्राप्त कर सकते हैं।
  8. नीम आयल 3 मिली लीटर प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर फूल आने पर सात दिनों के अन्तराल पर तीन छिड़काव करें। दवा के घोल में सेम्पू,प्रिल या निरमा लिक्यड साबुन मिलाने पर अधिक प्रभावी हो जाता है।
    5.इस कीट के नि‍ंयत्रण के लिए विष चुग्गा का प्रयोग करें। एक लीटर पानी में 100 ग्राम चीनी या गुड व 10 मि. ली. मैलाथियान मिलाकर घोल तैयार करें ।इस घोल को डिस्पोजल कप में 50 से 100 मि.लि. भर कर पेड़ों पर लटका दें। फल मक्खी प्यास लगने पर गुड़ मिले पानी को पीने पर मर जाती है।
  9. परागण के बाद छोटे फलों को छेद किये पौलीथीन , मसलीन क्लाथ की थैलियां या किसी भी आवरण जिसमेें हवा आ जा सके से कवर कर भी फल मक्खी कीट से बचाया जा सकता है।
    7.मैलाथियान 2 मि.लि. दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फल आने पर सात दिनों के अन्तराल पर तीन छिड़काव करें। दवा के घोल में 20 ग्राम देशी गुड़ प्रति लीटर की दर से अवश्य मिलाएं।
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