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पहाड़ों की होली दुनिया भर में प्रसिद्ध लेकिन रुद्रप्रयाग से चंपावत तक के इन गांव में नहीं मनाई जाती होली : ईष्ट देवता के नाराज हो जाने से फैल जाती हैं बीमारियां ? आस्था या फिर भ्रम ।

उत्तराखण्ड

पहाड़ों की होली दुनिया भर में प्रसिद्ध लेकिन रुद्रप्रयाग से चंपावत तक के इन गांव में नहीं मनाई जाती होली : ईष्ट देवता के नाराज हो जाने से फैल जाती हैं बीमारियां ? आस्था या फिर भ्रम ।

पहाड़ों की होली की जब बात आती है तो लोग होली का नाम सुनते ही नाचने लगते हैं पहाड़ों की होली के रंग पहाड़ों से निकाल कर पूरे देश और विदेशों में अपनी एक अलग छाप रखते हैं लेकिन 2024 की होली दो दिन मनाई जा रही है कल मैदानी क्षेत्रों में तो आज पहाड़ों में होली की धूम है पहाड़ी मूल के लोग शहरों में भी सुबह से सड़कों में ढोल नगाड़ों के साथ झूमते हुए नजर आए .मगर रुद्रप्रयाग जिले के तीन गांव ऐसे भी हैं, जहां होली का त्योहार मनाया ही नहीं जाता है. इन तीन गांवों में जब भी कभी होली खेलने की कोशिश की गई. तब गांव में अनेक बीमारियों ने तांडव मचाया. ऐसे में इन गांवों के लोग होली न खेलने की इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं. रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि ब्लाॅक की तल्लानागपुर पट्टी का क्वीली, कुरझण व जौंदला गांव इस उत्साह और हलचल से आज भी कोसों दूर है. 375 साल पहले जब इन गांवों में लोग आए थे तो कुछ लोगों ने होली खेलने का प्रयास किया, लेकिन तब कई लोग हैजा बीमारी की चपेट में आ गये. इसके बाद फिर से कई सालों बाद होली खेली गई तो वही नौबत फिर से आ गई. जिसमें कई लोगों को जान गंवानी पड़ी. दो बार इस तरह की घटना घटने के बाद तीसरी बार किसी ने भी होली खेलने की हिम्मत तक नहीं की. ऐसा नहीं है कि इन गांवों के लोगों को होली मनाना पसंद नहीं है, बल्कि होली तो वो मनाना चाहते हैं. लेकिन होली खेलने के बाद बीमारी फैलने की अफवाहों ने उन्हें परेशान कर दिया है. जिससे लोग मन मारकर होली नहीं खेल पाते हैं.

यहां के ग्रामीण मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर से कुछ पुरोहित परिवार अपने यजमान और काश्तकारों के साथ वर्षो पूर्व यहां आकर बस गए थे. ये लोग तब अपनी ईष्टदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति और पूजन सामग्री को भी साथ लेकर आए थे, जिसे गांव में स्थापित किया गया. मां त्रिपुरा सुंदरी को वैष्णो देवी की बहन माना जाता है. इसके अलावा तीन गांवों के क्षेत्रपाल देवता भेल देव को भी यहां पूजा जाता है.

ग्रामीणों का मानते हैं कि उनकी कुलदेवी और ईष्टदेव भेल देव को होली का हुड़दंग और रंग पसंद नहीं है, इसलिए वे सदियों से होली का त्योहार नहीं मनाते हैं. इसी तरह से चंपावत के अनेक गांव में भी होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता वहां के गांव में भी यही परंपरा मानी जाती है कि उनके कुल देवता होली के हुड़दंग और रंगों से नाराज हो जाते हैं इसे लोगों की आस्था कहो या भ्रम यह तो अलग बात है लेकिन पूरे पहाड़ में होली के रंगों से यह गांव आज भी बहुत दूर रहते हैं ।।

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