राष्ट्रीय
युद्धपोत का नाम उत्तराखंड की एक चोटी दूनागिरी के नाम पर रखा गया है।
रमेश त्रिपाठी- (द्वाराहाट)
वैष्णवी शक्तिपीठ द्रोणागिरी उत्तराखंड में अनेक पौराणिक एवं सिद्ध शक्तिपीठ हैं। उन्हीं शक्तिपीठों में द्रोणागिरी वैष्णवी शक्तिपीठ है। उत्तराखंड का कोई ऐसा गांव या घर नहीं जहां देवी का मंदिर ना हो।भारत में वैष्णवी शक्तिपीठ के नाम से विख्यात दो शक्तिपीठ हैं। जिसमें एक जम्मू कश्मीर में स्थित वैष्णवी देवी तो दूसरी उत्तराखंड के कुमाऊं में स्थित द्रोणागिरी(दूनागिरी) शक्तिपीठ है।
हिमालय
गजेटियर के लेखक ई.टी.एटकिंसन,कुमांऊ इतिहास लेखक बद्री दत्त पांडे, प्रोफेसर के.डी.बाजपेई सहित अन्य आधुनिक इतिहासकारों ने भी एकमत होकर अल्मोड़ा जिले की द्वाराहाट के ऊपर स्थित दूनागिरी को ही प्राचीन ग्रंथों में उल्लिखित द्रोणांगिरी स्वीकारा है। अल्मोड़ा से 65 कि.मी.तथा रानीखेत से 38 कि.मी.द्वाराहाट अन्तर्गत द्वाराहाट से 14 कि.मी. दूरी पर लगभग 8000 फिट की ऊंचाई पर द्रोणांगिरी शक्तिपीठ स्थित है। यहां जाने के लिए मंगलीखान तक सभी वाहनों से पहुंचकर पुनः मंगलीखान से लगभग डेढ़ 1.5 कि.मी.की ऊंचाई पर स्थित मन्दिर हेतु 500 सीड़ियां चड़कर अथवा मंगलीखान से मंदिर तक पूर्व से निर्मित पैदल रास्ता भी बना है ।मंदिर शिखर से विराट हिमालय की गगनचुंबी पर्वत श्रंखलाएं, गेवाड़ घाटी ,कैड़ारौ घाटी आदि के भब्य दर्शन होते हैं। किवदंती के अनुसार राम-रावण युद्ध के समय लक्ष्मण के मूर्छित होने के बाद हनुमान जी संजीवनी के लिए संपूर्ण द्रोणांचल पर्वत को उठा ले गए थे। जिसका एक टुकड़ा यहां गिरा था।जिस कारण इसका नाम दूनागिरी पड़ा। एक अन्य किंवदंती अनुसार द्वापर युग में द्रोंणाचार्य जी ने यहां आकर तपस्या की। जिनके नाम से इस पर्वत का नाम द्रोणागिरी पर्वत हुआ ।यह पूरा क्षेत्र विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियों और नैसर्गिक सौन्दर्यता से भरा हुआ है। यहां पूरे वर्ष भर देश- विदेशों से सैलानी आकर माता का दर्शन कर प्रकृति व आध्यात्म का समागम करते हैं। वही चैत्राष्टमी एंव आश्विन अष्टमी को यहां पर भब्य मेला लगता है.
द्वाराहाट के ग्राम पंचायत दैरी निवासी कोमोडोर उमेश चंद्र त्रिपाठी जी ने 1971 भारत पाक युद्ध में आई. एन.एस.खुखरी का सफल संचालन किया था। पाकिस्तान सेना के लिए खुखरी यमदूत शाबिद हो रही थी। लेकिन इसी बीच उमेश त्रिपाठी का स्थानांतरण हो गया और अगले ही दिन खुखरी पाक सेना के निशाने में रही.जिसमें नये कैप्टन भी शहीद हुए।खुखरी की शानदार प्रदर्शन के लिए कोमोडोर उमेश त्रिपाठी को विशिष्ट सेवा पदक दिया गया। खुखरी के शानदार प्रदर्शन का श्रेय उन्होंने माँ दूनागिरी को दिया . फलस्वरूप रक्षामंत्रालय ने अपने अगले युद्ध पोत का नाम ही आई. एन. एस. दूनागिरी रखा।