उत्तराखण्ड
सच्चे मन की हर मनोकामना पूरी करती है माता झूलादेवी।
रानीखेत। आजकल नवरात्रों की चारों ओर धूम मची हुई है। कोरोना महामारी की स्थिति अब सामान्य होने के साथ ही मंदिरों में भी चहल पहल बढ़े लगी है। नवरात्रों पर दुर्गा पूजा आयोजन व अनेक स्थानों में रामलीला मंचन का आयोजन भी किया जा रहा है। वैश्विक महामारी कोरोना के संकट से सभी त्रस्त रह चुके हैं और हर कोई ईश्वर से इस संकट से अतिशीघ्र मुक्ति दिलाने की प्रार्थना कर रहा है। कोरोना से निबटने के लिए सोशल डिस्टेंसिंंग व मास्क पहनकर अपनी-अपनी सुरक्षा का ध्यान भी हर आमजनमास इस समय अपनाने का प्रयास कर रहा है। अनलाक में कुछ मंदिरों को भी पूजा अर्चना के लिए खोला गया है किन्तु फिर भी सभी कोरोना से बचने के लिए सोशल डिसटेंसिंग, हैंड सैनेटराईज,मास्क दो गज की दूरी आदि इसके उपायों को अपना रहे हैं। देवभूमि उत्तराखण्ड सदैव ही देवों की तपोभूमि रहा है, इस कारण यह अटूट एंव अगाध आस्था का केन्द्र भी रहा है। नवरात्रों में मंदिरों में चहल पहल एंव भीड़ बढ़ जाती है। भले ही इस बार कोरोना महामारी ने नवरात्र आयोजनों पर भी अपनी मार से सभी को परेशान किया है किन्तु आस्था सभी के मन कूट कूट कर भरी है और सच्चे मन से हर भक्त अपने आराध्य देवी देवताओं की आराधना करके इस संकट से मुक्ति की प्रार्थना कर रहे हैं। देवभूमि उत्तराखंड के रानीखेत के आसपास झूलादेवी, कालिका मंदिर , मनकामेश्वर मंदिर, पंचेश्वर मंदिर, हैड़ाखान मंदिर, शिव मंदिर आदि मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगी रहती है । नवरात्रों में इन मंदिरों में एक प्रमुख स्थान मां झूला देवी का है। मां झूलादेवी पर श्रद्धालुओं एंव भक्तों की अगाध अटूट आस्था है। रानीखेत नगर से चौबटिया मार्ग पर रानीखेत से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है भव्य मां झूलादेवी का मंदिर। देवदार एंव बुरांश के वनों के मध्य में माता का मंदिर स्थित है। माना जाता है कि सच्चे मन से जो भी मां के दरबार में आता है , उसकी हर मुराद मां झूलादेवी पूरा करती है। झूलादेवी को मां सिंहसवारी , मां दुर्गा के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि लगभग आठवीं सदी में यह स्थान सुनसान चरागाह था। इस मंदिर का निर्माण जंगली जानवरों से रक्षा के उद्देश्य को लेकर किया गया था। रानीखेत नगर से लगभग आठ किलोमीटर दूर शांत एंव एंकात रमणीक स्थल पर मां झूलादेवी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह स्थान चौबटिया,पन्याली, पिलखोली, जैनोली, उपराड़ी, एंव आसपास के ग्रामीणों के जानवरों का चरागाह था, और आसपास का क्षेत्र घनघोर वनों से घिरा हुआ था। इस कारण खूखार वन्य जीव आए दिन ग्रामीणों के मवेशियों को शिकार बना लेते थे। इससे चरवाहे एंव आसपास के ग्रामीण अत्यधिक दुःखी हो गये थे । एक दिन रात्री में एक चरवाहे को मां शेरोवाली ने दर्शन दिये और कहा कि चारागाह के पास की जमीन में माता की एक मूर्ति दबी हुई है , उसे निकालकर तुम मेरा मंदिर बनाओ। चरवाहे ने सपने में माता के बताये के अनुसार ही चारागाह से मूर्ति निकालकर माता का मंदिर उस स्थान पर बना दिया। इसके बाद वन्य जीव ग्रामीणों के मवेशियों का शिकार नहीं करते थे । मां झूला देवी पर पर लोगों की अटूट आस्था का स्पष्ट अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां पर केवल नवरात्रों में ही नहीं अपितु पूरे वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, क्योंकि मां झूलादेवी सबकी मनोकामना पूरी करती है। मंदिर के चारों तरफ टंगी छोटी बड़ी सैकड़ो घंटियां भक्तों के अटूट अगाध आस्था के गवाह हैं । श्रावण मास में व चैत्र की नवरात्रों में श्रद्धाल सुबह से पूजा अर्चना के लिए मां झूलादेवी के दरबार में पहुंच जाते हैं । अष्टमी एंव नवमी को भक्तों , श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी रहती हैं । रमणीय एंव एकांत स्थल पर स्थित मां झूलादेवी के मंदिर में आने पर मन को एक शांति प्राप्ति होती है । मां झूलादेवी के मंदिर में मनोकामनाऐं पूरी होने पर श्रद्धालु घंटियां चढ़ाते हैं, मंदिर के चारों ओर लगे घंटियों से मां की कृपा का स्पष्ट अंदाजा लगाया जा सकता है। मां झूलादेवी का मंदिर वर्तमान में भव्य एंव आकर्षक है मंदिर के बाहर मां की सवारी सिंह (शेर ) की बड़ी प्रतिमा बनी हुई है , मंदिर के चारों ओर घंटियां सजी हुई हैं। देवदार , बुरांश के रमणीक वनों से घिरा मां झूला देवी श्रद्धालुओं की सच्चे मन से मांगी गयी हर मुराद पूरी करती है। मां झूलादेवी के मंदिर में आसपास के ग्रामीण ही नहीं अपितु दूर दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर माता के दरबार में पहुंचते हैं और मां झूलादेवी सबकी झोली भरकर मनोकामना पूरी करती है। मां को नवरात्रो में नौ रूपों में पूजा जाता है , जिनमें ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्टमांडा , शैलपुत्री, कात्यायिनी, आदि रूपों में नवरात्रों पर मां की पूजा की जाती है। नवरात्र पर…
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।। का मंत्र जाप भी किया जाता है । मां झूलादेवी को सिंह सवारी , मां दुर्गा के रूप में आराधना की जाती है। सबकी मुराद मनोकामना मां झूलादेवी पूरा करती है। वैश्विक महामारी कोरोना के कारण सभी धार्मिक आयोजनों को सीमित कर दिया गया है तो अधिकाशं स्थानों पर कोरोना के सुरक्षा नियमों को अपनाकर ही पूजा अर्चना संपन्न करायी जा रही हैं। सभी जनमानस ईश्वर से वैश्विक महामारी कोरोना से जल्दी से जल्दी मुक्ति दिलाने की प्रार्थना कर रहे हैं। शीघ्र ही इस वैश्विक महामारी कोरोना के संकट से सभी जनमानस को मुक्ति मिल जायेगी और पूरे विश्व में पुनः खुशहाली आ जाये ,सभी जनमानस इसकी कामना कर रहे हैं।