Connect with us

जहां से सत्ता का रास्ता है वही रास्ता बिगड़ गया।

उत्तर प्रदेश

जहां से सत्ता का रास्ता है वही रास्ता बिगड़ गया।

लखनऊ – उत्तरप्रदेश में लोकसभा चुनाव में हार का प्रमुख कारण पूर्व सांसदों की निष्क्रियता रही। जनता में नाराजगी भी काफी थी।सांसद 2019 में चुनाव जीतने के बाद से पांच साल तक घर बैठने और सिर्फ मोदी-योगी के सहारे जीतने के सपने देखते रहे। परिणाम बता रहे हैं कि भाजपा को लगातार दो बार सत्ता की बुलंदी तक पहुंचाने वाला यूपी एक बार फिर से ‘गेमचेंजर’ साबित हुआ है। 2024 के चुनाव में भाजपा अगर सत्ता में अपने बलबूते वापसी नहीं कर पा रही है तो सिर्फ यूपी में अंको के कमी के कारण ।

सपा-कांग्रेस के गठबंधन ने भाजपा और उसके सहयोगी दलों के विजय रथ को यहां की कुल 80 सीटों में आधे से भी कम पर रोक दिया। क्लीन स्वीप यानि सभी 80 सीटें जीतने का दावा करने वाली भाजपा 33 सीटों पर सिमट गई। इसके चलते ही भाजपा अपने दम पर पूर्ण बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल नहीं कर सकी। ऐसे में सवाल है कि 2014 और 2019 में पीएम मोदी को सत्ता तक पहुंचाने वाले यूपी में बीजेपी इस बार कैसे हार गई।

दरअसल, जिन सांसदों के खिलाफ माहौल होने के आधार पर संगठन की ओर से टिकट बदलने की रिपोर्ट हाईकमान को भेजी गई थी, उनमें अधिकांश सांसदों के बारे में यही कहा जाता रहा है कि चुनाव जीतने के बाद पांच साल तक यह जनता के बीच से गायब रहे। क्षेत्र से इनका जुड़ाव नहीं रहा। अपने पूरे कार्यकाल में जनता के बीच काम न करके ऐसे तमाम सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भरोसे बैठे रहे। इसी कारण तमाम सांसदों को जनता ने नकार दिया है।
यूपी में भाजपा की बिगड़ी चाल के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार पार्टी के ही बड़े नेताओं का अति आत्मविश्वास है। जिस तरह से स्थानीय और पार्टी के काडर कार्यकर्ताओं की अनदेखी करते हुए टिकट का बंटवारा किया गया उससे भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ।

More in उत्तर प्रदेश

Trending News

About

प्रतिपक्ष संवाद उत्तराखंड तथा देश-विदेश की ताज़ा ख़बरों का एक डिजिटल माध्यम है। अपने क्षेत्र की ख़बरों को प्रसारित करने हेतु हमसे संपर्क करें  – [email protected]

Editor

Editor: Vinod Joshi
Mobile: +91 86306 17236
Email: [email protected]

You cannot copy content of this page