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ऋषिकेश एम्स में नियुक्ति घोटाला।एक ही परिवार के छह लोगों का चयन।

उत्तराखण्ड

ऋषिकेश एम्स में नियुक्ति घोटाला।एक ही परिवार के छह लोगों का चयन।

विगत 21 साल से उत्तराखंड में लोग बेहाल स्वास्थ्य सुविधाओं से जूझ रहे हैं । पर्वतीय जिलों में कई पीएचसी सीएचसी विशेषज्ञ चिकित्सकों विहीन हैं जहां डॉक्टर हैं भी वहां चिकित्सक सुविधाओं से वंचित कई दिक्कतों के वावजूद सेवाएं दे रहे हैं । वर्ष 2012 में एम्स ऋषिकेश की स्थापना के बाद एक आस जगी थी कि राज्य की गरीब जनता को राहत मिल सकेगी । लेकिन जिस तरह की घटनाएं संस्थान में होने की खबरें काफी समय से सुर्खियों में हैं यह समझने के लिए काफी है कि राज्य की दशा और दिशा किस ओर जा रहा है ।

10 साल बाद संस्थान में सीबीआई की रेड पड़ी है मामला भ्र्ष्टाचार और अनियमिताओं से जुड़ा है । दरसअल कई सामाजिक तथा राजनीतिक संगठनों ने पूर्व निदेशक रविकांत द्वारा भर्तियों तथा सामग्री खरीद में कथित रूप से धांधली के आरोप लगाए थे । जिसके बाद यहां यह कार्यवाही की गई है ।

विगत 5 फरवरी 2022 को फर्जी स्थायी नियुक्तियों और खरीदारी के संदर्भ में कई गई शिकायत में प्रथम दृष्टि में गड़बड़ी मिलते ही सीबीआई की टीम ने छापा मारा । राज्य में चुनाव के चलते यह खबर बड़ी सुर्खियों में नही आई लेकिन अब धीरे धीरे परतें खुल रही है ।

एम्स सूत्रों और संचार माध्यमों से अवगत हुआ है कि जांच एजेंसी सीबीआई ने सभी महत्वपूर्ण दस्तावेजों का अपने कब्जे में ले लिए और जांच जारी है । सूत्रों के अनुसार हार्ड डिस्क में मौजूद डाटा को एकत्र करने के लिए विभिन्न अनुभागों में कंप्यूटर सिस्टम को खंगाला जा रहा है। जिसमे आरोपों के अनुसार साक्ष्य तलाशे जा रहे हैं ।

आइए विस्तार से जानें कौन है डॉ रविकांत और पूरा मामला

डॉ रविकांत किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लख़नऊ के वीसी रहे हैं 2014 में उनकी नियुक्ति बतौर वीसी हुई । डॉ रविकांत को मेडिकल के क्षेत्र में सेवा हेतु भारत सरकार ने पद्म श्री से नवाजा है । अच्छा एकेडमिक करियर होने के वावजूद वह केजीएमयू में विवादों में घिरे रहे । रविकांत के खिलाफ केजीएमयू की टीचर्स यूनियन ने मनमानी से नियुक्ति करने उपकरण और अन्य सामग्री खरीद में घोटालों के आरोप जड़ दिए । यही नही यूनियन ने साक्ष्यों सहित बताया कि वीसी रविकांत ने अपने चहेतों को संस्थान में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन किया । जो कि सभी नियम विरुद्ध हैं ।
इधर 2017 में उन्हें एम्स की कमान सौप दी यहाँ भी उनका कार्यकाल 4 साल रहा और केजीएमयू की तर्ज पर घोटालों का आरोप। निदेशक पर फिर लखनऊ की तर्ज अपने चहेतों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठाने, उपकरण खरीद में गड़बड़ी,नियुक्ति में मानकों की अनदेखी जिसमे नर्सेज नियुक्ति सहित स्टेनोग्राफर भर्ती घोटाले और अपने 6 रिश्तेदारों की नियुक्ति भी शामिल हैं आरोप हैं । फर्क केवल स्थान का है पहले लखनऊ अब ऋषिकेश ।
मामला और बड़ा हो गया है जब पता चला कि संस्थान के लिए आवेदित 800 नर्सिंग स्टाफ के पदों के लिए 600 भर्तियां राजस्थान के निवासी अभ्यर्थियों की हुई है । ज्ञात रहे कि विगत वर्ष राज्य ने नर्सिंग परीक्षा के मानकों को तीन बार बदलना पड़ा । बडी मसक्कत के बाद परीक्षा सम्पन्न हुई ।

हालांकि डॉ रविकांत पहले केजीएमयू और अब एम्स से सभी तरह के मानदेय सहित सेवानिवृत्त हो गए हैं । अब उनके कार्यकाल की जांच चल रही है । खबर के अनुसार जांच एजेंसी जल्द ही बड़ा खुलासा कर सकती है लेकिन दो दो जगह आरोपों से घिरे पद्म श्री के खिलाफ कोई कारवाही होगी यह भविष्य के गर्त में है । हालांकि नर्सिंग स्टाफ भर्ती में एम्स मौजूद प्रसाशन किसी घोटाले से इंकार करता है ।

राज्य निर्माण के 21 साल में जहां आम लोगों को नौकरी के लिए सड़कों पर आंदोलन करने को मजबूर होना पड़ा है । वहीं सरकार के खास अपनी अपनी सुविधानुसार नौकरी पाने में सफल हुए हैं । हर साल लाखों बेरोजगार इसी इंतजार में बैठे रहे कि वह सुबह कभी तो आएगी लेकिन नौकरी या नेता मंत्री अधिकारी का खास पा गया या ले देकर पिछले दरवाजे से फिट कर दिया गया । कहते हैं न जब सरकार ही चिलम लेके बैठी हो तो फिर संस्थाओं की कौन पूछे ?

राज्य में निरंतर नियुक्तियों में गड़बड़झाला नियति बन गया । पहले राज्य के भीतर कुलपतियों की नियुक्ति पर सवाल उठे । राज्य में सत्तारूढ दलों द्वारा चहेतों को नियम विरुद्ध कुलपति की कुर्सी पर आसीन करना आम बात हो चली है । लेकिन किसी अन्य संस्थान में घोटाले के आरोपी के लिए भी उत्तराखंड मुफीद बनते जा रहा है ।

विगत 21 साल में कई बड़े घोटालों के आरोपी बच निकलने में कामयाब रहे हैं । कभी एकदूसरे पर 56 और 45 घोटालों के आरोप जड़ने वाली सतारुढ़ भाजपा और कांग्रेस ने शायद ही सत्ता में पहुच इन घोटालों की तरफ मुड़कर भी देखा हो । यही कारण है राज्य में 500 करोड़ रुपये से अधिक का छत्रवृति घोटाला सामने आया । पांच साल सत्ता में रहकर न सरकार और न ही विपक्ष ने एक शब्द इस घोटाले पर बोला ।
घोटालों पर चुप्पी में सरकार की कोई मजबूरी रही या जानबूझकर यह होने दिया गया है यह भी एक जांच का विषय है लेकिन ? अब देखना है इस मामले में क्या कुछ बाहर आता है ।

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