Connect with us

इन गाँवों से प्याज के पौध पहुंचते हैं दूर-दूर

उत्तराखण्ड

इन गाँवों से प्याज के पौध पहुंचते हैं दूर-दूर

   भुवन बिष्ट,रानीखेत

रानीखेत। भारत देश और हमारी देवभूमि उत्तराखंड भी कृषि प्रधान के रूप में जाने जाते हैं। देवभूमि उत्तराखंड की धड़कन हैं गांव और देवभूमि के पहाड़ के गांवों में कृषि, पशुपालन, फलोत्पादन, सब्जी उत्पादन, खेती बाड़ी प्रमुख रूप से जीविकोपार्जन का एक सशक्त माध्यम रहे हैं। आज भले ही पलायन से गांव खाली हो चुके हों या जंगली जानवरों, बंदरों, आवारा पशुओं के आतंक से खेती बाड़ी चौपट हो रही हो या किसानों का मोह भंग हो रहा हो किन्तु फिर भी अधिकांशतः गाँवों में कृषि उपजाऊ भूमि में गेहूँ, धान, मडूवा,गहत, रैस, भट, दलहनी फसलें लहलहाती हुई दिखाई देती हैं तो दूसरी ओर सब्जी उत्पादन के रूप में भी अनेक गाँव बिख्यात हैं।

विकास खण्ड ताड़ीखेत के सब्जी उत्पादन के लिए प्रसिद्ध गाँव मंगचौड़ा, मकड़ो गाँव प्याज के पौध तैयार करने और इन्हें बेचने के लिए भी काफी प्रख्यात हैं। मौना,म्वाण ,नावली बनोलिया मटेला चमना बिष्टकोटली गाँव में भी प्याज के पौध तैयार किये जाते हैं व खेतों में प्याज का उत्पादन भी किया जाता है। अनेक गाँव गोभी, मटर,मिर्च के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं तो दूसरी ओर देवभूमि के अनेक गाँव फल उत्पादन के लिए भी जाने जाते हैं देवभूमि के इन गाँवों की फल सब्जियां जहां दूर दूर तक मंडियों तक पहुंचती हैं और विभिन्न राज्यों तक अपनी महक को पहुंचाने में सफल रहती हैं। देवभूमि उत्तराखंड के पहाड़ के अनेक गाँव आज भी अपनी अपनी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के ताड़ीखेत विकासखण्ड के मौना, मकड़ो, मंगचौड़ा, चौकुनी, चमना, बिष्टकोटुली, नावली, म्वाण,बनोलिया तथा मटेला आदि गाँव अपने सब्जी उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। मकड़ो, मंगचौड़ा गाँव के प्याज के पौध काफी प्रसिद्ध हैं यहाँ काश्तकारों द्वारा प्याज की नर्सरी तैयार करके दूर दूर तक इन्हें बेचकर जीविकोपार्जन किया जाता है। काश्तकार काफी मेहनत से प्याज की नर्सरी तैयार करते हैं। सर्वप्रथम इनका बीज बनना और प्याज की नर्सरी को तैयार करना भी काफी कठिन व मेहनत भरा कार्य है। और उससे भी अधिक है इन्हें बचाये रखने की चुनौती क्योंकि मौसम का विपरीत होना या उससे कहीं अधिक जंगली, आवारा पशुओं बंदरों से बचाना बहुत बड़ी चुनौती होती है। इन गाँवों के प्याज के पौध काश्तकारों द्वारा दूर दूर तक बेचे जाते हैं। रानीखेत शहर सहित अल्मोड़ा, द्वाराहाट, चौखुटिया, सोमेश्वर, गरूड़ तक काश्तकारों द्वारा प्याज के पौधों को बेचने के लिए ले जाया जाता है और एक अच्छी आय भी अर्जित की जाती है। सब्जी उत्पादन के द्वारा काश्तकार अपनी खेती बाड़ी, उद्यान पर आत्मनिर्भर भी होते हैं। यह रोजगार का भी एक सशक्त माध्यम होता है। आजकल भले ही गांवों में आवारा पशुओं, जंगली जानवरों, बंदरों के द्वारा बहुतायत मात्रा में खेतों को क्षति पहुंचायी जाती हैं किन्तु कर्मठता इन सब पर हावी होती है और अपनी कठिन मेहनत से सब्जी का बहुतायत मात्रा में उत्पादन किया जाता है। मौना,मकड़ो, मंगचौड़ा,चौकुनी, चमना, बिष्टकोटुली, नावली, म्वाण,बनोलिया,मटेला आदि गाँव अपने सब्जी उत्पादन के लिए जाने जाते हैं और दूर दूर तक पहुंचती है इन गाँवों के सब्जियों की महक। आजकल मंकड़ो मंगचौड़ा, गाँवों के प्याज के पौध दूर दूर तक पहुंच रहे हैं।

Ad Ad
Continue Reading
You may also like...

रिपोर्टर - प्रतिपक्ष संवाद अपने क्षेत्र की ख़बरों को प्रसारित करने हेतु हमसे संपर्क करें – [email protected]

More in उत्तराखण्ड

Trending News

About

प्रतिपक्ष संवाद उत्तराखंड तथा देश-विदेश की ताज़ा ख़बरों का एक डिजिटल माध्यम है। अपने क्षेत्र की ख़बरों को प्रसारित करने हेतु हमसे संपर्क करें  – [email protected]

Editor

Editor: Vinod Joshi
Mobile: +91 86306 17236
Email: [email protected]

You cannot copy content of this page