राजनीति
गुजरात – बिना चुनाव लड़े ही जीत गए बीजेपी के उम्मीदवार मुकेश दयाल : कांग्रेस उम्मीदवार जीत को सुप्रीम कोर्ट में देंगे चुनौती ।।
सूरत – लोकसभा चुनाव 2024 के तहत 7 मई को सूरत में वोटिंग होनी थी. पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार करीब 16 लाख वोटरों को अपना सांसद चुनने के लिए इस दिन वोटिंग करने के लिए अपने घरों से बाहर निकलना था.
हालांकि कांग्रेस प्रत्याशी की एक चूक के चलते पार्टी ने बिना लड़े ही यह सीट गंवा दी है. बीजेपी के मुकेश दलाल का निर्विरोध जीतना तय हो गया है. अब तक की स्थिति के अनुसार 7 मई को सूरत में लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग नहीं होगी. हालांकि चार जून को ही चुनाव आयोग नतीजों की घोषणा करेगा.
मन में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर कांग्रेस के उम्मीदवार ने ऐसी क्या गलती कर दी जो बीजेपी के मुकेश दलाल की झोली में यह सीट बिना कुछ करे ही आ गई. आइये हम आपको इसके बारे में बताते हैं. दरअसल, गुजरात में सूरत सीट के लिए कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी की दावेदारी रद्द कर दी गई है.
ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि जिला रिटर्निंग अधिकारी ने उनके नामांकन पर प्रस्तावकों के हस्ताक्षर में कथित विसंगतियां पाई. इस निर्णय के कारण उसी सीट के लिए कांग्रेस के सब्स्टीट्यूट उम्मीदवार (स्थानापन्न) सुरेश पडसाला का नामांकन फॉर्म भी खारिज हो गया है.
खासबात यह है कि नीलेश कुंभानी के चुनावी दौड़ से बाहर होने के बाद चुनाव लड़ रहे अन्य विरोधी दल के उम्मीदवारों ने भी अपना नामांकन वापस ले लिया है. ऐसे में अब बीजेपी के मुकेश दलाल के खिलाफ एक भी ऐसा प्रत्याशी नहीं है जो चुनाव लड़ रहा है. यही वजह है कि उनका चुनाव जीतना तय हो गया है. जब उनके विरोध में कोई दूसरा प्रत्याशी है ही नहीं तो ऐसे में सात जून को वोटिंग की प्रक्रिया को अंजाम नहीं दिया जाएगा.
कांग्रेस उम्मीदवार का कहना है कि वो इसके विरोध में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. वो रिटर्निंग ऑफिसर के फैसले को चुनौती देंगे. बता दें कि पेश मामले में मुकेश दलाल के चुनाव एजेंट ने कांग्रेस उम्मीदवार के नामांकन फॉर्म पर आपत्ति जताई थी, जिसके बाद रिटर्निंग अधिकारी ने कांग्रेस उम्मीदवार को रविवार को अपना मामला पेश करने का मौका दिया था.
जवाब में, कुंभानी ने दावा किया कि प्रस्तावकों ने उनकी उपस्थिति में फॉर्म पर हस्ताक्षर किए थे और हस्तलेखन विशेषज्ञ से हस्ताक्षरों की जांच करने का सुझाव दिया था. रिटर्निंग अधिकारी ने हलफनामों और सबूतों की समीक्षा करने के बाद हस्ताक्षरों को संदिग्ध माना और नामांकन खारिज कर दिया.