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देवभूमि की आराध्य देवी मां नंदा सुंनंदा की हो रही है जयकार। “मां नंदा सुनंदा जनसामान्य की लोकप्रिय देवी के रूप में जानी जाती हैं”

उत्तराखण्ड

देवभूमि की आराध्य देवी मां नंदा सुंनंदा की हो रही है जयकार। “मां नंदा सुनंदा जनसामान्य की लोकप्रिय देवी के रूप में जानी जाती हैं”


रानीखेत। देवभूमि उत्तराखंड अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विश्व विख्यात है तो यह देवों की तपोभूमि के रूप में भी जानी जाती है और देवभूमि में सदैव होता है अटूट आस्था का संगम। देवभूमि उत्तराखण्ड में आजकल मां नंदा सुनंदा के जयकारे से गुंजायमान हो रहे अनेक क्षेत्रों में नंदा महोत्सव की धूम मची हुई है। मां नंदा देवभूमि उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल और कुमाऊं मंडल सहित हिमालय के अन्य भागों में जन सामान्य की लोकप्रिय देवी के रूप में जानी जाती हैं। नंदा देवी अल्मोड़ा हो या नैना देवी नैनीताल व कुमांऊ के सभी शहरों व कस्बों में हो रहे है मां नंदा सुनंदा के भक्तिमय वातावरण से समस्त देवभूमि में नंदा देवी महोत्सवों की धूम मची हुई है। कुमांऊ सहित देवभूमि में सभी स्थानों में मां नंदा सुनंदा की कदली वृक्ष को लाकर स्थापना की जाती है और होता है माता नंदा सुनंदा का गुणगान….
जय जय माँ नंदा सुनंदा, माता दिये वरदान।
देवभूमि की माता प्यारी, भौते छन महान।
माता नंदा सुनंदा की स्थापना के लिए सर्वप्रथम कदली वृक्ष को भक्तों द्वारा पूजा अर्चना करके सम्मान के साथ मंदिर लाया जाता है। फिर माता नंदा सुनंदा की भव्य मूर्तियों के रूप में इन्हें आकार प्रदान किया जाता है। और फिर नंदाष्टमी के साथ प्राण प्रतिष्ठा व स्थापना का कार्य किया जाता है। इसके बाद नंदा सुनंदा की पूजा अर्चना के साथ महोत्सव का आरंभ हो जाता है। माता नंदा की उपासना प्राचीन काल से ही किये जाने के प्रमाण धार्मिक ग्रंथों, उपनिषद और पुराणों में मिलते हैं। देवी भगवती की छः अंगभूता देवियों में नंदा भी एक है। नंदा को नवदुर्गाओं में से भी एक बताया गया है। शक्ति के रूप में नंदा ही सारे हिमालय में पूजित हैं। मान्यता है कि चंद्रवंशीय राजा के घर नंदा के रूप में देवी प्रकट हुई। उनके जन्म के कुछ समय बाद ही सुनंदा प्रकट हुई। इनके संदर्भ में हिमालय में एक मान्यता यह भी है कि राज्य द्रोही षडयंत्रकारियों ने उन्हें कुटिल नीति अपना कर भैंसे से कुचलवा दिया था। भैंसे से बचने के लिए देवी ने कदली वृक्ष में छिपने का प्रयास किया। इसी दौरान एक जंगली बकरे ने केले के पत्ते खाकर उन्हें भैंसे के सामने कर दिया।बाद में वही कन्याएं पुनर्जन्म लेकर नंदा, सुनंदा के रूप में अवतरित हुईं और राजद्रोहियों के विनाश का कारण भी बनीं। एक मूर्ति को नंदा और दूसरी को गौरा देवी की मान्यता प्राप्त है।और कदली के वृक्ष से ही नंदा सुनंदा की मूर्तियों को आकार प्रदान किया जाता है।
माता नन्दा के अनेक नामों में प्रमुख हैं शिवा, सुनन्दा, शुभानन्दा, नन्दिनी। देवभूमि उत्तराखण्ड में समान रूप से पूजे जाने के कारण मां नंदा सुनंदा को धार्मिक एकता के सूत्र के रूप में देखा गया है। मां नंदा चंद वंशीय राजाओं के साथ संपूर्ण उत्तराखंड की विजय देवी थीं। हालांकि  कुछ विद्वान उन्हें राज्य की कुलदेवी की बजाय शक्तिस्वरूपा माता के रूप में भी मानते हैं। देवभूमि के सभी क्षेत्रों में मां नंदा देवी महोत्सवों की धूम मची है और नंदा देवी महोत्सव में विभिन्न प्रतियोगिताओं सांस्कृतिक कार्यक्रमों भजन कीर्तनों का भी आयोजन किया जाता है। देवभूमि सदैव ही देवों की तपोभूमि रही है। महोत्सव सदैव ही एकता के सूत्र में हमें बांधते हैं और प्रत्येक आयोजन महोत्सव भी कुछ न कुछ प्रेरणा अवश्य देते हैं ।आधुनिक चकाचौंध में तेजी से आ रहे सांस्कृतिक शून्यता की ओर जाते दौर में भी यह महोत्सव न केवल अपनी पहचान कायम रखने में सफल रहे हैं वरन इसने सर्वधर्म संभाव की मिशाल भी पेश की है। पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देते हैं महोत्सव। एकता अखण्डता व सांस्कृतिक विरासत की पहचान महोत्सवों को संजोये रखने की आवश्यकता है।

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