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किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में फाइब्रॉएड निकालकर महिला की हुई सफल डिलीवरी।

स्वास्थ्य

किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में फाइब्रॉएड निकालकर महिला की हुई सफल डिलीवरी।

लखनऊ-केजीमयू की डॉ. एसपी जैसवार ने बताया कि फाइब्रॉएड के साथ गर्भावस्था अत्यधिक जोखिम वाली स्थिति होती है। 1.5-4% मामलों में गर्भावस्था के साथ फाइब्रॉएड (लेयोमायोमा) पाया जाता है। इनमें से 10 मामलों में से एक को जटिलताओं का सामना करना पड़ता है और अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता होती है। गर्भावस्था में फाइब्रॉएड का आमतौर पर तब पता चलता है जब प्रारंभिक गर्भावस्था का अल्ट्रासाउंड किया जाता है। यदि बेड़ फाइब्रॉएड का गर्भावस्था के दौरान इलाज नहीं किया जाता है, तो यह गर्भपात, समय से पहले प्रसव, झिल्ली का समय से पहले टूटना, भ्रूण की हानि और फाइब्रॉएड का लाल अधः पतन जैसी कई जटिलताओं का कारण बनता है। यहां तक कि प्रसव में रुकावट, सिजेरियन सेक्शन का खतरा बढ़ना और प्रसवोत्तर रक्तस्राव जैसी कई अंतर्गर्भाशयी जटिलताएं भी हो सकती हैं।

गर्भावस्था के दौरान फाइब्रॉएड को हटाने का निर्णय (एंटीनेटल मायोमेक्टॉमी) आमतौर पर फाइब्रॉएड के आकार, संख्या और स्थान, गंभीर दर्द और फाइब्रॉएड के आकार में तेजी से वृद्धि से तय होता है। भारत में प्रसवपूर्व मायोमेक्टोमी कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं है। वैश्विक स्तर पर भी इसके बहुत ही कम मामले सामने आए हैं।

सितंबर 2023 में मऊ उत्तर प्रदेश से 30 वर्षीय मरीज को गर्भावस्था के 9वें सप्ताह में बहुत बड़े फाइब्रॉएड के साथ रेफर किया गया था। फाइब्रॉएड इतना बड़ा था कि 2.5 महीने की गर्भावस्था में पेट 6 महीने की गर्भावस्था लगती थी।

मरीज को हमारे यहां भर्ती कराया गया और 18 सप्ताह की गर्भावस्था में एनॉमली स्कैन कराने के बाद नवंबर 2023 में मरीज की एंटीनेटल मायोमेक्टॉमी की गई। ऑपरेशन डॉ. एसपी जैसवार, डॉ. सीमा मेहरोत्रा, डॉ. पुष्प लता संखवार और डॉ. मंजु लता वर्मा की टीम ने किया और एनेस्थेटिस्ट डॉ. राजेश रमन एवं सिस्टर इंचार्ज ममता यादव का सहयोग मिला। ऑपरेशन के बाद 171412 सेमी आकार का फाइब्रॉएड निकाला गया जो टिवस्ट था और गंभीर दर्द का कारण था। ऑपरेशन के बाद मरीज को सातवें दिन एकदम ठीक अवस्था में छुट्टी दी गयी।

प्रसव पूर्व देखभाल के लिए गर्भावस्था के 9 महीने तक रोगी की निगरानी की गई। इस मामले में हमारी सलाह के अनुसार रोगी ने नार्मल डिलीवरी का विकल्प चुना। इसलिए 38 वें सप्ताह में मरीज को प्रसव पीड़ा प्रेरित करने वाली दवाएं दी गई। मरीज ने 3.5 किलोग्राम के एक स्वस्थ बच्चे को नार्मल डिलीवरी से जन्म दिया। डिलीवरी के बाद मां और बच्चा दोनों ठीक हैं।

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