उत्तराखण्ड
टिहरी जनपद के पूर्व विधायक, जिला परिषद के अध्यक्ष महापुरुष स्व०सते सिंह राणा जैसी शख्सियत का सुमिरन करना मुनासिब नहीं समझा शासन-प्रशासन भूल गई ऐसे महापुरुष को।
दैनिक प्रतिपक्ष संवाद गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल श्रीनगर गढ़वाल – आज आपके समक्ष ऐसे महापुरुष स्वर्गीय सते सिंह राणा पूर्व विधायक जैसी शख्सियत के बारे में विस्तृत जानकारी दे रहे हैं भगवान सिंह चौधरी सामाजिक कार्यकर्ता एवं ब्लॉक अध्यक्ष वन यूके टीम सामाजिक संगठन भिलंगना जनपद टिहरी के पूर्व विधायक पूर्व जिला परिषद के अध्यक्ष व सरकारी राजपत्रित अधिकारी रहे स्व०सते सिंह राणा भारत के उत्तर प्रदेश की प्रथम विधानसभा में विधायक रहे 1952 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इन्होंने टिहरी गढ़वाल जिले के देवप्रयाग विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव में विजय का पताका फहराया। जिन्होंने अपनी जिन्दगी की 45 दिवाली वसन्त जिले के विकास के लिए समर्पित किए और शहीद हो गए थे उनके नाम से एक भी योजना लागू नहीं कर पाए क्षेत्र और जिले के जन प्रतिनिधि स्व०सते सिंह राणा ने कालीमठ में मां काली की उपासना की तत्कालीन एक पुजारी के द्वारा इन्हें मां काली का एक श्रीयंत्र आशीर्वाद स्वरूप दिया गया था उस यंत्र को पाने के बाद स्व० राणा को कभी भी हार, भ्रम, दुख व विषाद का सामना नहीं करना पड़ता था ,राणा सुबह चार बजे उठकर मां काली की भक्ति में लीन हो जाते थे। स्व०सते सिंह राणा के पुत्र समर विजय राणा के अनुसार मां काली ने राणा को स्वप्न बताया कि हे राणा सते सिंह बस तेरा मेरा साथ यही खत्म होता है, तू अपने जरूरी कार्य निपटा ले बहुत जल्द हम बिछड़ने वाले हैं यह बात स्व०राणा ने अपने करीबी मित्र को बतायी ,और चल पड़े लखनऊ की ओर तभी घर वापसी के समय वाहन दुर्घटना में सते सिंह राणा का नाम अमर हो गया।
स्व०सत्ये सिंह राणा गांव-चौरा, पट्टी नैलचामी, पो०-डांगी, जिला टिहरी गढ़वाल में जन्मे थे। उन्होंने बी.ए., एल.एल.बी. की पढाई पूरी की और अध्यापन कार्य के लिए प्रताप हायर सेकेण्डरी स्कूल टिहरी चले गये। उसके बाद उन्हें आजादी के बाद की अन्तरिक सरकार में पी.ए. सेटलमेन्ट कमिश्नर टिहरी स्टेट में काम करने का अवसर प्राप्त हुआ। यही नहीं वे एस.डी.एम. टिहरी स्टेट भी रहे। वे वर्ष 1952-57 तक देव प्रयाग क्षेत्र से निर्दलीय विधायक रहे। उन्होंने 1957 से 23-7-1963 तक कीर्तिनगर व टिहरी में लगातार वकालत की जबकि वे अंतरिम सरकार के दौरान अध्यक्ष जिला परिषद, टिहरी गढ़वाल रहे। और पुनः नवम्बर 1961-1963 तक जिला परिषद, टिहरी गढ़वाल के अध्यक्ष बने, मात्र 45 वर्ष की आयु में वे संघर्ष करते करते इस दुनियां को अलविदा कह गये।
टिहरी से घनसाली तिलवाड़ा मोटर मार्ग हो या फिर रूद्रप्रयाग का जखोली विकासखण्ड जो कि पहले टिहरी जिले में था और अब रुद्रप्रयाग में चला गया है। उन्होंने टिहरी जिले के ब्लॉकों की स्थापना की बात जब भी आती है तो स्व०राणा सते सिंह को भुलाया नहीं जा सकता। गरीब किसान कीर्ति सिंह राणा के घर पर पट्टी नैलचामी के चौंरा गांव में जन्मा यह लाल बचपन से ही तेजस्वी रहा इनका परिवार बहुत धनी नहीं था लिहाजा मुसिबतों का सामना करते हुए पढ़ाई लिखाई का जिम्मा इन्होंने खुद लिया। बी.ए.करने बाद जब वह किसी गरीब को खुद के हक के लिए लड़ते देखा तो उनके मन में पीड़ा सी होने लगी। एल.एल. बी. की पढ़ाई पूरी कर लौटते ही स्व० राणा का चयन अध्यापन कार्य हेतु प्रताप इण्टर कॉलेज टिहरी में हो गया कुछ वर्ष अध्यापन कार्य करने के बाद फिर उनका चयन पी.ए. सेटेलमेन्ट कमीशनर टिहरी स्टेट के लिए हुआ। वहां पर अपनी सेवा दी और बाद में परिस्थितियां ऐसी बनी कि स्व०सते सिंह राणा को उप जिला मजिस्ट्रेट टिहरी बना दिया गया किन्तु उनके मन में गरीबों की पीड़ा सताती रही। कुछ समय बाद स्व०राणा ने नौकरी छोड़ दी सामाजिक कार्यों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी शुरू कर दी। राजनीति के क्षेत्र में भाग्य अजमाना चाहा और वर्ष 1952 में देवप्रयाग क्षेत्र से विधायक का चुनाव लड़ा तब तक आम जनता में अपने नाम का डंका बजा चुके थे। बच्चा-बच्चा भी सते सिंह राणा का नाम जानता था। सभी पार्टीयों ने राणा पर डोरे डालना शुरू कर दिया था किन्तु राणा ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की ठानी और कारण इसके स्व०राणा भारी बहुमत से विजयी हुये।
उन्होंने अपने लघु जीवन काल में सकारात्मक सोच, विकास में लोगों की भागीदारी और गरीबों के दर्द को बांटने की बात की। वर्तमान में भले ही उनकी राजनीतिक विरासत को कोई भी राजनेता व राजनैतिक संगठन आगे नहीं बढ़ा पा रहे हो मगर उनकी क्षेत्र के विकास में दी जाने वाली आहूति लोगों के जेहन में आज भी तरोताजा रहती है। उनमें सूरज के जैसा तेज था वो उठते ही सुबह चार बजे स्नान कर सामाजिक कार्यों में लग जाना लोगों की समस्याओं को सुनना व उनका समाधान कर उनकी दिनचर्या बन चुकी थी। स्थानीय लोग बताते हैं कि राणा सते सिंह इतना व्यस्थ होने लगे कि उनके पास परिवार को समय देना मुश्किल हो गया। दूसरों के प्रति उदारता की सच्ची भावना लिए क्षेत्रीय विकास को नीति अपनी मेज पर नहीं बल्कि गांव-गांव में चौपाल लगवाकर लोगों की गम्भीर समस्याओं की एक सूची तैयार करवाते थे फिर शुरू होते थे विकास कार्य। उन्होंने अपने जीवन का सारा समय दूसरों की सेवा व दूसरों को हर प्रकार के सुख पहुंचाने में लगाया। अपने लिए उनके पास एक रति का भी समय नही रहता था। अपने संक्षिप्त राजनीति के क्षेत्र में बड़े बड़े कार्य किए जिनसे आम जनता आज भी रूबरू होती है जनता ने विधायक के बाद नवम्बर 1961 में टिहरी जिला परिषद का अध्यक्ष चुना और पुनः हुए चुनाव में भी टिहरी जिला परिषद के अध्यक्ष पद पर दुबारा लोगों की पसंद बने अपने लम्बे और विभिन्न विकास कार्यों की फेहरिस्त में स्व०राणा द्वारा कुछ ऐतिहासिक कार्य किए गये जिन्हें टिहरी घनसाली चिरबटिया-तिलवाड़ा मोटर मार्ग रूद्रप्रयाग व जखोली विकास खण्ड के साथ साथ समस्त जिले में विकास खंड खुलवाए , चम्बा-मसूरी फलपट्टी- योजना तैयार करवायी, टिहरी जिला परिषद का गठन, स्वरोजगार हेतु लोगों को भेड़ पालन के लिए प्रोत्साहित करना, गांव-गांव जाकर वृक्षारोपण करवाना, जनपद को यातायात से जोड़ने के लिए दर्जनों मोटर मार्गों की वृद्धि करवाना एवं शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न स्कूलों को खुलवाने का श्रेय आज भी लोग इन्हें देते हैं। स्व०सते सिंह राणा का एक ही सपना था कि देश की विकास गति बड़े साथ ही टिहरी कभी पिछड़े ना। यही कारण था कि स्व०राणा ने हर व्यक्ति को
आत्मनिर्भर व स्वरोजगार अपनाने की प्रेरणा दी। क्षेत्र के विकास के लिए रोड,पेड़ और भेड़ का नारा दिया था। गांवों में चौपाल लगाकर सम्बन्धित क्षेत्र की विकास योजनओं को स्वीकृति करवाकर यह विकास पुरुष लखनऊ से टिहरी लौट ही रहे थे कि अचानक जाजल गदेरे पर बस दुर्घटना ग्रस्त हुई। जिसमें सवार राणा सते सिंह काल की गोद में समा गए। साथ ही उनके द्वारा चलाए गए विकास कार्य अविरल रथ आखिर हमेशा-हमेशा के लिए यही ठहर गया चिंता का विषय यह है कि इस महापुरूष के नाम से आज पूरे टिहरी जनपद व नैलचामी पट्टी में एक भी योजना संचालित नहीं है. जिससे कि इनका नाम अमर रह सके। सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोग हों या राजनीतिक संगठनों के मुख्यधारा से जुड़े लोग इन लोगों ने कभी भी इस शख्सियत का सुमिरन करना मुनासीब नहीं समझा और ना ही उनके द्वारा स्थापित कार्यों को उनके नाम से संचालित करने की बात कही। बजाय ये नेता/ कार्यकर्ता लोग योजनाओं के ठेके लेने के लिए जरूर विभागों के चक्कर काटते है परन्तु दुःख इस बात का है कि क्षेत्र में स्व०राणा के नाम का एक भी अस्पताल, स्कूल व सड़क नहीं है। जबकि उस जमाने में राणा एक मात्र नेता के नाम से जाने जाते थे ,और तो और राणा टिहरी जिले की कई विकास योजनाओं को लखनऊ से पास करा कर टिहरी भी नही पहुंच पाए और ऑन ड्यूटी दुनिया को अलविदा कह गए, स्व०सते सिंह राणा ने अपनी जिन्दगी के पैंतालीस बसन्त और पैंतालीस दिवाली टिहरी के विकास के लिए न्योछावर की है। भगवान सिंह चौधरी ब्लॉक अध्यक्ष भिलंगना वन यू के टीम सामाजिक संगठन ने टिहरी जिले के क्षेत्रीय जन प्रतिनिधियों, सांसद, विधायको ,और जिला अध्यक्ष से मांग करते हैं की घनसाली तिलवाड़ा मोटर मार्ग का नाम, राजकीय इंटर कालेज डांगी का नाम और राजकीय मेडिकल कालेज टिहरी का नाम सते सिंह राणा के नाम से करवाने की कृपा करें,और पूर्व विधायक भीम लाल आर्य द्वारा जो भिलंगना विकास खण्ड के मुख्यालय के प्रांगण में स्व०सते सिंह राणा की मूर्ति स्थापना की गई है उसको भव्या और दिव्या स्वरूप देकर उसका सौंदर्यकरण करवाया जाएं।