धर्म-संस्कृति
प्रभु सच्चिदानंद स्वरुप हैं–लेखक-एम.एस.रावत
दैनिक प्रतिपक्ष संवाद प्रदीप कुमार।
श्रीनगर गढ़वाल। परमात्मा के तीन स्वरूप हैं,अस्तित्व,चेतन और आनंद,इसी कारण प्रभुको सच्चिदानंद भी कहा जाता है,हमारे शरीर की भी यही स्थति है,शरीर अर्थात अस्थित्व,चेतन याने आत्मा और हम आनंद का अनुभव करते हैं,कभी- कभी इतना सुखद होता है कि हमें
प्रमात्मा का स्मरण करा देता है,यही हमारी आत्मा प्रमात्मा का अंश होने के कारण ही वह सदैव सद्गुणों की ओर ही ले जाने की चेष्टा करती है,और हम हैं कि उसके संकेतकों न समझकर स्वार्थ बस अज्ञानजनित मोहवश नजर अंदाज कर जाते हैं,जिसके परिणाम स्वरूप तमाम प्रतिकूल प्रस्थतियाँ हमारे सामने आखड़ी होती है, और उनसे उबर पाना मुश्किल हो जाता है,जब हम प्रमात्मा को याद कराते हैं,प्रभु से असंग होते ही हम दुःखो की परिधि में प्रवेश कर जाते हैं,
इंस्थातियों से बचने के लिए एक मात्र उपाय यही है,हम प्रभूका साथ कभी न छोड़ेंगे उनके स्मरण के आनंद में हमेशा डूबे रहें,अपना सर्वस्व जो उन्ही का है, उन्हीं को सौंपते हुए पूरी तरह समरपंभव से प्रमात्मा के अधीन हो जाने पर प्रभु का अनुग्रह अवश्य मिलता है,क्यों कि प्रभु बड़े कृपालु हैं,उन्हे अपने भक्तोंका सर्वदा ध्यान रहता है,जब हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व ही प्रमात्मा की कृपा पर टिका है,उन्हे अपने भक्तों का सर्वदा ध्यान रहता है,जब हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व ही प्रमात्मा की कृपा पर टिका है तो हमे अपने सुखमय जीवन की कामना के लिए ईश्वर की प्रार्थना कभी खाली नही जाती अन्तस की पुकार प्रभु अवश्य सुनते हैं.हमारा शरीर ही नहीं बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड प्रमात्मा के स्वरूप का प्रतीक है,जगत अस्तित्व के रूपमें,पंचतत्व चेतना के रूपमें और सृष्टि के कण कणमें आनंद समाया हुआ है,इसी से हमारा शरीर भी निर्मित हुआ है,हमारा प्रथम कर्तव्य है कि हम उसे कभी न भूले जिससे हमारा अस्तित्व निर्मित हुआ है,यादि हम नियमित प्रार्थना को अपने जीवन का महत्व दे तो प्रभु हमे अपने प्रति लगाव का अनुभव होता रहेगा,प्रार्थना मे असीम शक्ति होती है,
सचिदानंद प्रभु पर सब कृपा करते हैं, यदि सच्चे हृदय से उन्हे पुकारा जय तो अवश्य सुनते हैं,ओर उनका स्मरण भी यदि हम हर क्षण करते रहे तो भी कभी दुःख हमारे समीप ही न आए,क्योंकि जब हम नस्वर वस्तुओ के प्रति मोह करते हैं,तभी दुःख का कारण बनता है,अत: हमे नश्वरता और भौतिक की ओर आकर्षित न हो कर जीवन की वास्तविकता को समझना होगा,संसार के कण कण में प्रभु स्थापित हैं,उनकी चेतना हमे वायु,जल,आदि रूपों में हरक्षण मिलती रहती है,
सूरज का नियमित रूप से निकलना और अस्त होना,इस तरह की तमाम भौतिक गति विधियों से हमे प्रत्यक्ष रूप से प्रमात्मा के अस्तीत्व का बोध होता है,हमे हर क्षण प्रभु का स्मरण करना चाहिए,क्योंकि हमारा शरीर उन्ही के अनुग्रह का प्रतीक है,ओर प्रभु कृपा के इन रूपों में हमे निरंतर मिल रही है।