धर्म-संस्कृति
मां कुष्मांडा, नौ देवियों की एक रूपरूपी देवी हैं।
नवरात्रि के चौथे दिन को मां कुष्मांडा का पूजन किया जाता है। मां कुष्मांडा, नौ देवियों की एक रूपरूपी देवी हैं और उनकी कथा हिन्दू धर्म के अनुसार बहुत महत्वपूर्ण है।
कुष्मांडा का नाम संस्कृत शब्द “कुष्म” और “आण्ड” से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है “ब्रह्मांड का अंश”। वैदिक साहित्य में इस देवी को ब्रह्मांड की उत्पत्ति का प्रतीक माना जाता है।

मां कुष्मांडा की कथा श्रीमद् देवी भागवत में वर्णित है। कथा के अनुसार, एक समय की बात है, जब दुनिया का सृजनाकार भगवान विष्णु ने महाकाल को जागृत किया। वह जाग्रत होकर एक अंधकार में डूबी दुनिया को देखा और उसे ब्रह्मांड के संरचना के लिए बनाने का कार्य सौंपा।
महाकाल का यह कार्य कुश्मांडा के रूप में उसने किया। मां कुष्मांडा ने अपनी बिना सिर के ब्रह्मांड की सृजनात्मक शक्ति का प्रतीक बनाया। उनकी चारों ओर उसी की शक्ति घिरी रहती है, और वह दुनिया की रचनाकारी देवी के रूप में पूजी जाती हैं।

मां कुष्मांडा का पूजन नवरात्रि के चौथे दिन किया जाता है, जब प्रेम से उनका ध्यान किया जाता है। उनकी मूर्ति के सामने एक झूला भी सजाया जाता है, जिसे उनकी विशेष प्रसन्नता के लिए हिलाया जाता है। भक्तगण उनका पूजन व्रत और आराधना करते हैं और उनसे शक्ति, साहस और सृजनात्मक शक्ति की प्राप्ति करते हैं।

मां कुष्मांडा की कथा ब्रह्मांड की रचना और उसकी रक्षा के महत्वपूर्ण संदेश के साथ है, और इसलिए नवरात्रि के इस दिन का विशेष महत्व होता है। भक्तगण इस दिन मां कुष्मांडा का पूजन करके उनकी आशीर्वाद से जीवन में सफलता और खुशी प्राप्त करते हैं।

इस रूप में, मां कुष्मांडा की कथा नवरात्रि के चौथे दिन का महत्वपूर्ण हिस्सा है और भक्तगण उनके पूजन के माध्यम से दिव्य शक्तियों की आराधना करते हैं।












