चंपावत
जिस स्कूल में कभी बच्चे पढ़ते थे आज वहां कुत्ते सो रहे हैं ? उत्तराखंड के भविष्य के बुरे दौर की कहानी ।।
पलायन की मार झेल रहे सरकारी विद्यालय !!
स्पेशल रिपोर्ट Suraj sonu
चंपावत – यूं तो सरकार शिक्षा व्यवस्था के लिए बड़े बड़े दावे करती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है , आज हम आपको रा प्रा वि मथेलाछाना की कहानी को आधार मानकर उत्तराखंड की कहानी बताएंगे , ये सरकारी स्कूल के बंजर पड़े भवन दिखा रहे हैं उत्तराखंड शिक्षा व्यवस्था की असली हकीकत ,यह एकमात्र स्कूल नहीं है दोस्तों बल्कि ऐसे राज्य के तमाम स्कूल हैं जो अब बंजर पड़ चुके हैं ,और कुछ भविष्य में बंजर होने की स्तिथि में हैं ।
इस तरह बनेंगे हम विश्व गुरु ?
हम देश को विश्व गुरु बनाने की बात करते हैं , यह सोचना भी मजाक लगता है, उत्तराखंड राज्य भारत देश के प्राचीन काल से ऋषि मुनियों की तप स्थली रहा है,यहां अनेकों विद्वान ऋषि मुनि मानुष हुए हैं । शिक्षा के क्षेत्र में भी यह उत्तराखंड कभी वेदों की तपस्थली रही है।।आज विभाग भले कितनी शिक्षा व्यवस्था की बाते कर लें, विश्व गुरु की बातें कर लें उतराखंड सरकार के सरकारी विद्यालयों की स्तिथि दयनीय हालातों में है , इसको कोई झुठला नहीं सकता, इन विद्यालयों में गरीब तबके के मध्यमवर्गीय परिवार के लोग पढ़ते हैं ,कही विद्यालयों में शिक्षक नहीं हैं कहीं विद्यालयों में संसाधन नहीं हैं ।।कई सारे सरकारी विद्यालय बंद हो चुके हैं और भी बंद होने के कगार पर हैं,सरकार भले कितनी योजनाओं का बखान कर ले लेकिन आज कोई भी अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में नही पढ़ाना चाहता ।
स्कूलों का बंद होना मतलब राज्य की तरक्की में संकट
लोग शिक्षा के लिए मजबूत हैं बच्चों को निजी विद्यालयों में पढ़ाने के लिए , जिनकी भारी भरकम फीस से आर्थिक संकट से जूझना पड़ता है।मेरी व्यक्तिगत चिंता भी है कि आख़िर इन सरकारी विद्यालयों की हालत कब सुधरेंगे,कब इनमें संसाधन उपलब्ध होंगे… क्या सरकारी स्कूल के अध्यापकों का और सरकारी कर्मचारियों के बच्चों का पढ़ाना इन सरकारी स्कूलों में अनिवार्य नहीं कर देना चाहिए तभी इनकी हालतो में सुधार हो सकता है।जब प्रत्येक नागरिक को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा निशुल्क नहीं मिलती तो विश्व गुरु का बनना एक राजनैतिक वक्तव्य मात्र है।जमीनी हकीकत तो यह है शिक्षा की बदहाली भी पलायन का जिम्मेदार है और सरकारी विद्यालय अब भूतिया खंडर बनते जा रहे है ,जो सोचनीय विषय है और यही स्तिथि रही तो विश्व गुरु बनने के सपने से हम बहुत दूर है ।।
विशेष आभार @ Suraj vishwakarma